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देश को राष्ट्रीय गीत देने वाले शख्स का नाम था 'बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय'. उनका जन्म 27 जून सन् 1838 को उत्तरी चौबीस परगना के कन्थलपाड़ा में एक परंपरागत और समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था.
- बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय बंगला के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे. भारत के राष्ट्रीय गीत 'वन्दे मातरम्' उनकी ही रचना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम
के काल में क्रान्तिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गया था. रवीन्द्रनाथ ठाकुर के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्यकारों में उनका अन्यतम स्थान है.
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- बंकिमचंद्र की शिक्षा हुगली कॉलेज और प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में हुई. साल 1857 में उन्होंने बीए पास किया और 1869 में कानून की डिग्री हासिल की. प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी.ए. की उपाधि लेने वाले ये पहले भारतीय थे. इसके बाद उन्होंने सरकारी नौकरी की और 1891 में सरकारी सेवा से रिटायर हुए. उनका निधन अप्रैल 1894 में हुआ. शिक्षा समाप्ति के तुरंत बाद डिप्टी मजिस्ट्रेट पद पर इनकी नियुक्ति हो गई. कुछ काल तक बंगाल सरकार के सचिव पद पर भी रहे. रायबहादुर और सी. आई. ई. की उपाधियां पाईं.
कैसे की राष्ट्रीय गीत की रचना
बंकिमचंद्र ने जब इस गीत की रचना की तब भारत पर ब्रिटिश शासकों का दबदबा था. ब्रिटेन का एक गीत था 'गॉड! सेव द क्वीन'. भारत के हर समारोह में इस गीत को अनिवार्य कर दिया गया. बंकिमचंद्र तब सरकारी नौकरी में थे. अंग्रेजों के बर्ताव से बंकिम को बहुत बुरा लगा और उन्होंने साल 1876 में एक गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया 'वन्दे मातरम्'.
शुरुआत में इसके केवल दो ही पद रचे गये थे जो संस्कृत में थे. इन दोनों पदों में केवल मातृभूमि की वन्दना थी. आगे का हिस्सा बांग्ला में लिखा गया, जो मां दुर्गा की स्तुति
है.
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राष्ट्रीय गीत के रूप में मिली पहचान
स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्रगान के चयन की बात आई तो वन्दे मातरम् के स्थान पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाये गये गीत जन गण मन को वरीयता दी गई. इसकी वजह यही थी कि कुछ मुसलमानों को 'वन्दे मातरम्' गाने पर आपत्ति थी, क्योंकि इस गीत में देवी दुर्गा को राष्ट्र के रूप में देखा गया है. इसके अलावा उनका यह भी मानना था कि यह गीत जिस आनन्द मठ उपन्यास से लिया गया है वह मुसलमानों के खिलाफ लिखा गया है.
इन आपत्तियों के मद्देनजर साल 1937 में कांग्रेस ने इस विवाद पर गहरा चिन्तन किया. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति, जिसमें मौलाना अब्दुल कलाम आजाद भी शामिल थे, ने पाया कि इस गीत के शुरुआती दो पद तो मातृभूमि की प्रशंसा में कहे गए हैं, लेकिन बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का जिक्र होने लगता है. इसलिये यह निर्णय लिया गया कि इस गीत के शुरुआती दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया गया. इस तरह गुरुदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर के जन-गण-मन अधिनायक जय हे को यथावत राष्ट्रगान ही रहने दिया गया और मोहम्मद इकबाल के कौमी तराने सारे जहां से अच्छा के साथ बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारम्भिक दो पदों का गीत वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 में 'वन्दे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा, जिसे स्वीकार कर
लिया गया.
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डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद का संविधान सभा को दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है:
'शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन गण मन से सम्बोधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है; बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे और वन्दे मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है; को जन गण मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले. मैं आशा करता हूं कि यह सदस्यों को सन्तुष्ट करेगा.'