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रायपुर में स्वास्थ्य सेवाएं चौपट, डॉक्टर बनाए गए हैं बाबू...

छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों का हाल बेहाल है. इस बात का सही-सही अंदाजा राजधानी रायपुर के सरकारी अस्पतालों की दशा को देखकर लगाया जा सकता है. राज्य की राजधानी होने की वजह से यहां मुख्यमंत्री से लेकर आलाधिकारियों की मौजूदगी दर्ज होती है. तमाम सरकारी विभागों के विभागाध्यक्ष भी यहीं बसते हैं. ऐसे में यह सोचना लाजमी है कि राज्य के दूरस्थ अंचलों के बजाय रायपुर में स्वास्थ्य सेवाएं कारगर और गुणवत्ता वाली होनी चाहिए लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है. पढें क्या है वास्तविकता?

रायपुर जिला अस्पताल रायपुर जिला अस्पताल
सुनील नामदेव
  • नई दिल्ली,
  • 23 जून 2017,
  • अपडेटेड 5:07 PM IST

छत्तीसगढ़ के सरकारी अस्पतालों का हाल बेहाल है. इस बात का सही-सही अंदाजा राजधानी रायपुर के सरकारी अस्पतालों की दशा को देखकर लगाया जा सकता है. राज्य की राजधानी होने की वजह से यहां मुख्यमंत्री से लेकर आलाधिकारियों की मौजूदगी दर्ज होती है. तमाम सरकारी विभागों के विभागाध्यक्ष भी यहीं बसते हैं. ऐसे में यह सोचना लाजमी है कि राज्य के दूरस्थ अंचलों के बजाय रायपुर में स्वास्थ्य सेवाएं कारगर और गुणवत्ता वाली होनी चाहिए लेकिन वास्तविकता इसके ठीक उलट है. पढें क्या है वास्तविकता?

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रायपुर के सभी 35 सरकारी अस्पतालों का बुरा हाल है. इसकी मुख्य वजह है कि विशेषज्ञ डॉक्टरों को डॉक्टरी के बजाय सरकारी दफ्तरों में बाबू बना दिया गया है. जबकि अस्पतालों में मरीजों का इलाज जूनियर डॉक्टरों के हवाले है. इंटर्नशिप करने वाले जूनियर डॉक्टर आम मरीजों से लेकर गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीजों का इलाज कर रहे हैं. दरअसल, सरकार के एक आदेश ने मरीजों की जान सांसत में डाल दी है. सीनियर डॉक्टरों को प्रशासनिक कार्यों में संलग्न कर दिया गया है.
ज्यादातर डॉक्टर राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम के संचालन प्रभारी बन गए हैं. बचेखुचे डॉक्टर गैर स्वास्थ्य सेवाओं से जोड़ दिए गए हैं. मलेरिया की रोकथाम के लिए तैनात डॉक्टर अश्वनी देवांगन को खाद्य विभाग का सहायक आयुक्त बना दिया गया है. जिला अस्पताल के सिविल सर्जन मूलतः नेत्र चिकित्सक हैं, लेकिन इन्हें DHS ऑफिस में प्रभारी बना दिया गया है. यही हाल महेंद्र सिंह और नेतराम बेक नामक डॉक्टरों का है. दोनों बच्चों के डॉक्टर हैं लेकिन उन्हें भी DHS ऑफिस में पदस्थ कर उनसे बाबूगिरी का काम कराया जा रहा है.

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गौरतलब है कि डॉक्टरों का मूल काम मरीजों की चिकित्सा कर उनकी जान बचाना है, लेकिन रायपुर जिले में 300 से ज्यादा डॉक्टर गैर चिकित्स्क कार्यो में लगा दिए गए हैं. नतीजतन तमाम सरकारी अस्पतालों में मरीजों की चिकित्सा जूनियर डॉक्टरों के अलावा स्टॉफ नर्स और कम्पाउंडरो के हाथों में है. दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के अभाव में कई बार मरीजों को निजी चिकित्सालयों में दाखिल होना पड़ रहा है. ऐसे में जब राज्य के स्वास्थ्य संचालक एन के शुक्ला से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने बाबूगिरी कर रहे तमाम डॉक्टरों के परीक्षण करवाने की बात कही. उन्होंने यह भी कहा कि विशेषज्ञ डॉक्टरों का लाभ मरीजों को मिलना चाहिए. उनके मुताबिक जांच के बाद डॉक्टरों को उनके मूल पद पर भेजे जाने की प्रक्रिया शुरू होगी.

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