Advertisement

दिल्ली की जहरीली हवा: ‘हेलि‍कॉप्टर से पानी छिड़कने का विचार बेमतलब, होगी पैसे की बर्बादी’

आइए जानते हैं कि विशेषज्ञ इस बारे में क्या कहते हैं?  पहली बात ये कि विशेषज्ञ एकमत हैं कि प्रदूषण दूर करने के लिए हेलीकॉप्टर से पानी छिड़कने का विचार पूरी तरह अव्यावहारिक है. IIT दिल्ली के प्रोफेसर मुकेश खरे शहरी वायु प्रदूषण के विषय पर वर्षों से काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर इसे आजमाया जाता है तो ये पैसे और पानी की भारी बर्बादी के सिवा कुछ नहीं होगा.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
अंकुर कुमार/बालकृष्ण/खुशदीप सहगल
  • नई दिल्ली,
  • 09 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 11:45 PM IST

आबोहवा में घुले प्रदूषण के जहर की वजह से दिल्ली का दम घुट रहा है. दिल्ली के बाशिंदे ताजा और साफ हवा के लिए तरस रहे हैं. ऐसे में IIT से पढ़े दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दावा है कि उनके पास दिल्ली के प्रदूषण की इस समस्या का फौरी इलाज मौजूद है. इस इलाज से हवा में घुले जहरीले प्रदूषणकारी तत्व हट जाएंगे और दिल्लीवासियों को तत्काल राहत मिल जाएगी. केजरीवाल का यह ‘रामबाण’ इलाज है कि हेलि‍कॉप्टर्स के जरिए पानी का छिड़काव कराया जाए. जब ऐसा ‘सटीक समाधान’ मौजूद है तो हर कोई सवाल कर रहा है कि इस पर अमल करने में फिर देरी क्यों हो रही है?

Advertisement

आइए जानते हैं कि विशेषज्ञ इस बारे में क्या कहते हैं?  पहली बात ये कि विशेषज्ञ एकमत हैं कि प्रदूषण दूर करने के लिए हेलि‍कॉप्टर से पानी छिड़कने का विचार पूरी तरह अव्यावहारिक है. IIT दिल्ली के प्रोफेसर मुकेश खरे शहरी वायु प्रदूषण के विषय पर वर्षों से काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर इसे आजमाया जाता है तो ये पैसे और पानी की भारी बर्बादी के सिवा कुछ नहीं होगा.

प्रोफेसर खरे कहते हैं, ‘दुनिया में कहीं भी इस तरीके का इस्तेमाल प्रदूषण दूर करने के लिए नहीं होता. हेलि‍कॉप्टर से छिड़का जाने वाला पानी जल्दी सूख जाएगा और कुछ ही घंटों में विकट स्थिति पर लौट आएंगे. हां, हेलि‍कॉप्टर से पानी छिड़कने का इस्तेमाल आग बुझाने के लिए अक्सर किया जाता है, लेकिन वो छोटे क्षेत्र तक ही सीमित होता है. 1500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक फैले महानगर में हेलि‍कॉप्टर्स से पानी छिड़कने का विचार हास्यास्पद है.

Advertisement

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)  के वरिष्ठ वैज्ञानिक चरण सिंह भी इस विचार को सिरे से खारिज करते हैं. चरण सिंह का कहना है, ‘दिल्ली में जहरीली धुंध पंजाब और पाकिस्तान से आ रही है. मौसमी परिस्थितियों की वजह से ये दिल्ली के आसमान में आकर टिक रही है. अगर आप इसे हेलिकॉप्टर से पानी के छिड़काव से दूर करने की कोशिश करेंगे तो ये स्थिति थोड़ी देर बाद ही लौट आएगी.’   

