
25-26 जून 1975 की रात को जब पूरा देश सो रहा था, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया. आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र के काले दिनों में से एक माना जाता है. इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विपक्ष के तमाम बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. वाजपेयी ने जेल में रहकर आपातकाल के विरोध में कविताएं लिखीं.
पूरे देश को जेल में बदल दिया गया था और विरोधी स्वर को दबा दिया गया था. रातो-रात समाचार पत्रों पर पांबदी, लोगों के इकठ्ठा होने पर पांबदी, विरोध जताने पर पांबदी और ऐसा करने वाले संभावित जननेताओं की गिरफ्तारी के फरमान जारी हुए.
25 जून 1975 की उस काली रात ने 26 जून के समाचार पत्रों के संपादकीय लेखों को निगल लिया. रातो-रात सैंकड़ों प्रमुख राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया गया.
इसके विरोध में 14 नवंबर 1975 से 26 जनवरी 1976 तक चलने वाला महासत्याग्रह, लोकतंत्र की बहाली के लिए किया गया दुनिया का सबसे बड़ा अहिंसात्मक सत्याग्रह माना जाता है. इस दौरान कई भूमिगत कार्यकर्ता अपनी असली पहचान उजागर होने के कारण पकड़े भी गए और प्रताड़ित होकर कई प्रकार की यातनाओं के शिकार भी हुए.
कैदी रहे नेता और कवि अटल बिहारी वाजपेयी देश में हो रहे इन भूमिगत आंदोलनों से अवगत होते रहते थे. इस पीड़ा से निकली उनकी पहली कविता...
अनुशासन के नाम पर अनुशासन का खून
भंग कर दिया संघ को कैसा चढ़ा जुनून
कैसा चढ़ा जुनून, मातृ-पूजा प्रतिबंधित
कुटिल कर रहे केशव-कुल की कीर्ति कलंकित
कह कैदी कविराय, तोड़ कानूनी कारा
गूंजेगा भारत माता की जय का नारा.
अटल की यह कविता सबको प्रेरणा देती थी, नए आंदोलनकारियों को बल देती थी.
आपातकाल के एक वर्ष पूरे होने पर भी अटल बिहारी जेल में थे. तब उन्होंने यह कविता लिखी...
झुलसाता जेठ मास
शरद चांदनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया.
सींखचों में सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया.
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया.