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दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार के कंडोम की मूल्य सीमा तय करने के आदेश को शुक्रवार को खारिज कर दिया. सरकार ने कंडोम को दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) में शामिल किया है. अदालत ने कहा कि फार्मा मूल्य प्राधिकरण के जरिए इस संबंध में जारी आदेश अवैध और कानूनी तौर पर टिकाऊ नहीं है.
चीफ जस्टिस जी रोहिणी और जस्टिस राजीव सहाय एंडला की पीठ ने राष्ट्रीय फार्मास्युटिकल मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) के नवंबर, 2013 और 10 जुलाई, 2014 के आदेशों को खारिज कर दिया . इन आदेशों के जरिए ही कंडोम की मूल्य सीमा तय की गई थी. कोर्ट ने कहा कि एनपीपीए के आदेश गैर-कानूनी हैं और टिकाऊ नहीं हैं. ऐसे में दोनों आदेशों को रद्द किया जाता है.
दो कंपनियों ने दी थी याचिका
कोर्ट का यह आदेश दो फार्मा कंपनियों रेकिट बेंकाइजर और जेके एंसेल लिमिटेड (जेकेएएल) की याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया है. इन कंपनियों की दलील है कि उनके उत्पाद ‘उपकरण’ हैं, दवाएं नहीं. ऐसे में यह डीपीसीओ के तहत नहीं आते.
‘आनंद के लिए कंडोम’ की अलग सीमा?
कंपनियों ने दावा किया था कि उनके उत्पाद लग्जरी उत्पाद हैं और ‘आनंद के लिए’ हैं. कंपनियों ने यह स्पष्टीकरण मांगा था कि क्या मौजूदा सीमा सिर्फ यूटिलिटी कंडोम पर लागू होगी और क्या एनपीपीए की ‘आनंद के लिए कंडोम’ की अलग सीमा तय करने का प्रस्ताव करता है.
हालांकि, सरकार का कहना था कि चूंकि कंडोम बीमारियों से बचाते हैं इसलिए ये दवाओं के वर्गीकरण के तहत आते हैं. ऐसे में इनका मूल्य नियंत्रित रहना चाहिए. सरकार का यह भी कहना था कि यदि लक्जरी कंडोम को डीपीसीओ के दायरे से हटा दिया जाएगा तो विनिर्माता बाजार को कंडोम की महंगी किस्मों से पाट देंगे और सस्ते कंडोम बाजार में उपलब्ध नहीं होंगे.
- इनपुट भाषा