EPCA (पर्यावरणीय प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण) के चेयरमैन भूरे लाल ने इस विचार को सुनते ही हंसते हुए कहा कि ये प्रदूषण से नहीं राजनीति से जुड़ा है. दिल्ली के खराब हालात से निपटने के लिए समाधान सुझाने के लिए जोर दिए जाने पर भूरे लाल ने कहा, पर्यावरण में प्रदूषण की जिम्मेदार धूल से निपटने से पहले इनके स्रोत को जानना जरूरी है. जैसे कि कच्चे रास्तों से उड़ने वाली धूल को रोकने का अच्छा उपाय टैंकर से पानी का छिड़काव करना है. ये ज्यादा प्रभावी और कम खर्चीला है. हेलि‍कॉप्टर से पानी के छिड़काव पर आप कैसे सुनिश्चित करेंगे कि ये सिर्फ मिट्टी वाले कच्चे रास्तों पर ही गिरेगा? हमें सड़कों पर लाखों लीटर पानी बहाने से क्या हासिल होगा?’

जानीमानी पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने हेलि‍कॉप्टरों से पानी छिड़कने के विचार पर कटाक्ष के अंदाज में कहा, ‘ये मेरा विचार नहीं है और मैं नहीं जानती कि किसी देश ने इसे इस्तेमाल किया है. लेकिन दिल्ली सरकार के पास काफी बुद्धिमान लोग हैं, ऐसे में वे बेहतर जानते होंगे.’  सुनीता नारायण ने मुस्कान के साथ कहा, ‘हर कोई जानता है कि हेलि‍कॉप्टर से बहुत हवा और धूल उड़ती है.’

Advertisement

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरनमेंट के शोधकर्ता पोलाश मुखर्जी एक बुनियादी सवाल के जरिए हेलि‍कॉप्टर से पानी छिड़कने के विचार की हवा निकालते दिखाई दिए. मुखर्जी ने कहा, पानी कहां हैं? दिल्ली जैसे बड़े शहर में हेलि‍कॉप्टर से पानी के छिड़काव के लिए लाखों लाख लीटर पानी की जरूरत होगी. क्या दिल्ली और आसपास इसके लिए पानी उपलब्ध है? क्या हम पीने योग्य पानी का इस्तेमाल करेंगे जिसकी पहले से ही किल्लत है. मुखर्जी ने इंगित किया कि जब एक टैंकर से 25000 लीटर पानी छिड़का जाता है तो वो कुछ ही किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करता है. हेलि‍कॉप्टर से पानी छिड़कने का मतलब फिर समझा जा सकता है.

अगर हेलि‍कॉप्टर से पानी छिड़कना व्यावहारिक नहीं तो क्या क्लाउड सीडिंग के जरिए कृत्रिम बारिश इस समस्या का समाधान हो सकती है? इस सवाल का जवाब प्रो. मुकेश खरे ने ऐसे दिया- ‘क्लाउड सीडिंग कम से कम वैज्ञानिक दृष्टि से बेहतर विकल्प है. लेकिन इस पर होने वाला खर्च इसे पहुंच से दूर बनाता है. आकाश में नमी को एकत्र करने के लिए सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों की जरूरत होगी जो बहुत ज्यादा महंगे हैं. चीन इस तरीके का इस्तेमाल करता है, लेकिन क्या बड़े पैमाने पर हम ये इतना बड़ा खर्च उठा सकते हैं, ये बड़ा सवाल है.’  

Advertisement

IMD से जुड़े चरण सिंह क्लाउड सीडिंग को लेकर कहते हैं कि इस वक्त ये तरीका आजमाने से भी कृत्रिम बारिश करना संभव नहीं होगा. चरण सिंह कहते हैं, ‘क्लाउड सीडिंग’ का मतलब है कि रसायनों की मदद से हवा में नमी को संघनित करना जिससे कि कृत्रिम बारिश हो सके. लेकिन मौजूदा हालत में हवा में इतनी नमी नहीं है कि उससे बारिश कराई जा सके.’

ये सवाल किए जाने पर कि हमारे आसपास जो कोहरा है क्या उसमें नमी नहीं है, चरण सिंह ने कहा, ये सारी नमी बस धरती की सतह तक ही सीमित है. क्लाउड सीडिंग को कामयाब बनाने के लिए धरती से 3 से 7 किलोमीटर ऊपर आसमान की ओर नमी होनी चाहिए. इस वक्त हवा बिल्कुल सूखी है, सर्दियों में ऐसा ही होता है.’ 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement