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मुर्दों का बाजार...चंद रुपयों की खातिर लाशों की सौदेबाजी!

जिंदा इंसानों की मंडी में अब मुर्दे भी खरीदे और बेचे जा रहे हैं. अब चूंकि मुर्दे बोलते नहीं, लिहाजा वो किससे और कहां शिकायत करें? और बस यही वो चीज है जिसने इस कारोबार को हवा दे रखी है. पर मुर्दों की इस खरीद-फरोख्त के सबसे नए बाजार के बारे में बताने से पहले छह साल पुरानी एक घटना याद दिलाते हैं. बिहार से पहले राजस्थान की बात बताते हैं.

बिहार के मुजफ्फरपुर की वारदात बिहार के मुजफ्फरपुर की वारदात
मुकेश कुमार/शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 22 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 1:55 AM IST

जिंदा इंसानों की मंडी में अब मुर्दे भी खरीदे और बेचे जा रहे हैं. अब चूंकि मुर्दे बोलते नहीं, लिहाजा वो किससे और कहां शिकायत करें? और बस यही वो चीज है जिसने इस कारोबार को हवा दे रखी है. पर मुर्दों की इस खरीद-फरोख्त के सबसे नए बाजार के बारे में बताने से पहले छह साल पुरानी एक घटना याद दिलाते हैं. बिहार से पहले राजस्थान की बात बताते हैं.

मई, 2010
श्रीगंगानगर, राजस्थान


एक कमरा. इसमें रात के वक्त कोई इंसान गलती से दाखिल हो जाए तो डर के मारे उसकी चीखें निकल जाएं. कमजोर दिल वालों की तो ये मंजर देख कर जान तक जा सकती है. इस कमरे में है ही कुछ ऐसा जिसे देख कर किसी के भी होश फाख्ता हो सकते हैं. वजह है यहां मौजूद इंसानी लाशें. जी हां, इस कमरे में इस वक्त एक दो या तीन नहीं दर्जनों लाशें मौजूद हैं.

यहां एक साथ कई मुर्दों को एक ही कमरे में सहेज कर रखा गया है. इनमें से कुछ ताजा हैं तो कुछ महीनों पुराने. लेकिन इन सभी लाशों को एक ऐसे केमिकल के अंदर डुबो कर रखा गया है, जिसके असर से ये सालों साल महफूज रह सकती हैं. मगर इंसानी लाशों को संभाल कर रखने की ये कोशिश क्यों की गई है? मुर्दों के लिये एक कमरा क्यों बनाया गया है?

इन सारे सवालों का जवाब जानने के लिये इसी इमारत में बने एक दूसरे कमरे का जायजा लिया. मुर्दों के ठिकाने के ठीक बगल में ये वो कमरा है जिसे यहां काम करने वाले डिसेक्शन रूम कहते हैं. इस कमरे में इंसानी लाशों की चीर फाड़ की जाती है, ताकि इन लाशों के जरिये इंसानी जिस्म में छिपे राज फाश किये जा सकें।. इसे अनैटमी की पढ़ाई कहा जाता है.

पूरी दुनिया में मेडिकल की पढ़ाई के लिये कैडेवर यानी लाशों की चीर फाड़ का चलन आम है. क्योंकि मेडिकल के स्टूडेंट्स को इंसानी जिस्म की बनावट और अंदरूनी हिस्सों की जानकारी देने का इससे आसान तरीका और कोई नहीं है. पर क्या आप जानते हैं कि डॉक्टरी की इस पढ़ाई के लिये मुर्दे लाये कहां से जाते हैं? मेडिकल कॉलेजों की लाशों की मांग कैसे पूरी होती है?

यदि नहीं तो आज हम आपके सामने खोलेंगे लाशों की खरीद-फरोख्त से जुड़ा एक ऐसा राज जो आपके रोंगटे खड़े कर देगा. पर इसके लिए अब पटना की घटना पर प्रकाश डालना होगा. क्योंकि मुर्दों को कंकाल बना कर उन कंकालों का सबसे नया बाजार फिलहाल यहीं खुला हुआ है. जहां मुर्दों की की बोली लगती है, जहां कंकाल की खरीद-फरोख्त होती है.

मुजफ्फरपुर के सरकारी अस्पताल यानी श्रीकृष्ण सिंह मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल में पोस्टमार्टम हाउस के बाहर खड़े लोग लाशों की सौदेबाज़ी में लगे हैं. जी हां, इस अस्पताल में लंबे समय से जारी कंकालों की खरीद-फरोख्त की ख़बरों का सच जानने के लिए जब अंडर कवर रिपोर्टरों की एक टीम यहां तक पहुंची, तो यहां के मुलाज़िमों की बातें सुनकर दंग रह गई.

पोस्टमार्टम हाउस के ये मुलाज़िम चंद रुपयों की खातिर यहां बैठे-बैठे लाशों की बोली लगा रहे थे. महज़ पांच सौ रुपए एडवांस मिलते ही इस अंडरकवर टीम के लिए खोपड़ी और हड्डियों से भरा एक डिब्बा उठाकर लाए. पोस्टमार्टम हाउस की इस स्याह हक़ीक़त से पर्दा हटाने के लिए दैनिक भास्कर के रिपोर्टरों की टीम ने यहां एक स्टिंग ऑपरेशन करने का फ़ैसला किया.


उनके खुफ़िया कैमरे में जो तस्वीरें क़ैद हुई वो वाकई चौंकानेवाली थी. पोस्टमार्टम हाउस के मुलाजिमों ने कहा कि वो यहां लाई जानेवाली लावारिस लाशों से उनका मांस निकाल कर हड्डियों को बाकायदा उबाल कर अलग कर लेते हैं. इससे वो लंबे समय तक खराब नहीं होते और फिर उन्हें आगे बेच देते हैं. इस अंडरकवर टीम ने भी कंकाल खरीदने की इच्छा जताई.

उन पर थोड़ा भरोसा होते ही वो सात से आठ हज़ार रुपये प्रति कंकाल के हिसाब से झट इस टीम को दो से तीन दिनों के अंदर तीन-चार कंकाल मुहैया करवाने को तैयार हो गए. कंकालों का सौदा करनेवाले इन मुलाज़िमों ने ना सिर्फ़ हर हाल में कंकाल दिलाने का भरोसा दिया, बल्कि नमूने के तौर हमें वो डिब्बा भी दिखाया, जो पोस्टमार्टम हाऊस में छिपा कर रखा था.

श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पीटल की ये हालत तब है, जब लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार के लिए ना सिर्फ़ हर ज़िले में एक कमेटी होती है. इसके लिए सरकार की ओर से फंड भी दिया जाता है. बेशक वो फंड काफ़ी कम है, लेकिन कमेटी में पुलिस भी होती है. इतना होने के बावजूद जब कंकालों की यूं खुलेआम खरीद-फरोख्त समझना मुश्किल नहीं है.

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