
दिल्ली जनलोकपाल बिल 30 नवंबर को विधानसभा में पेश किया जाएगा. उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया बिल को सदन के सामने रखेंगे. आज तक के पास केजरीवाल सरकार के उस जनलोकपाल बिल की एक्सक्लूसिव कॉपी है, जिसका ड्राफ्ट आने वाले दिनों में पेश किया जाना है.
बिल में जनलोकपाल को एक तरफ तो भ्रष्टाचार के मामलों में उम्रकैद तक की सजा से लेकर ऐसे मामलों में जांच के लिए कई अधिकार दिए गए हैं. वहीं जनलोकपाल की चयन समिति के चार सदस्यों में मुख्यमंत्री से लेकर दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष को सदस्य बनाया गया है. साथ ही उपराज्यपाल को चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है.
केजरीवाल सरकार का सबसे अहम मुद्दा
केजरीवाल सरकार का सबसे बड़ा मुद्दा जनलोकपाल ही रहा है. दिल्ली विधानसभा का सत्र एक हफ्ते सिर्फ इसलिए बढ़ाया गया, ताकि इस बिल को विधानसभा से पास करवाया जा सके. नए जनलोकपाल बिल के दायरे में राजधानी के अंदर काम कर रहे सभी विभागों के भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों की जांच जनलोकपाल करेगा, जिनमें केंद्र सरकार के दिल्ली पुलिस, डीडीए और एमसीडी जैसे विभाग भी शामिल है.
जनलोकपाल को सजा देने का अधिकार
भ्रष्टाचार के मामलों में 6 महीने से लेकर उम्रकैद तक की सजा देने का अधिकार जनलोकपाल को दिया गया है. भ्रष्टाचार की वजह से होने वाले आर्थिक नुकसान की पांच गुना राशि तक भ्रष्टाचारियों से वसूलने का प्रावधान भी है.
लेकिन विवाद इस बात पर होने की आशंका है कि लोकपाल जांच कमेटी के चार सदस्यों में दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के अलावा बाकी तीन नेताओं को रखा गया है. इन तीनों में मुख्यमंत्री, विपक्ष के नेता और विधानसभा अध्यक्ष शामिल हैं. उपराज्यपाल चयन प्रक्रिया में शामिल नहीं होंगे और चयन कमेटी के फैसले को 30 दिनों में मानने के लिए भी बाध्य होंगे.
प्रशांत भूषण ने खड़े किए सवाल
बिल में कहीं भी ये जिक्र नहीं है कि जनलोकपाल मुख्यमंत्री या मंत्रिमंडल के सदस्यों की जांच कैसे करेगा. इसी को लेकर पहले लोकपाल आंदोलन की अहम धुरी रहे प्रशांत भूषण ने सवाल भी खड़े किए हैं.
सूत्रों की मानें, तो जनलोकपाल तीन सदस्यों की एक कमेटी होगी, जिसमें दो सदस्य और एक अध्यक्ष होगा. अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के जज रहे होने चाहिए. लोकपाल का कार्यकाल पांच साल का होगा और इन्हें दिल्ली विधानसभा में दो-तिहाई सदस्यों के प्रस्ताव पर उपराज्यपाल की अनुमति से हटाया तक जा सकेगा. जनलोकपाल, जांच के लिए जनलोकपाल जांच अधिकारी नियुक्त कर पाएंगे, जिनके पास पुलिस के पास मौजूद जांच के तमाम अधिकार होंगे.
फैसले को नहीं दी जा सकती चुनौती
लोकपाल जांच के लिए किसी भी केंद्रीय एजेंसी और किसी अन्य राज्य या केंद्रशासित प्रदेश की जांच एजेंसी की मदद लेने को भी स्वतंत्र होगा. बिल में ये भी कहा गया है कि लोकपाल के किसी भी फैसले को आगे किसी अन्य अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी.
केजरीवाल सरकार ने आनन-फानन में विधानसभा में जनलोकपाल बिल पेश करने का फैसला तो कर लिया है. लेकिन विरोधी सरकार पर निशाना साधने के लिए कमियां जरूर ढूंढेंगे, जिनका जवाब सरकार को बिल पास कराने से पहले देना तो पड़ेगा ही.