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ऐसा कई लोगों के साथ होता है कि लोगों को बचपन में पढ़ाई के बजाय खेलकूद में मन रमता है. किताबें काटने को दौड़ती हैं. माता-पिता चाह कर भी नहीं पढ़ा पाते. जेआईएस ग्रुप के नाम से पश्चिम बंगाल में 25 शिक्षण संस्थान चलाने वाले तरनजीत सिंह को भी ऐसी ही शख्सियत के तौर पर शुमार किया जा सकता है. वे आज 25,000 से अधिक छात्रों को बेहतर शिक्षा देने की दिशा में अग्रसर हैं. पढ़ें उनकी संघर्षमयी दास्तां...
बचपन में किताबों से रखते थे दूरी...
पंजाब जैसे प्रांत से ताल्लुक रखने वाले तरनजीत सिंह एक संभ्रांत सरदार परिवार का हिस्सा थे. बचपन के दिनों में वे किताबों के बजाय खेल के मैदान में समय बिताया करते. क्रिकेट, फुटबॉल और कुश्ती उनके पसंदीदा खेल थे. वे उन्हीं में रमे रहते. घर में दूध-दही की कमी न होने की वजह से वे भी इधर ही लगे रहते. स्कूल उन्हें डराते थे और माता-पिता भी कोई खास दबाव नहीं बनाते थे.
पिता लेकर गए थे इंग्लिश मीडियम स्कूल...
उनके पिता की अपने इलाके में ठीकठाक चलती थी. वे समझते थे कि वे तरनजीत को कहीं भी दाखिला दिला देंगे. उनके पास पैसे की भी कमी नहीं थी. एकबार वे नजदीक के एक अंग्रेजी स्कूल में तरनजीत का दखिला करवाने गए. वहां बच्चे और अभिभावक का अंग्रेजी बोलना अनिवार्य था. तमाम कोशिशों के बावजूद तरनजीत का दाखिला नहीं हुआ.
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बाद के दिनों में चलाने लगे शिक्षण संस्थान...
समय बीतने के साथ-साथ उनका धंधा बढ़ता गया. पैसों की कोई कमी नहीं रही लेकिन उनके पिता को यह बात हमेशा चुभती रही कि तरनजीत को चुने गए स्कूल में दाखिला नहीं मिला. वे चाहते थे कि तरनजीत जरूरतमंद स्टूडेंट्स के लिए स्कूल खोलें. हालांकि उन दिनों प्राइवेट स्कूल नहीं खोले जा सकते थे. उन्होंने बाद के दिनों में ITI समेत 25 इंजीनियरिंग व मेडिकल संस्थान खोले. वे आज 25,000 स्टूडेंट्स को क्वालिटी शिक्षा देने के पथ पर अग्रसर हैं. वे जोध-इंदर सिंह ग्रुप यानी जेआईएस ग्रुप के प्रबंध निदेशक हैं.