
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए सदमे या झटके की तरह नहीं आए. कांग्रेस ये मानकर चल रही थी कि ऐसा तो होना ही होगा. हालांकि इस चुनाव में बीजेपी की दुर्गति देखकर कांग्रेस खेमे में एक खुशी जरूर थी.
कांग्रेस मुख्यालय में एक कार्यकर्ता ने पार्टी की भावना का इजहार इन शब्दों में किया, "देखिए उनके साथ हमने क्या किया, हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे."
इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का पतन इस कदर हुआ कि 63 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. 15 साल दिल्ली में शासन कर चुकी कांग्रेस का वोट शेयर मात्र 4.26 फीसदी रहा. इसी के साथ कांग्रेस ने बीजेपी के उस सपने को भी चकनाचूर कर दिया कि कांग्रेस के मैदान में आने से दिल्ली का मुकाबला त्रिकोणीय हो जाएगा और बीजेपी इस तीनतरफा फाइट में AAP को आसानी से शिकस्त दे देगी.
कांग्रेस की शिकस्त संयोग या फिर प्रयोग
अब ये सवाल किया जा रहा है कि कांग्रेस की शिकस्त संयोग है या फिर प्रयोग? बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के कड़कड़डूमा में एक चुनावी रैली में इन लाइनों का जिक्र किया था और कहा था कि शाहीन बाग संयोग नहीं प्रयोग है. पीएम मोदी की इन्ही पंक्तियों का इस्तेमाल कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने संगम बिहार में किया और पूछा था कि क्या पीएम बता सकते हैं कि देश में रोजगार का कम होना संयोग है या प्रयोग है.
चुनाव नतीजे सामने आने के बाद अब कांग्रेस के नेता भी मानने लगे हैं कि दिल्ली में लगातार तीसरी बार कांग्रेस की हार का दोषी खुद कांग्रेस नेतृत्व है. इस बावत आप किसी कांग्रेस नेता से पूछे तो जवाब मिलेगा कि पार्टी शुरू से ही इस रेस में थी ही नहीं.
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कांग्रेस मतदाताओं के सामने नहीं बन पाई विकल्प
जब दूसरे दल दिल्ली चुनाव के लिए रणनीति बना रहे थे, तो कांग्रेस एक्शन में थी ही नहीं. पार्टी ने बड़ी देर से 70 पार सुभाष चोपड़ा को अध्यक्ष बनाया, लेकिन इससे मतदाताओं के सामने कांग्रेस दिल्ली की सियासत में सक्रिय और ऊर्जावान विकल्प के रूप में खड़ी नहीं हो सकी. हालांकि उन्होंने अपनी तरफ से भरपूर मेहनत की. पार्टी की हार के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि कांग्रेस के बुरे दिन 10 साल पहले 2010-11 में ही शुरू हो गए थे. जब शीला सीएम थीं, लेकिन पार्टी में गुटबंदी और हितों का टकराव खूब था. कांग्रेस की घटती साख की वजह से ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी को पनपने और फलने-फूलने का मौका मिला.
2015 का राहुल का ऐतिहासिक बयान
2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने एक चर्चित और एतिहासिक बयान दिया था. राहुल ने कहा था, "कुछ ऐसा है जो हमें AAP से सीखने की जरूरत है." पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से आए इस बयान ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल और भी तोड़कर रख दिया था.
पिछले साल पूर्व सीएम शीला दीक्षित के निधन के बाद पार्टी में अंदरुनी कलह सामने आ गई. लेकिन पार्टी नेतृत्व ने इसे ठीक करने की कोई पहल नहीं की. नतीजा ये हुआ कि कार्यकर्ताओं के बीच अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय और विवादित पीसी चाको दिल्ली कांग्रेस के इंचार्ज बने रहे. शीला के विश्वासपात्रों ने उन पर अजय माकन के साथ मिलकर उन्हें किनारा करने का आरोप लगाया.
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विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की प्रचार रणनीति भी लोगों को खटकी. राहुल और प्रियंका ने इसमें देर से एंट्री ली, लेकिन तब तक दिल्ली विधानसभा चुनाव का समीकरण तय हो चुका था, बीजेपी और AAP कई बार आमने-सामने आकर खुद को दिल्ली की गद्दी का प्रतिद्वंदी साबित कर चुके थे.
उम्मीदवारों के चुनाव में भी लापरवाही देखने को मिली. कई नेता और चेहरे तो चुनाव में सिर्फ इसलिए उतरे क्योंकि उन्हें मीडिया में आना था, नाम कमाना था.