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कहीं आपका बच्चा इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन का शिकार तो नहीं...

आज के डिजिटल युग में ‘बिना इंटरनेट सब सून' वाली स्थिति है. बदलते परिवेश में बच्चों के दोस्त, खेल का मैदान, पार्क, सबकुछ इंटरनेट के एक एप्लीकेशन पर सिमट गया है. आउटडोर गेम्स से ज्यादा तवज्जो अब इनडोर गेम्स को भी नहीं बल्कि इंटरनेट गेम्स को मिलने लगी है.

कहीं आपका बच्चा इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन का शिकार तो नहीं... कहीं आपका बच्चा इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन का शिकार तो नहीं...
रोशनी ठोकने
  • नई दिल्ली,
  • 22 जनवरी 2017,
  • अपडेटेड 12:36 AM IST

आज के डिजिटल युग में ‘बिना इंटरनेट सब सून' वाली स्थिति है. बदलते परिवेश में बच्चों के दोस्त, खेल का मैदान, पार्क, सबकुछ इंटरनेट के एक एप्लीकेशन पर सिमट गया है. आउटडोर गेम्स से ज्यादा तवज्जो अब इनडोर गेम्स को भी नहीं बल्कि इंटरनेट गेम्स को मिलने लगी है.

हर 48 मिनट में एक बच्ची बनती है हवस की शिकार

इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन की गिरफ्त में जाना आसान है लेकिन उससे बाहर निकलना काफी मुश्किल. एक्सपर्ट के मुताबिक इंटरनेट पर गेम खेलने की लत बच्चों को ना सिर्फ शारीरिक और मानसिक रुप से बीमार करती है बल्कि ये बच्चे के व्यक्तित्व विकास के लिए एक बड़ा खतरा है.

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हाल ही में एक 16 साल के स्कूली बच्चा इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन का शिकार हो गया. इलाज के लिए उसे बीएलके अस्पताल लाया गया. बीएलके हॉस्पिटल के साईकोलॉजिस्ट डॉ मनीष जैन ने पाया कि बच्चा रोजाना 8-8 घंटे इंटरनेट पर ऑनलाइन गेम्स खेलता है. जिसकी वजह से उसने खाना-पीना लगभग छोड़ दिया. उसका वजन भी 10 किलो कम हो गया. गेमिंग एडिक्शन की वजह से बच्चे ने स्कूल जाना छोड़ दिया. दोस्तों के साथ बाहर खेलना-कूदना बंद कर दिया. अपने माता-पिता से बुरा बर्ताव करने लगा. हालात तब बुरे हो गए जब इंटरनेट नहीं चलने की वजह से वो चिड़चिड़ा और गुस्सैल हो गया. डॉक्टर के मुताबिक इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन का ये मामला बेहद गंभीर था.

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क्या है इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन
एक स्टडी के मुताबिक 12 से 20 साल के किशोर बच्चों में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर काफी आम है. यहां तक कि नॉर्थ अमेरिका और यूरोप के मुकाबले एशियाई देशों में इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर के मामले ज्यादा प्रचलित हैं.

हालांकि अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के बढ़ते मामलों पर स्टडी कर रहा है, इसलिए अब तक इसे बीमारियों की सूची में शामिल नहीं किया गया है. लेकिन जिस तेजी से इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के मामले दुनिया भर में बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए एक्सपर्ट को ये डर है कि कहीं जल्द ही इसे बीमारी का दर्जा न मिल जाएगा.

क्यों इंटरनेट गेमिंग की तरफ बढ़ रहा है बच्चों का रुझान?
इंटरनेट पर मिलने वाले रोमांचक ऑनलाइन गेम्स अब बच्चों के दिलों-दिमाग पर हावी हो रहे हैं. हर सेंकड बदलती दुनिया...और पल पल बढ़ता रोमांच.... रंग-बिरंगे थीम के साथ म्यूजिक का कॉम्बिनेशन... कंप्यूटर या फिर मोबाइल की एक छोटी सी स्क्रीन पर एक ऐसा वर्चुअल वर्ल्ड होता है, जो बड़े-बड़ों को लुभाता है. फिर छोटे बच्चों का इनकी तरफ आकर्षित होना लाजिमी है.

दरअसल ऑनलाइन गेमिंग के दौरान स्क्रीन हर सेंकड नए अवतार में नजर आती है. रोमांच ज्यादा होता है. कई ऑनलाइन गेम्स मल्टीप्लेयर होते हैं, जिसमें अनजान बच्चे भी ग्रुप बनाकर एकसाथ गेम खेलते हैं.

