
बिहार में अनूठा कारनामा करने वाले दशरथ मांझी की कहानी अब झारखंड में दुहराई जा रही है. फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार की दास्तान किसी पहाड़ को काटने की नहीं, बल्कि एक बरसाती नदी पर पुल बनाकर आम जनों को रास्ता दिलाने की है.
इस बार की कहानी में दशरथ मांझी की जगह ली है सूबे के घोर नक्सल प्रभावित जिले गढ़वा के नगर इलाके के किसान बचई महतो ने. महतो ने अपनी खेती की जमीन महज इसलिए बेच डाली, ताकि इससे जुटाए गए पैसों से लोगों के लिए पुल बनवा सके. पुल के बन जाने से अब यहां के ग्रामीणो को पांच किलोमीटर घूमकर शहर नहीं जाना पड़ेगा.
बचई महतो के इस काम की वजह से न केवल यहां से शहर की दूरी कम हो जाएगी, बल्कि बारिश और इमरजेंसी में लोगों को तत्काल सहायता भी मिल सकेगी. स्थानीय लवंगा नदी पर बनाए जा रहे इस 65 फीट लम्बे और 12 फीट चौड़े पुल के लिए बचई महतो ने किसी से आर्थिक सहायता नहीं ली. उन्होंने इस नेक काम के लिए अपनी बेशकीमती जमीन बेचकर पैसे जुटाए. दरअसल, आसपास के गांववालों की असुविधा को देखते हुए महतो ने इस पुल के निर्माण के लिए जिले के अधिकारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक से आरजू-मिन्नत की. लेकिन किसी नेता और अधिकारी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. जब हर ओर से निराशा हाथ लगी, तो इन्होंने अपने बूते इस नदी पर पुल बनाने का फैसला कर लिया.
नगर अनुमंडल के चितविश्राम टोला के कुशहा के किसान बचई महतो इस कोशिश में हैं कि जल्द से जल्द पुल बन जाए, ताकि बरसात से पहले लोगों के आवागमन की समस्या दूर हो जाए. दरअसल जिस स्थान पर बचई महतो द्वारा पुल बनाया जा रहा है, वहां बरसात के दिनों में चार से पांच फीट तक पानी भर जाता है. इससे टोले के लोगों को चार किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करना पड़ती थी. बचई महतो के त्याग, समर्पण और सेवा भाव से गांववाले काफी खुश हैं. उन्हें उम्मीद है की बरसात के दिनों में होनेवाली आवागमन की समस्या का समाधान हो जाएगा.
एक अनुमान के मुताबिक, इस पुल के निर्माण में पांच लाख की लागत आएगी. वैसे जमीन बेचकर बचई महतो अब तक तीन लाख रुपये इस मद में खर्च कर चुके हैं. वहीं जब इस बाबत झारखण्ड के ग्रामीण विकास मंत्री से पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि बचई महतो का प्रयास निश्चित तौर पर प्रशंसनीय है. साथ ही उन्होंने कहा कि इसकी जानकारी उन्हें नहीं थी.
दरअसल जो काम सरकार को करना चाहिए, उसे बचई महतो अपने बूते अंजाम दे रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि बचई महतो के इस प्रयास की जानकारी लेने अब तक तक कोई भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी नहीं पहुंचा है. यह विकास और उत्थान के नारे से चुनकर सत्ता में आई झारखण्ड सरकार के लिए सबक है.