
देश की राजधानी में बुधवार की सुबह सिर्फ सूरज ही इन धुंधले आसमानों से निकलने के लिए संघर्ष नहीं कर रहा था. बल्कि आसमान पर इस धुएं की चादर ने राजधानी में बच्चों के भविष्य को भी खतरे में डाल रखा है. बच्चों के स्वास्थ को देखने वाली संस्था यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट बच्चों के भविष्य के बारे में बड़ा खुलासा किया है.
अस्पतालों में भर्ती नन्हें नन्हें बच्चों को यहां पहुंचाने वाली सिर्फ सर्दी जुकाम या फिर बुखार नहीं बल्कि दिवाली के वो पटाखे हैं जिन्हें फोड़ते या छोड़ते वक्त हमने आतिशबाजी का मजा लिया. लेकिन इसी आतिशबाजी से निकले धुएं ने जब चादर बनकर राजधानी को अपने आगोश में लिया तो नतीजा ये हुआ कि दो साल की मासूम परी को सांस लेने में दिक्त होने लगी. 7 महीने की वलिया भी नेबोलाइजर के सहारे सांस ले रही है. क्योंकि दिल्ली की जहरीली हवा ने बच्चों को बीमार कर दिया है. दिवाली के बाद से ही आसमान फॉग की चादर में लिपटा हुआ है.
यूनिसेफ की एक ग्लोबल रिपोर्ट के मुताबिक इन वजहों से हवा में फैला जहर बच्चों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है-
- दुनियाभर के सात बच्चों में से एक बच्चा ऐसी बाहरी हवा में सांस लेता है जो अंतरराष्ट्रीय मानकों से कम से कम छह गुना अधिक दूषित है.
- साथ ही बच्चों में मृत्युदर का एक प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है.
- हर साल पांच साल से कम उम्र के 6,00,000 बच्चों की मौत की प्रमुख वजह वायु प्रदूषण है.
- प्रदूषण में फैले जहरीली तत्व बच्चों के अविकसित फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं.
- यूनिसेफ की रिपोर्ट ये भी कहती है कि बाहरी और भीतरी हवा में प्रदूषण बच्चों में निमोनिया और सांस से जुड़ी बीमारियां पैदा करती है.
- पांच साल से कम उम्र के दस बच्चों में से एक बच्चे की मौत की वजह निमोनिया और सांस से जुड़ी बीमारी बनती है.
यूनिसेफ के हेल्थ स्पेशलिस्ट गगन गुप्ता के मुताबिक, 'वायू प्रदुषण पर जारी की गई यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट एक ग्लोबल रिपोर्ट है. साउथ एशिया के देशों में जिस तेजी से प्रदूषण बढ़ रहा है, वो लोगों के लिए बेहद खतरनाक है. अक्सर सरकारें मेट्रो सिटीज की ओर फोकस करती हैं, लेकिन ये रिपोर्ट बताती है कि सिर्फ मेट्रो सिटी नहीं बल्कि ग्वालियर, रायपुर जैसे शहरों पर भी फोकस करना जरुरी है.'
2011 के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में 0 से 6 साल की उम्र के 12 लाख 38 हजार 350 बच्चे थे. जो कि मौजूदा वक्त तक करीब दो गुना हो चुके हैं.
- दिल्ली में 22 लाख ऐसे बच्चे हैं जो स्कूल जाते हैं.
- 16 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं.
- 10 में से चार बच्चों को लंग्स से जुड़ी समस्या है.
- दो साल के बड़े बच्चों में लगातार अस्थमा की समस्या बढ़ रही है.
- 15 साल की उम्र से छोटे बच्चों में ब्रोनकाइटिस की बीमारी बढ़ती जा रही है.
यूनिसेफ की जिस रिपोर्ट में दुनिया भर के बच्चों का जिक्र किया गया है उसका संबंध दिल्ली में रहने वाले बच्चों से भी सीधा है. क्योंकि दिल्ली में भी प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है. दिल्ली में दिवाली के बाद से प्रदूषण भयानक स्थिति में पहुंच चुका है. यहां हवा में पीएम 2.5 की मात्रा लगातार डेंजर लेवल को क्रॉस कर कई गुना ज्यादा दर्ज हो रही है. फिलहाल दिवाली के 3 बाद भी दिल्ली की हवाओं में तैरते इस जहर के छंटने के आसार नहीं हैं. क्योंकि मौसम विभाग ये कह रहा है कि अगर राजधानी में तेज हवाएं नहीं चली तो फिर स्मॉग नहीं छंटेगा. ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं कि दिल्ली में बच्चे कितनी खतरनाक हवा में सांस ले रहे हैं.