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निर्भया कांड: तीन साल बाद कितनी सुरक्षित है दिल्ली?

निर्भया के साथ हुई इस हैवानियत के विरोध में दिल्ली सहित देश भर में लोग सड़कों पर उतर आए. पुलिस के खिलाफ नारेबाजी के साथ जमकर तोड़फोड़ हुई. पुलिस ने निर्भया के आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस घटना से बहुत सवाल खड़े हुए. क्या निर्भया कांड के बाद दिल्ली में महिलाओं के साथ दरिंदगी रुकी है, क्या महिलाएं आज भी सुरक्षित हैं.

मुकेश कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2015,
  • अपडेटेड 7:44 PM IST

तीन साल पहले, आज की ही तारीख यानी 16 दिसंबर, 2012 को निर्भया के साथ गैंगेरप हुआ था. चलती बस में 5 लोगों ने एक मेडिकल स्टूडेंट के साथ दरिंदगी की सारी इंतेहा पार कर दी थी. जख्मी हालत में उसको अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां कई दिनों तक वो बिस्तर पर पड़ी जिंदगी और मौत की जंग लड़ती रही और आखिरकार उसकी मौत हो गई.

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निर्भया के साथ हुई इस हैवानियत के विरोध में दिल्ली सहित देश भर में लोग सड़कों पर उतर आए. पुलिस के खिलाफ नारेबाजी के साथ जमकर तोड़फोड़ हुई. पुलिस ने निर्भया के आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस घटना से बहुत सवाल खड़े हुए. क्या निर्भया कांड के बाद दिल्ली में महिलाओं के साथ दरिंदगी रुकी है, क्या महिलाएं आज भी सुरक्षित हैं.

दिल्ली पुलिस ने इस घटना के बाद महिलाओं को तीन साल पहले भरोसा दिलाया था कि अब महिलाएं सुरक्षित रहेंगी. रात को बिना किसी डर के घरों से बाहर निकल सकती है. लेकिन आज भी महिलाएं दिल्ली में घरों से निकलने पर डरती हैं. मुनीरका के जिस बस स्टैंड पर निर्भया बस में बैठी थी. उसी बस स्टैंड पर खड़ी एक लड़की ने बताया कि उसे आज डर लगता है.

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हाल ही में महिलाओं के साथ-साथ मासूम बच्चियों के साथ भी दरिंदगी के मामले सामने आए. कहीं दो साल की बच्ची को हैवानों ने अपनी बुरी नीयत का शिकार बनाया, तो कहीं पांच साल की बच्ची का बचपन रौंदा गया. दिल्ली में महिलाओं के साथ ज्यादती कम होने की बजाए लगातार बढ़ी है. इस बात के गवाह खुद रेप से संबंधित दिल्ली पुलिस के आंकड़े हैं.

साल    रेप की घटनाएं
2012    756
2013    1636
2014    2166
2015    1856 (अक्टूबर तक)

इन आंकड़ों से साफ है कि राजधानी में महिलाएं आज भी सुरक्षित नहीं हैं. उनकी सुरक्षा को लेकर दिल्ली पुलिस ने तमाम नियम कानून बनाएं. नए मोबाइल एप्स लांच किए ताकि महिला किसी मुसीबत में हो तो फौरन उसके जरिए उसकी मदद की जा सके. हर थाने में महिलाओं की सुनवाई के लिए महिला हेल्प डेस्क बनवाई गई, लेकिन स्थिति आज भी जस की तस है.

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