अच्छे दिनों की आस में झारखंड के ये इलाके...

झारखंड में विकास सिर्फ मंत्री विधायक के बयानों में या फिर नौकरशाहों के किताबी योजनाओं तक ही सीमित है. इसका सबूत रांची से महज चंद किलोमीटर दूरी पर मौजूद मेसरा इलाके के बीसियों गांव हैं.

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अच्छे दिनों की आस में झारखंड अच्छे दिनों की आस में झारखंड

सुरभि गुप्ता / धरमबीर सिन्हा

  • रांची,
  • 02 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 10:00 PM IST

झारखंड को बने लगभग सोलह साल होने वाले हैं, लेकिन जिस सपने को लेकर झारखंड का निर्माण हुआ था. वो आज भी सपना ही है, दरअसल नागरिक सुविधाओं के नाम पर तमाम सरकार ने लोगों को छला ही है, जिसकी वजह से नागरिकों को मिलने वाली सुविधाएं आज भी सिफर हैं.

कागज पर हैं विकास की योजनाएं
विकास सिर्फ मंत्री विधायक के बयानों में या फिर नौकरशाहों के किताबी योजनाओं तक ही सीमित है. इसका सबूत है रांची से महज चंद किलोमीटर दूरी पर मौजूद मेसरा इलाके के बीसियों गांव, जिनमें रहने वाले हजारों लोगों को आज भी आवागमन के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है, वो भी बिना पतवार के.

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अभी भी नाव का सहारा
नाव के सहारे नदी पार करने का नजारा झारखंड के किसी सुदूरवर्ती इलाके का नहीं है, बल्कि ये रांची से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मेसरा इलाके का है. इस इलाके के तुरफा, साल्हन, नवा टोली, गुडली पोखर जैसे बीसियों गांव ऐसे हैं, जो आज भी शहरों से कटे हैं. इस इलाके से होकर बहने वाली नदी पर आज तक न तो कोई पुल बना है और न ही कोई सड़क. इस वजह से आज भी यहां के लोग और स्कूली बच्चे जान-जोखिम में डाल कर आवागमन के लिए नावों पर निर्भर हैं.

बहुत से इलाके और भी हैं
झारखंड के दूसरे इलाकों में भी स्तिथियां कमोबेश ऐसी ही हैं. चक्रधरपुर के जिला मुख्यालय से सटे चेलाबेड़ा गांव से होकर गुजरने वाली संजय नदी में आज भी पुलिया नहीं है. जिसकी वजह से बरसात के मौसम में दूसरे ओर बसे करीब पचास गांवों का संपर्क चक्रधरपुर से टूट जाता है.

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तैरकर पढ़ने जाते हैं बच्चे
यहां तो स्कूली बच्चों को हांडियों में बैठकर नदी पार कराया जाता हैं. जो बड़े हैं, वो तैरकर किनारा पार कर लेते हैं. लेकिन इस जद्दोजहद के लिए बच्चों को किताबें बचाने की चिंता रहती है. यही नहीं साथ में एक गमछा भी रखना पड़ता है और नदी पार करने के बाद भीगे कपड़े को शरीर से उतारकर सुखाने के बाद ही स्कूल जा पाते हैं. इतनी मेहनत के बाद भी स्कूल जाने में देर होने की वजह से इन्हें शिक्षा ठीक प्रकार से नहीं मिल पाती है.

डेवलपमेंट के नाम पर हजारों करोड़
वहीं ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा का कहना है कि मामला संज्ञान में आया है और जल्द ही कार्रवाई होगी. इन दिनों सूबे में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर हजारों करोड़ फूंके जा रहे हैं. वहीं झारखंड में हो रहे विकास को दिखाने के लिए मुख्यमंत्री रोड शो भी करने वाले हैं. ऐसे में ये तस्वीरें यह सोचने पर जरूर मजबूर करती हैं कि विकासवाद का नारा कहीं एक अदद चुनावी नारा भर तो नहीं था. दूसरी तरफ लोग आज भी अच्छे दिनों की आस में है.

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