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केजरीवाल सरकार और LG दफ्तर के बीच चिट्ठी वॉर

मुख्य सचिव विवाद मामले को लेकर 27 फरवरी को एलजी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर आत्ममंथन की सलाह दी थी. इसके जवाब में सिसोदिया ने एलजी पर आईएएस एसोसिएशन के समर्थन का आरोप लगाया दिया है.

दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश और मुख्यमंत्री केजरीवाल दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश और मुख्यमंत्री केजरीवाल
राम कृष्ण/पंकज जैन
  • नई दिल्ली,
  • 28 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 3:13 PM IST

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार और एलजी दफ्तर के बीच खींचतान जारी है. दिल्ली के मुख्य सचिव के साथ बदसलूकी मामले के बाद अब अधिकारियों और मंत्रियों के बीच चिट्ठी के जरिए संवाद हो रहा है. मंगलवार 27 फरवरी को एलजी ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर आत्ममंथन की सलाह दी थी. इसके जवाब में सिसोदिया ने एलजी पर आईएएस एसोसिएशन के समर्थन का आरोप लगाया दिया है.

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एलजी और सीएम-डिप्टी सीएम संतुलित संवाद स्थापित करने की बजाय पत्र लिखकर एक-दूसरे से उलझते नजर आ रहे हैं. बुधवार 28 फरवरी को डिप्टी सीएम सिसोदिया ने एलजी को चिट्ठी लिखकर कहा, ''दो दिन पहले मैंने आपसे कुछ अधिकारियों को मंत्रियों की मीटिंग में आने का आदेश देने का अनुरोध किया था, लेकिन इसके जवाब में आपने कल मुख्यमंत्री को ही नसीहत भरी चिट्ठी भेज दी. इससे जाहिर है कि आप आईएएस यूनियन के उस फतवे का खुलकर समर्थन कर रहे हैं, जिसके तहत जूनियर अधिकारियों तक को मंत्रियों से बात न करने और मीटिंग में न जाने के लिए बाध्य किया जा रहा है.''

सिसोदिया ने एलजी से कहा, ''आपकी यह चिट्ठी उन अधिकारियों के लिए अभयदान है, जो मंत्रियों का बहिष्कार कर रहे हैं. साथ ही फोन और व्हाट्सऐप पर मंत्रियों के सवाल का जवाब नहीं दे रहे हैं." डिप्टी सीएम ने कहा, "जिस समय आप आईएएस अधिकारियों का मनोबल बढ़ाने के लिए ये चिट्ठी हमें लिखवा रहे थे, उस समय मैं कुछ गरीब आंगनवाड़ी वर्कर महिलाओं के साथ बैठा था, जिन्हें इन आईएएस अधिकारियों की कर्मठता के चलते तीन महीने से वेतन नहीं मिला. ये आपके चहेते वही होनहार अधिकारी हैं, जिनका मनोबल ऐसी किसी भी बात पर मंत्री के डांटने भर से गिर जाता है.

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सिसोदिया ने कहा कि इन अधिकारियों ने तीन महीने से 10 हजार आंगनवाड़ी वर्कर व 10 हजार आंगनवाड़ी हेल्पर के वेतन और 10 हजार आंगनवाड़ी मकान मालिकों का किराया नहीं दिया है. इस तरह 30 हजार लोगों को तीन महीने तक वेतन नहीं मिला. 30 हजार गरीब परिवारों के घर के चूल्हे बुझाकर आपके इन अधिकारियों का मनोबल कैसे बढ़ता होगा?"

सिसोदिया की एलजी को भेजी चिट्ठी की 10 अहम बातें -

1.  आज तक नहीं सुना कि किसी आईएएस अधिकारी का मनोबल इसलिए गिर गया हो, क्योंकि उसके सही तरीके से कलम न चलाने से हजारों-लाखों गरीबों के चूल्हे नहीं जले हैं. देश की किसी आईएएस यूनियन ने कभी अपने ऐसे अधिकारियों के खिलाफ फतवा जारी नहीं किया, जिनके निकम्मेपन या करप्शन की वजह से गरीब घरों के चूल्हे महीनों तक जलने मुश्किल हो जाते हैं और सवाल सिर्फ तीस हजार परिवारों का नहीं है, सवाल आंगनवाड़ी केंद्रों में आने वाले पांच लाख बच्चों का भी है. सारी दुनिया में जिस समय ‘अर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन’ पर जोर शोर से काम हो रहा है, उस वक्त हम अपने आंगनवाड़ी केंद्र तक इसलिए ठीक से नहीं चला पा रहे हैं, क्योकि अफसर वहां काम कर रहे लोगों का वेतन रोक कर बैठे हैं. आप इसे चाहे जैसे देखें, लेकिन मुझे लगता है कि पांच लाख बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ देश के भविष्य के साथ गद्दारी है. आप चाहें तो चार आईएएस अधिकारियों के आसुंओं से पिघल जाएं, लेकिन इन बच्चों का भविष्य बर्बाद होते देखकर मेरा तो खून खौलता है.

