
शिक्षा का व्यवसायीकरण तो पहले ही हो चुका है और अब स्कूल परिसरों के अंदर शिक्षा से इतर दूसरे व्यापार भी किए जाने लगे हैं. दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में इसी तरह की कमर्शियल एक्टिविटीज को लेकर हाई कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अपनी नाराजगी जताई.
पैरेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि नियमानुसार दिल्ली में जितने भी स्कूल हैं, उनमें किसी भी प्रकार की कमर्शियल एक्टिविटी नहीं की जा सकती, और अगर कोई स्कूल ऐसा करता है तो उस स्कूल की मान्यता तक रद्द की जा सकती है. याचिका में कहा गया है कि दिल्ली के ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों में किताबों की दुकानें है. इन दुकानों पर अधिक कीमत पर बच्चों की पढ़ाई से जुड़ी किताबें बेची जाती हैं. इतना ही नहीं स्कूल के अंदर चल रही दुकानों में वर्दी भी मंहगी मिलती है, और यह सब कर्मिशियल एक्टिविटीज हैं. इसलिए ये दुकानें बंद होनी चाहिए.
पैरेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान उसकी दलीलें सुनने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट की एक्टिंग चीफ जस्टिस ने सीबीएसई और शिक्षा निदेशालय को कड़ी फटकार लगाई. हाई कोर्ट ने सीबीएसई और शिक्षा निदेशालय से सवाल किया कि जब स्कूलों के अंदर दुकान चलाना नियमों के अनुसार कमर्शियल एक्टिविटी है, तो इसकी इजाजत कैसे दी गई.
गौरतलब है कि इसी मुद्दे पर दायर एक पीआईएल पर दिल्ली हाइकोर्ट की एक सिंगल बेंच भी सुनवाई कर रही है. एक्टिंग चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने इसलिए दोनों याचिकाओं को क्लब करके एक साथ सुनवाई के लिए भेज दी है.
ज्ञात हो कि राजधानी के दिल्ली के लगभग सभी प्राइवेट स्कूलों में नियम-कानून की धज्जी उड़ाते हुए धड़ल्ले से किताब और यूनिफॉर्म की दुकानें खुली हुई हैं. बाकायदा इन दुकानों का लाखों रुपये का टेंडर हो रहा है. दोनों याचिकाओं में स्कूलों के अंदर चल रही ये दुकानें बंद करने की मांग की गई है. हाई कोर्ट अब मामले की अगली सुनवाई 12 दिसंबर को करेगा.