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पढ़ें: बकरीद पर क्यों दी जाती है जानवरों की कुर्बानी

इस्लाम में कुर्बानी का काफी बड़ा महत्व है. इस्लाम के मद्देनजर अल्लाह ने हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का आदेश दिया.

फाइल फोटो फाइल फोटो
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 11:26 AM IST

इस्लाम में प्रमुख रूप से दो बड़े त्योहार मनाए जाते हैं. एक ईद-उल-फित्र तो दूसरा ईद-उल-अजहा. इस साल दो सितंबर को हिंदुस्तान में ईद-उल-अजहा मनाई जाएगी. ईद-उल-अजहा के मौके पर मुस्लिम समाज नमाज पढ़ने के साथ-साथ जानवरों की कुर्बानी भी देता है. इस्लाम के अनुसार कुर्बानी करना हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है, जिसे अल्लाह ने मुसलमानों पर वाजिब कर दिया है.

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दरअसल कुर्बानी का सिलसिला ईद के दिन को मिलाकर तीन दिनों तक चलता है. मुस्लिम समाज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करता है. हलाल तरीके से कमाए हुए धन से कुर्बानी जायज मानी जाती है, हराम की कमाई से नहीं.

कुर्बानी का इस्लामिक महत्व

मुफ्ती एजाज अरशद कासमी के अनुसार इस्लाम में कुर्बानी का काफी बड़ा महत्व है. इस्लाम के मद्देनजर अल्लाह ने हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का आदेश दिया. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुर्ई थी. ऐसे में उनके लिए सबसे प्यारे उनके बेटे हजरत ईस्माइल अलैहिस्सलाम थे. ये इब्राहिम अलैहिस्सलाम के लिए एक इम्तिहान था, जिसमें एक तरफ अल्लाह का हुक्म था तो दूसरी तरफ बेटे की मुहब्बत. ऐसे में उन्होंने अल्लाह के हुक्म को चुना और बेटे को अल्लाह की रजा के लिए कुर्बान करने को राजी हो गए.

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 साहिबे हैसियत पर कुर्बानी वाजिब

 ऐसे में हजरत इब्राहिम को लगा कि बेटे को कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं कहीं आड़े ना आ जाए. इसीलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने जब बेटे ईस्माइल अलैहिस्सलाम की गर्दन काटने के लिए छुरी चलाई तो अल्लाह के हुक्म से ईस्माइल अलैहिस्सलाम की जगह एक दुंबा(एक जानवर) को पेश कर दिया गया. इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने जब आंख से पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिंदा खड़ा पाया. अल्लाह को ये अदा इतनी पसंद आई कि हर साहिबे हैसियत पर कुर्बानी करना वाजिब कर दिया. वाजिब का मुकाम फर्ज से ठीक नीचे है. अगर साहिबे हैसियत होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार है. ऐसे में जरूरी है कि कुर्बानी करे, महंगे और सस्ते जानवरों से इसका कोई संबंध नहीं है.

 किस पर कुर्बानी वाजिब

इस्लाम के मुताबिक वह शख्स साहिबे हैसियत है, जिस पर जकात फर्ज है. वह शख्स जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या फिर साढ़े 52 तोला चांदी है या फिर उसके हिसाब से पैसे. आज की हिसाब से अगर आपके पास 28 से 30 हजार रुपये हैं तो आप साढ़े 52 तोला चांदी के दायरे में हैं. इसके मुताबिक जिसके पास 30 हजार रुपये के करीब हैं उस पर कुर्बानी वाजिब है. ईद-उल-अजहा के मौके पर कुर्बानी देना जरूरी बन जाता है.

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 कुर्बानी का मकसद

मुफ्ती कासमी के मुताबिक इस्लाम में जानवरों की कुर्बानी देने के पीछे एक मकसद है. अल्लाह दिलों के हाल से वाकिफ है. ऐसे में अल्लाह हर शख्स की नीयत को समझता है. जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करता है तो उसे अल्लाह की रजा हासिल होती है. बावजूद इसके अगर कोई शख्स कुर्बानी महज दिखावे के तौर पर करता है तो अल्लाह उसकी कुर्बानी कुबूल नहीं करता.

 कुर्बानी के तीन हिस्से  

कुर्बानी के लिए होने वाले जानवरों पर अलग अलग हिस्से हैं. जहां बड़े जानवरों पर सात हिस्से होते हैं तो वहीं बकरे जैसे छोटे जानवरों पर महज एक हिस्सा होता है. मतलब साफ है कि अगर कोई शख्स भैंस या ऊंट की कुर्बानी कराता है तो उसमें सात लोगों को शामिल किया जा सकता है तो वहीं बकरे की कराता है तो वो सिर्फ एक शख्स के नाम पर होगी. कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से करने की शरीयत में सलाह है. एक हिस्सा गरीबों में तकसीम किया जाए, दूसरा हिस्सा अपने दोस्त अहबाब के लिए इस्तेमाल किया जाए और तीसरा हिस्सा अपने घर में इस्तेमाल किया जाए. गरीबों में गोश्त बांटना मुफीद है.

 प्रतिबंधित जानवरों की कुर्बानी से बचें

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मुफ्ती अरशद कासमी के मुताबिक ऐसे जानवरों की ही कुर्बानी करें जिसकी हमें कानून इजाजत देता है और ऐसे जानवरों की कुर्बानी कतई न करें जिन पर सरकार द्वारा प्रतिबंध है.

 

 

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