
केन्द्र सरकार ने 8 नवंबर की रात नोटबंदी का बड़ा फैसला लिया, जिससे यह पूरा महीना आम आदमी के लिए चुनौतियों से भरा रहा. अब दिसंबर दस्तक दे रहा है. देशभर में एक बार फिर नौकरी-पेशा लोगों को 1 से 8 तक सैलरी मिलेगी. मौजूदा स्थिति को देखते हुए साफ है कि नए महीने का पहला हफ्ता आम आदमी के लिए बैंकों से लेन देन के मामले में कष्टप्रद रहेगा. आइए जानें क्यों दिसंबर का पहला हफ्ता मोदी सरकार की अग्निपरीक्षा का वक्त है-
1. बैंकों पर बढ़ेगी भीड़: नोटबंदी के बाद से देशभर में बैंकों के बाहर ग्राहकों को भीड़ लगी है. दिसंबर में सैलरी आते ही एक बार फिर बड़ी भीड़ उमड़ने की चुनौती केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक के सामने है. इतना तय है कि मौजूदा पाबंदियों के चलते दिसंबर की शुरुआत में बैंकों पर फुटफॉल बढ़ेगा. इस बार स्थिति नवंबर के पहले हफ्ते से अलग है क्योंकि नवंबर में नोटबंदी का असर पहले हफ्ते के बाद शुरू हुआ और तब तक लोग सैलरी से जरूरी निकासी कर चुके थे.
2. दुरुस्त नहीं हैं सभी एटीएम: नोटबंदी के बाद बीते 21 दिनों से पुराने नोट बदलने और बैंक अकाउंट और एटीएम से नई करेंसी जारी करने की प्रक्रिया चल रही है. इसके चलते देशभर में अधिकांश बैंक और एटीएम के सामने नई करेंसी की दुविधा है. अभी भी लगभग आधे एटीएम को नई करेंसी के लिए उपयुक्त नहीं किया जा सका है. वहीं लगभग 11 हजार व्हाइट एटीएम (जो बैंकिंग के बाहर चलते हैं) में नया कैश डालने की व्यवस्था नहीं की जा सकी है.
3. छोटे-बड़े शहरों में न हो भेद: 8 नवंबर के बाद से देश में नई करेंसी का सर्कुलेशन करने के लिए पहले बड़े शहरों को प्राथमिकता दी गई जिससे छोटे शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में सहकारी बैंकों को लंबा इंतजार करना पड़ा. अब दिसंबर की सैलरी आते ही सरकार के सामने बड़े-छोटे सभी शहरों और ग्रामीण इलाकों में बैंक और एटीएम को पूरी तरह तैयार करना है.
4. कैश निकालने की होड़: दिसंबर के पहले हफ्ते में सैलरी अकाउंट अथवा अन्य सेविंग अकाउंट से लोगों की कोशिश ज्यादा से ज्यादा कैश निकालने की होगी. यह निकासी महीने के सभी जरूरी खर्च को ध्यान में रखते हुए की जाएगी. वहीं सभी की कोशिश होगी कि उसे लाइन में कम से कम समय गंवाना पड़े. लिहाजा बैंकों को इस हफ्ते के दौरान सर्वाधिक कैश की मांग का सामना करना पड़ेगा.
5. बैंकों को दोहरी चुनौती: कैश की दिक्कत के चलते कैशलेस तरीकों से वाकिफ लोगों की कोशिश होगी कि वह अपने ज्यादा से ज्यादा बड़े खर्च जैसे, मकान का किराया, ट्राइवर की सैलरी, स्कूल की फीस, बिजली का बिल इत्यादि को चेक से पूरा करे. यह बैंक के सामने दोहरी चुनौती पैदा करेगा. बैंकों को चेक क्लियर करने में कैश वितरण करने से ज्यादा मैनपावर और समय लगता है.
6. कैसे मिलेगी कैश सैलरी: देश में सबसे ज्यादा सैलरी का वितरण अन ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में और लेबर को पैसे देने में होता है. इस तबके को पैसे पूरी तरह से कैश में दिया जाता है. इसके तहत रियल एस्टेट के बड़े प्रोजेक्ट में लेबर, होम सर्विस जैसे प्लंबर, इलेक्ट्रीशियन, मॉल और रीटेल स्टोर में सेल्स पर्सन इत्यादी कि सैलरी आती है. लिहाजा इस सेक्टर में कंपनियों को बड़ी मात्रा में कैश की जरूरत सैलरी वितरण के लिए होगी.