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कांग्रेस ही नहीं, भारतीय राजनीति में परिवारवाद से कोई भी दल अछूता नहीं

देश की सभी सियासी पार्टियां परिवार के रोग से ग्रस्त हैं. कई राजनेता और कई दल इसी की चपेट में हैं, लेकिन अक्सर बहस सिर्फ गांधी परिवार के संदर्भ में होती है और बाकी के सियासी परिवारों पर नहीं.

मां सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी मां सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 7:57 AM IST

राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी की प्रक्रिया शुरू हो गई है. कांग्रेस की कमान राहुल के हाथों में आने से फिर एक बार कांग्रेस पर वशंवाद के सवाल उठने लगे हैं, जबकि सच्चाई ये है कि कांग्रेस ही नहीं, बल्कि वामपंथी दलों को छोड़कर शायद ही कोई दल हो जो वंशवाद से अछूता हो.

देश की सभी सियासी पार्टियां परिवार के रोग से ग्रस्त हैं. कई राजनेता और कई दल इसी की चपेट में हैं, लेकिन अक्सर बहस सिर्फ गांधी परिवार के संदर्भ में होती है और बाकी के सियासी परिवारों पर नहीं. कांग्रेस पर वंशवाद का सवाल खड़ी करने वाली बीजेपी भी अछूती नहीं है. इस तरह महज कांग्रेस पर ही सवाल उठाना सही नहीं होगा.

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नेहरू-गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी हैं राहुल गांधी

राहुल गांधी नेहरू-गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी से हैं. राहुल के परनाना जवाहर लाल नेहरू से लेकर दादी इंदिरा गांधी और पिता राजीव गांधी तक देश के प्रधानमंत्री और पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं. राहुल परिवार के छठे शख्स हैं, जो कांग्रेस की कमान अपने हाथों में लेने जा रहे हैं. मौजूदा दौर में राहुल की मां सोनिया गांधी जहां कांग्रेस से सांसद हैं तो वहीं चाची मेनका गांधी और चचेरे भाई वरुण गांधी बीजेपी से सांसद हैं.

देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा

देश में सबसे बड़ा सियासी कुनबा मुलायम सिंह यादव का है. मुलायम परिवार के दो दर्जन से ज्यादा लोग राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. मुलायम परिवार के सदस्य सांसद से लेकर पंचायत तक में काबिज हैं. सपा के मौजूदा पांचों सांसद मुलायम परिवार से हैं. उनके बेटे अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिलहाल पार्टी के अध्यक्ष हैं.

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मुलायम की राह पर माया

परिवारवाद से तौबा करने वाली मायावती ने भी मुलायम की राह अपनाई है. बीएसपी में दूसरे नंबर का दर्जा देते हुए उन्होंने अपने भाई आनंद कुमार और भतीजे अकाश को पार्टी में अहम पद से नवाजा है. इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पार्टी रालोद (आरएलडी) पर उनके बेटे अजित सिंह का कब्जा है. उन्होंने अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए बेटे जयंत चौधरी को भी पार्टी में अहम भूमिका दे रखी है.

बिहार का सियासी कुनबा

बिहार की सियासत में लालू प्रसाद यादव का सबसे बड़ा राजनीतिक कुनबा है. लालू की पार्टी में उनकी पत्नी राबड़ी देवी उनके जेल जाने के बाद मुख्यमंत्री रहीं और अब बेटी राज्यसभा सांसद हैं. इसके अलावा लालू के दोनों बेटे तेज प्रताप यादव और तेजस्वी नीतीश कुमार के साथ गठबंधन सरकार में मंत्री रहे हैं. इसी तरह रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा (एलजेपी) में भी है. पासवान के बेटे चिराग पासवान भी राजनीति में 2014 में उतरे और सांसद बने.

दक्षिण का सियासी परिवार

दक्षिण भारत की पार्टियों में भी परिवारवाद की जड़ें काफी गहरी हैं. तमिलनाडु की महत्वपूर्ण पार्टी डीएमके जिसे करुणानिधि ने स्थापित किया है. करुणानिधि के परिवार के लोग डीएमके पर पूरी तरह से काबिज हैं. मौजूदा समय में डीएमके की कमान करुणानिधि के बेटे स्टालिन के हाथों में है. उनके नाती दयानिधि मारन और बेटी कनिमोझी भी पार्टी में काबिज हैं.