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2. एक आईएएस अधिकारी आपके पास आकर दावा करे कि मंत्री ने उसे डांटा है, तो आप उसके तमाम निकम्मेपन के बावजूद उसके आंसू पोंछते हैं. उसे हौसला देते हैं कि मंत्रियो की मीटिंग में मत जाइए, मैं तुम्हारे साथ हूं. मैने इन्हें खूब प्यार से समझा लिया, लेकिन इसके बावजूद ये मान नहीं रहे हैं. खुद से कदम उठा लें, इतने संवेदनशील होते तो तीन महीने तक गरीब आंगनवाड़ी कर्मियों के वेतन नहीं रुकते. मैं सख्ती से डांट दूंगा, तो तुरंत इनका मनोबल टूटने की एक और घटना आपकी डायरी में नोट करा आएंगे. ज्यादा कुछ कहेंगे, तो इनकी आईएएस यूनियन ‘खाप पंचायत’ की तरह हमारे खिलाफ फतवा जारी कर देगी - ‘‘मंत्री का फोन नहीं उठाएंगे, मैसेज का जवाब नहीं देंगे, मीटिंग में नहीं आएंगे’’आदि.

3. दिल्ली में मंत्रियों के खिलाफ आईएएस यूनियन ने तरह-तरह के फतवे जारी किए हुए हैं. अब अगर मैं आपसे कहूंगा कि इनसे काम कराकर दिखाइए, तो आप इनकी होनहारिता और कर्मठता का हवाला देकर हमें ही नसीहत दे देंगे. अब आप ही मुझे बताएं कि मैं इनसे किस भाषा में बात करूं?  कौन सी डिक्शनरी से शब्द लाऊं, जो इन्हें समझ में आ जाएं और ये इन बेचारे 30 हजार परिवारों का तीन महीने से रुका वेतन दे दें और आगे भी न रोके. (मेरा मानना है कि अगर मैं भ्रष्टाचार करने लगूं और इन्हें भी हेराफेरी करने दूं, तो सब काम होने लगेगा, लेकिन ये मैं कर ही नहीं सकता)

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4. आप दिल्ली के उपराज्यपाल हैं. आप खुद भी एक आईएएस अधिकारी रहे हैं, लेकिन मेरा अनुरोध है कि अब आप एक आईएएस के चश्मे से देखना बंद करिए. जरा तीन साल के उस बच्चे की नज़र से देखने की कोशिश करिए, जो आंगनवाडी में जाता है और उसकी ‘मैडम’ को तीन महीने से वेतन नहीं मिला है. एक बार आंगनवाडी वर्कर के चश्मे से भी देखने की कोशिश कीजिए. आपको साफ नजर आ जाएगा कि आपके कई आईएएस अधिकारियों की कर्मठता की वजह से आम जनता का सिर्फ मनोबल ही नहीं कमर भी रोज टूट रही है.

5. समस्या यह है कि गरीब आंगनबाड़ी वर्कर के पास आवाज नहीं है. जो बच्चे आंगनवाड़ी में आते हैं, उनकी भी आवाज नहीं है. चार आईएएस आपके पास रोने आते हैं, तो आप उन्हें अपने कमरे में बैठाकर चाय भी पिलाते हैं और तुरन्त उन्हें मंत्री की बैठकों में न आने का अभयदान भी दे देते हैं. अगर 30 हजार आंगनवाड़ी वर्कर्स के कुछ लोग भी आपसे अपना दुखड़ा रोने आना चाहें, तो आपके कार्यालय से दो किलोमीटर दूर से पुलिस उन्हें इतने डंडे मारेगी कि वो दो हफ्ते तक बिस्तर से नहीं उठ पाएंगे. आपके सचिव, जो खुद आईएएस अधिकारी हैं, वो डीसीपी को फोन करेंगे और आंगनवाड़ी वर्कर तो क्या, उनकी चीखने चिल्लाने की आवाज भी आपके राजनिवास की दीवारों तक नहीं पहुंच पाएगी.

