
वह एक अलख जगाकर गई थी. खुद हमेशा के लिए सो गई थी, पर देश को जगा गई थी. आज उसकी मां इंसाफ की लड़ाई लड़ रही है. ताकि उस नाबालिग रेपिस्ट की रिहाई रुक सके. ताकि हजारों बच्चियों के ऐसे हजारों अपराधी कुछ तो खौफ खाएं.
वही मां जब उस नाबालिग की रिहाई होने से एक रात पहले सड़कों पर उतर जाती है तो पूरा शासन-प्रशासन हिल जाता है. जो दिल्ली महिला आयोग उस रेपिस्ट के पुनर्वास की योजनाएं बना रहा था, उसी की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल आधी रात को सुप्रीम कोर्ट जज के घर भागती हैं. अपील करती हैं कि इस रेपिस्ट की रिहाई नहीं होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्रार भी सुनवाई के लिए मामला मंजूर कर लेते हैं और सोमवार की तारीख भी दे देते हैं. लेकिन यह सब तब होता है जब रात में ही वे मां-बाप इंसाफ के लिए धरना देने लगते हैं. इस प्रदर्शन को मजबूत होते देख पुलिस उन्हें जबरन हटा देती है. अब वही मां एक बार फिर तीन साल पहले जैसा आंदोलन करने की अपील कर रही है, ताकि सरकार नींद से जागे और इस रेपिस्ट को उसकी सजा मिल सके. उस मां के कई सवाल हैं, आक्रोश है, अहसनीय पीड़ा है और एक अपील है...
'तीन साल में सरकार ने क्या किया? क्या सबक लिया? हमारा दर्द सबने समझा. लेकिन इस कानून व्यवस्था और प्रशासन ने नहीं समझा. हमने तीन साल इंतजार किया. मैं पीएम के पास भी गई. सालभर पहले उन्होंने मुझे आश्वासन दिया. पर आज जब वो रिहा हो रहा है तो सब लोगों ने अपने हाथ खड़े कर लिए. सब कानून की दुहाई दे रहे हैं. क्या एक क्रिमिनल कानून तोड़कर अपराध कर सकता है?
पूरी कायनात एक अपराधी को बचाने के लिए एक हो गई. जब मेरी बच्ची मर रही थी, जब हजारों बच्चियां आज मर रही हैं तो क्या इस प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं है. आपको तो घूमने से ही फुर्सत नहीं मिली. आज मैं सड़क पर खड़ी होकर चिल्ला रही हूं और हमारे पीएम योग सीख रहे हैं. किसी को कुछ करना ही नहीं है. आज मैं नाकाम हो गई. तीन साल की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं. एक क्रिमिनल जीत गया. एक विक्टिम की मां हार गई.
लेकिन नहीं! यह लड़ाई अभी जारी है. मुझे मेरी बेटी की तकलीफ ने सब सिखा दिया. 10 दिन मेरी बच्ची जिंदा रही, पर उसे एक घूंट पानी तक नहीं मिला. जब वो जाने लगी तो मैंने उससे वादा किया था- इंसाफ का. इंसाफ के लिए ही हमें रात में मजबूरन सड़क पर उतरना पड़ा. लेकिन पुलिस ने हमें वहां से गाड़ी में भरके हटा दिया. ज्योति के पिता की शर्ट फट गई. जब हम रात में सड़क पर उतरे तो सुप्रीम कोर्ट जाया गया. क्या यह पहले नहीं सोच सकते थे?
लेकिन हम असहाय नहीं हैं. असहाय है हमारी कानून व्यवस्था . हमें गुस्सा आता है खोखले वादों पर कि महिलाओं की सुरक्षा करेंगे और जब करने की बारी आती है तो अपराधी को बचाने में जुट जाते हैं. अगर किसी नेता, मंत्री की बेटी से बलात्कार हो जाएगा तो कानून भी बदल जाएगा. पर उन्हें गरीबों की परवाह नहीं है. हमारी आंख खुलती है और हम पूरे-पूरे दिन बाहर घूमते हैं कि कहीं से इंसाफ मिल जाए. अब कैसी घटना होगी तो ये अपना रूल बदलेंगे?
भगवान तो आकर कानून नहीं बनाता ना. इंसान ने ही बनाया होगा कानून. समय के साथ सरकारें बदल जाती हैं, कानून बदल जाते हैं. अब तो अपनी आंखें खोलो. ये सिर्फ एक बेटी के इंसाफ की लड़ाई नहीं है, हजारों बच्चियों की लड़ाई है. सरकार समय रहते सजा नहीं देती है तो बहुत बड़ा आंदोलन होगा. आज हम जंतर-मंतर से इस आंदोलन की शुरुआत करेंगे. हम आप सभी से अपील करते हैं कि इस लड़ाई में हमारा साथ दें.'