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एक-दूसरे को हराने और जीतने की होड़ में बच्चे लगातार कई राउंड खेलते रहते हैं. 10 मिनट का गेम कब घंटे-दो घंटो में बदल जाता है बच्चों को पता ही नहीं चलता और यही से शुरू होता है गेमिंग एडिक्शन. जो कि बढ़ते बच्चों के विकास के लिए बहुत बड़ा खतरा है.

इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन क्यों है खतरनाक...
- ज्यादा वक्त इंटरनेट गेम्स खेलने वाले बच्चों की फोकस करने की क्षमता कम हो जाती है.
- ऐसे बच्चों का झुकाव ज्यादातर नेगेटिव मॉडल्स पर होता है.
- बच्चों में धैर्य कम होने लगता है.
- बच्चे पावर में रहना चाहते हैं.
- सेल्फ कंट्रोल खत्म हो जाता है.
- कई बार बच्चे हिंसक हो जाते हैं.
- बच्चे सोशल लाइफ से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं.
- बच्चे के व्यवहार और विचार दोनों पर इंटरनेट गेमिंग का असर देखा गया है.
- बच्चे मोटापे और डाइबिटीज का शिकार हो जाते हैं.
साइकोलॉजिस्ट डॉ पूजा शिवम जेटली के मुताबिक अगर एक बार बच्चे को इंटरनेट गेमिंग की लत लग जाती है तो फिर बिना इंटरनेट के रहना बच्चे के लिए मुश्किल हो जाता है. बच्चे इंटरनेट की जिद करते ही हैं. माता-पिता के मना करने पर कई बार बच्चे अग्रेसिव हो जाते हैं.

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गंगाराम अस्पताल के सीनियर कन्सल्टेंट प्रवीण भाटिया के मुताबिक स्टडी में पाया गया है कि डिवाइस और गैजेट्स की वजह से बच्चों में मोटापा तेजी से बढ़ रहा है. यहां तक बच्चे डाइबिटीज का भी शिकार हो रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि ऑनलाइन गेम्स खेलने वाला हर बच्चा गेमिंग एडिक्शन का शिकार है. लेकिन एक्सपर्ट के मुताबिक गेम खेलने का शौक कब आदत में बदल जाए, इसके लिए माता-पिता को बच्चे की गतिविधियों पर नजर बनाए रखना होगा.

कुछ जरुरी टिप्स जो आपके बच्चों को इंटरनेट गेमिंग एडिक्शन के शिकार होने से बचा सकते हैं.
- माता पिता ये तय करें कि बच्चे को किस उम्र में कौन सा गैजेट/गेम या डिवाइस देना है.
- नन्हे-मुन्नों को बिजी रखने के लिए मोबाइल पर गाने या Poem ना दिखाएं.
- बच्चों को इंटरनेट का इस्तेमाल पढाई सम्बन्धी जरुरी काम के लिए ही करने दें.
- अगर बच्चा इंटरनेट पर गेम खेलता है तो गेम्स खेलने का वक्त तय करें.
- आधे घंटे से ज्यादा इंटरनेट गेम्स न खेलने दें.
- आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें.
- अगर बच्चा इंटरनेट गेम्स को ज्यादा वक्त देने लगा है तो उसे रोकें.
- बच्चे इंटरनेट पर क्या करता है कौन सा गेम खेलता है उस पर नजर रखें.
कैसे पहचानें की बच्चा गेमिंग एडिक्शन का शिकार है...
- अगर बच्चा रोजाना इंटरनेट पर ज्यादा वक्त बिता रहा है तो सतर्क हो जाइए.
- बच्चा गुमसुम रहने लगेगा और व्यवहार में बदलाव आएगा.
- एडिक्शन की वजह से बच्चा स्कूल और पढाई से जी चुराएगा.
- बच्चा सोशल लाइफ से दूरी बनाकर अकेले रहना पसंद करेगा.
- एडिक्शन की वजह से बच्चा चिड़चिड़ा हो सकता है. अग्रेसिव हो सकता है.
- बच्चे का रूटीन बदल जायेगा, खाने-पीने के साथ नींद भी डिस्टर्ब हो सकती है.
- गेम नहीं खेलने देने की वजह से बच्चा हिंसक भी हो सकता है.
अगर आपका बच्चे में ऐसे लक्षण हैं तो बिना देरी करे मनोचिकित्सक से मिलिए. बच्चे का मानसिक और भावनकत्मक रूप से ख्याल रखिए. लेकिन बच्चे के सुरक्षित भविष्य के लिए बढ़ते बच्चों को इंटरनेट का उतना ही इस्तेमाल करने दें जितना जरूरी है. कहीं ऐसा न हो कि इंटरनेट गेमिंग का नशा आपके बच्चे को बीमार कर दे.

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