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6. सोने से पहले की रात को 12 बजे अगर एक आंगनवाड़ी वर्कर आपके दरवाजे पर कहने आए कि मेरा तीन महीने से चूल्हा नहीं जला, तो आप क्या करेंगे? पुलिस कमिश्नर को रात में ही घर पर बुलाकर उन आईएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर तैयार करवाएंगे, जो तीस हजार परिवारों को मौत की ओर धकेलने के जिम्मेदार है या फिर आपके राजनिवास का सुरक्षा इंचार्ज थाने में फोन कर उन्हें दो डंडे लगवाएगा और रातभर हवालात में बंद करवाएगा. अपने आसपास के अधिकार सम्पन्न कुछ लोगों के शोर को सच मान लेंगे, तो आम आदमी की आवाज आपको कभी सुनाई नहीं देगी.

7. राजनिवासों और सचिवालयों में बैठी व्यवस्था का सच समझने की कोशिश करिए सर!  मेरी लड़ाई इसी व्यवस्था से है. इन आईएएस अधिकारियों से हमारी कोई लड़ाई थोडे़ ही है. ये सब भी हमारे ही घर परिवारों से आए लोग हैं. इनमें से कुछ बहुत निष्ठा और ईमानदारी से काम कर रहे हैं. तमाम फतवों के बावजूद काम कर रहे हैं. बीते तीन सालों में मैं अनेक ऐसे अधिकारियों से मिला हूं, उनके साथ मधुर-सम्मानजनक रिश्ते बनाकर काम किया है, जिन्हे काम करने में मज़ा आता है. महिला एवं बाल विकास विभाग की निदेशक जितनी मेहनत से काम करती हैं, उनकी नीयत या योग्यता पर शक नहीं है, लेकिन कहीं तो कोई गड़बड़ कर रहा है. तीन महीने से वेतन न मिलना महज़ संयोग तो नहीं हो सकता, लेकिन जैसे ही आप शोर-शराबे में मनोबल टूटने की बात को शह देते हैं, आपके इशारे पर सबसे पहले वो लोग चिल्लाते हैं, जिन्होंने पूरी जिंदगी कोई काम नहीं किया और जमकर पैसा कमाया है, उन्हें ही मेरे जैसे मंत्रियों के व्हाट्सऐप पर तुरत-जवाबदेही तय करने में, देर तक काम करने में, फील्ड में जाने में दिक्कत है.

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 8. आपकी चिट्ठी ने ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ा दिया है. अगर ये गरीब आंगनवाड़ी वर्कर्स का वेतन तीन-तीन महीने तक रोक कर रखेंगे, तो मैं तो इनसे लड़ूंगा. आप तय कर लें कि आपको किस तरफ खड़े होना है. एलजी और सर्विस विभाग का प्रमुख होने के नाते मेरी आपसे विनती जरूर है कि इनकी सैलरी रोकने के लिए जिस भी विभाग का जो भी अधिकारी जवाबदेह हो, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करें. अगर आप ऐसा करेंगे, तो जनता का मनोबल भी बढे़गा और काम करने वाले अफसरों का भी.

9.  ईश्वर ने हम दोनों को मौका दिया है. हमें मंत्री के रूप में मौका मिला है, तो हम आंगनवाड़ी वर्कर की आवाज और मनोबल को मजबूत करेंगे. इन आंगनवाड़ी केंद्रों में आने वाले पांच लाख बच्चों के भविष्य के लिए लड़ेंगे. आप एलजी के रूप में ऐसे कामों को लटकाने वाले अधिकारियों का मनोबल बढ़ाइए. अपनी-अपनी समझ के अनुसार अपना-अपना धर्म निभाते हैं. इस धर्मयुद्ध का अंजाम तो समय ही तय करेगा.

10. एक और अर्ज है कि अबकी बार जब आईएएस यूनियन वाले लोग आपके पास आएं, तो इनसे पूछिएगा जरूर कि आंगनवाड़ी से जुड़े 30 हजार परिवारों का वेतन रोकने के बाद खुद को आईने के सामने कैसे खड़े कर पाते हैं. मैं पूछूंगा, तो ये आसूं बहाने लगेंगे.

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