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कश्मीर में भी है वंशवाद

जम्मू-कश्मीर की दोनों प्रमुख पार्टियां वंशवाद से ग्रसित हैं. जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला परिवार की नेशनल कॉन्फ्रेंस की तीसरी पीढ़ी उमर अब्दुला के हाथों में पार्टी की कमान है. उनके पिता फारुक अब्दुला सांसद हैं. इस तरह मुफ्ती मुहम्मद सईद की पार्टी पीडीपी की कमान उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती के हाथों में है. महबूबा मुफ्ती मौजूदा समय में जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री हैं.

पंजाब का सियासी घराना

पंजाब में सियासी घराने ही राजनीति में अहम भूमिका अदा कर रहे हैं. अकाली दल की कमान जहां बादल परिवार के हाथों में है, तो वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस में है. यही दोनों परिवार पंजाब की सियासत में पूरी तरह से काबिज हैं. इसके अलावा बलराम जाखड़ और मजीठिया तक के परिवार राज्य की सियासत में है.

महाराष्ट्र का ठाकरे परिवार

महाराष्ट्र की सियासत में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना में पूरी तरह से परिवारवाद का कब्जा है. बालासाहेब ठाकरे ने यह पार्टी बनाई और अपने बेटे उद्धव ठाकरे को राजनीतिक विरासत सौंपी. उद्धव ने अपने बेटे आदित्य को युवा विंग की कमान सौंप दी है.

हरियाणा में तीन लाल के परिवारवाद

देवी लाल, बंसी लाल और भजन लाल का कभी हरियाणा की राजनीति पर दबदबा हुआ करता था. ये तीनों नेता अब नहीं रहे, लेकिन प्रदेश की राजनीति पर उनके परिवारों का असर बना हुआ है. इन तीनों का जिक्र हरियाणा की राजनीति में परिवारवाद का पर्याय बन गए. मौजूदा दौर में इन्हीं तीनों परिवार का सियासत में कब्जा है.

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बीजेपी में परिवारवाद की बड़ी फौज

कांग्रेस के परिवारवाद पर सवाल उठाने वाली बीजेपी भी वंशवाद की राजनीति से ग्रसित है. बीजेपी की सियासत में लंबी चौड़ी फौज परिवारवाद से आई है. विजयाराजे सिंधिया की एक बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया दूसरी बार राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी हैं तो उनकी दूसरी बहन यशोधरा राजे सिंधिया शिवराज सिंह चौहान की कैबिनेट में मंत्री हैं. वसुधंरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह बीजेपी से ही सांसद हैं.

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे सांसद हैं तो उत्तर प्रदेश के बीजेपी के सबसे बड़े नेता कल्याण सिंह के बेटे सांसद हैं और पोता विधायक व मंत्री है. कबिनेट मंत्री रविशंकर प्रसाद के पिता ठाकुर प्रसाद जनसंघ के बड़े नेता थे और बिहार में संविद (संयुक्त विधायक दल) सरकार में मंत्री भी थे. इसी तरह वर्तमान ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल के पिता वेद प्रकाश गोयल भी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री थे. वाजपेयी सरकार में बड़े मंत्री रहे यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं.

देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह नोएडा से बीजेपी विधायक हैं. हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री पीके धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर बीजेपी से सांसद हैं. केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी सुल्तानपुर से बीजेपी सांसद हैं. दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा पश्चिमी दिल्ली से सांसद हैं. दिवंगत बीजेपी नेता प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन मुंबई नॉर्थ सेंट्रल से लोकसभा सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद के बेटे कीर्ति आजाद सांसद हैं. लालजी टंडन के बेटे गोपालजी टंडन देवरिया से बीजेपी विधायक हैं और योगी सरकार में मंत्री हैं. लखीराम अग्रवाल के बेट अमर अग्रवाल छत्तीसगढ़ में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री हैं.

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