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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नोटबंदी को लेकर किए गए फैसले के लगभग 60 दिन होने वाले हैं. आइए जानें केंद्र सरकार के इस फैसले ने किन तीनों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है.
1. मेक इन इंडिया
नोटबंदी के कारण भारत दुनिया की सबसे तेज दौड़ती अर्थव्यवस्था से सबसे तेजी से धीमी पड़ती अर्थव्यवस्था में बदल गया है. मेक इन इंडिया को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार लाने वाला निजी निवेश बढ़ाने के मकसद से शुरू किया गया था. भारत के जीडीपी में निवेश का हिस्सा लगभग 30 फीसदी है जिसमें अधिकांश निवेश निजी क्षेत्र का है. पिछले दो साल में तमाम कोशिशों के बावजूद मांग में कमी और कर्ज के बोझ के कारण उद्योगों ने नए निवेश का जोखिम नहीं लिया. नोटबंदी के बाद उत्पादन और मांग में भारी कमी को देखते हुए अगले कई महीनों के लिए निवेश का उत्साह लगभग खत्म हो जाने वाला है.
नोटबंदी ने छोटे उद्योगों को सबसे ज्यादा बदहाल किया है. अत्यंत छोटी उत्पादन व ट्रेडिंग इकाइयां 95 फीसदी रोजगार का आधार हैं. जीडीपी गणना के नए फॉर्मूले के मुताबिक छोटे उद्योग जीडीपी में 37 फीसदी का हिस्सा रखते हैं. निर्यात में इनका हिस्सा लगभग 45 फीसदी है. वैसे भी भारत के छोटे उद्योग अब केवल 6,000 छोटे उत्पादों तक सीमित हैं जो सामान्य तकनीक पर आधारित हैं. नोटबंदी के बाद बहुत सी इकाइयां ठप हो गईं, जिन्हें पुनः संचालित करना मुश्किल है और इनके बिना मेक इन इंडिया की दोबारा सक्रियता व रोजगार की वापसी असंभव है.
2. स्टार्ट अप
नोटबंदी से खपत बुरी तरह टूट गई है जो 60 फीसदी आर्थिक ग्रोथ का आधार है और भारत में निवेश का सबसे बड़ा आकर्षण है. उपभोक्ता उत्पाद, वाहन, पैक्ड फूड की मांग में तेज गिरावट के आंकड़े इसका प्रमाण हैं. दरअसल, पूरी स्टार्ट अप क्रांति इस उपभोग खपत पर निर्भर थी. ज्यादातर यूनीकार्न (एक अरब डॉलर से अधिक वैल्यूएशन वाले) स्टार्ट अप लोगों के शॉपिंग उपभोग पर आधारित हैं.
नोटबंदी से उपजी अनिश्चितता के कारण खर्च करने का उत्साह भी सीमित हो गया है. जब तक नकदी की आपूर्ति सामान्य नहीं होती और असमंजस खत्म नहीं होता, उपभोग खर्च के लौटने की गुंजाइश कम है. यही वजह है कि रोजगार का सबसे ज्यादा नुकसान स्टार्ट अप में हुआ है जहां पिछले दो साल में नौकरियां बनती दिख रही थीं.
3. जन धन
जन धन योजना नोटबंदी की अप्रत्याशित शिकार है. जद्दोजहद के बाद बैंकिंग की मुख्य धारा में आए सैकड़ों लोग अब आयकर और जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं. बैंकिंग में इनका विश्वास दोबारा जमाना मुश्किल होगा. फाइनेंशियल इन्क्लूजन की उलझन सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती. भारत की बैंकिंग मूलतः डिपॉजिट केंद्रित है. नोटबंदी के बाद बैंकों में डिपॉजिट का अंबार है और कर्ज सस्ता करने के लिए बैंक जमा की दर घटा रहे हैं. बैंकों के सबसे बड़े ग्राहकों यानी जमाकर्ताओं को अपने रिटर्न की कुर्बानी देनी पड़ रही है जिससे बैंकों में डिपॉजिट का आकर्षण घटता जाएगा. पढ़ें, नींव का निर्माण फिर... इंडिया टुडे में.