
मुसलमानों के सबसे बड़े पर्वों में से एक ईद उल अज़हा (बकरीद) नजदीक है. ऐसे में लखनऊ के कैसरबाग इलाके के प्रमुख चौराहे पर एक होर्डिंग पर बकरे की लगाई गई तस्वीर ने विवाद पैदा कर दिया है. इस होर्डिंग में एक बकरे का फोटो बनाया गया है. जिसपर लिखा गया है- मैं जीव हूं मांस नहीं, हमारे प्रति नजरिया बदलें. मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने पुलिस कमिश्नर को खत लिखकर इस बारे में ऐतराज जताया है. उन्होंने कहा है कि जल्द ही ईद आने वाली है. इस मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी करते हैं. ऐसे में यह होर्डिंग लगाने का मतलब मजहबी जज्बात को ठेस पहुंचाना है.
उन्होंने पुलिस कमिश्नर से अपील की इस तरह के होर्डिंग से माहौल खराब हो सकता है इसलिए इसे अविलंब हटाया जाए. जिसके बाद लखनऊ की पुलिस ने शुक्रवार शाम को होर्डिंग नीचे उतार दिया. हालांकि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि इस होर्डिंग को किसने लगाया था?
मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा, 'लखनऊ के कैसरबाग चौराहे पर एक बड़ी होर्डिंग में बकरे की तस्वीर लगा कर काबिल ऐतराज बातें लिखी हैं. इस सिलसिले में इमाम ईदगाह मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली और अतहर हुसैन डायरेक्शन कॉर्डिनेशन ने पुलिस कमिश्नर को खत लिख कर मांग की है कि इस होर्डिंग को हटाने का आदेश दिया जाए. क्योंकि बकरीद आने वाली है और इस मौके पर मुसलमान बकरे की कुर्बानी करते हैं और ऐसा महसूस होता है कि ये हरकत मुसलमानों के मजहबी जज़्बात को ठेस पहुंचाने के लिए की गई है.
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क्यों मनाते हैं बकरीद?
इस्लाम धर्म के तहत दो ईद मनाई जाती हैं. हिंदुस्तान के साथ दुनिया के तमाम देशों में मुसलमान ईद मनाते हैं. रमजान के बाद ईद-उल फितर मनाई जाती है और उसके 70 दिन बाद ईद-उल अजहा का मौका आता है, जिसे बकरीद भी कहते हैं. बकरीद के मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करते हैं. साथ ही जानवरों की कुर्बानी दी जाती है.
पैगंबर इब्राहीम के जमाने में हुई शुरूआत
इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, दुनिया में 1 लाख 24 हजार पैगंबर (मैसेंजर) आए. इनमें एक पैगंबर हजरत इब्राहिम हुए. इन्हीं के जमाने में बकरीद की शुरुआत हुई.
ये है पूरा वाकया
इस्लामिक जानकार बताते हैं कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को सपने में अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का हुक्म दिया. हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी. ऐसे में उनके लिए सबसे प्यारे उनके बेटे हजरत इस्माइल ही थे. अल्लाह का हुक्म पूरा करना उनके लिए एक कड़ा इम्तिहान था. एक तरफ अल्लाह का हुक्म था तो दूसरी तरफ बेटे की मुहब्बत. ऐसे में उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अमल किया और बेटे को अल्लाह की रजा के लिए कुर्बान करने को राजी हो गए.
इस्लाम के जानकार मौलाना हमीद नोमानी बताते हैं कि हजरत इब्राहिम को लगा कि बेटे की कुर्बानी देते समय उनका प्यार कहीं आड़े ना आ जाए. इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. इसके बाद हजरत इब्राहिम ने जब बेटे इस्माइल की गर्दन काटने के लिए छुरी चलाई तो अल्लाह के हुक्म से इस्माइल अलैहिस्सलाम की जगह एक दुंबा (एक जानवर) पेश कर दिया गया.
इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने जब आंख से पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने बेटे को अपने सामने जिंदा खड़ा पाया. अल्लाह को हजरत इब्राहिम का ये अकीदा इतना पसंद आया कि हर साहिबे हैसियत (जिसकी आर्थिक हालत बकरा या दूसरा जानवर खरीदकर कुर्बान करने की हो) पर कुर्बानी करना वाजिब कर दिया.
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इस्लामिक धर्मगुरु मुफ्ती शमून क़ासमी कहते हैं कि अल्लाह ने जो पैगाम हजरत इब्राहिम को दिया वो सिर्फ उनकी आजमाइश कर रहे थे. ताकि ये संदेश दिया जा सके कि अल्लाह के फरमान के लिए मुसलमान अपना सब कुछ कुर्बान कर सके.