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Exclusive: NIA जांच से पाकिस्तान टेरर फंडिंग का परत-दर-परत खुलासा, हुर्रियत नेता बेनकाब

'आज तक' की पहुंच में ऐसे खास दस्तावेज हैं जिनसे साबित होता है कि NIA को 2011 में ही घाटी में 'टेरर फंडिंग' की कड़ी का पता था. पैसा कहां से आता है, किन हाथों से गुजरता हुआ कहां पहुंचता है, जांच में इस पूरी मनी ट्रेल का पता चलता है

सैयद सलाहुद्दीन सैयद सलाहुद्दीन
कमलजीत संधू/खुशदीप सहगल
  • नई दिल्ली,
  • 03 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 7:54 AM IST

'आज तक' ने पहले आपको 2017 के सबसे बड़े खुलासे से रू-ब-रू कराया. इसमें सबने हुर्रियत टेप्स के जरिए हुर्रियत नेताओं के काले सच को परत-दर-परत उधड़ते देखा. उन हुर्रियत नेताओं की कलई खुली, जो पाकिस्तान के पे-रोल पर रहते हुए घाटी की शांति को पलीता लगाते हैं. 'आज तक' के स्टिंग का घाटी से लेकर दिल्ली तक असर महसूस किया गया. हाफिज सईद (लश्कर), सैयद सलाहुद्दीन (हिजबुल मुजाहिदीन) और हुर्रियत नेताओं के खिलाफ FIR दर्ज हुई. इसी कड़ी में पेश हैं कुछ और खुलासे, कुछ और सबूत.

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इनसे पता चलेगा कि किस तरह 2011 से 2017 के बीच नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की जांच से पाक एजेंटों, अलगाववादियों और हिजबुल मुजाहिदीन की साजिश से पर्दा हटा, किस तरह हिजबुल मुजाहिदीन के सुप्रीम कमांडर सैयद सलाहुद्दीन की ओर से अलगाववादी नेताओं के साथ मिलकर घाटी में गड़बड़ियों को अंजाम दिया जा रहा है. जांच से पता चलता है कि किस तरह सैयद अली शाह गिलानी समेत अलगाववादी नेताओं को हिजबुल मुजाहिदीन की ओर से फंडिंग की जाती रही. कैसे हवाला रूट का इस्तेमाल किया गया? और कैसे हवाला लेनदेन के लिए कोड वर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता था.

हिजबुल मुजाहिदीन का सुप्रीम कमांडर सैयद सलाहुद्दीन, जिसे अमेरिका ने 'ग्लोबल टेरेरिस्ट' घोषित किया है, खुले तौर पर भारत को चुनौती देता है. इंटरव्यू देकर दावा करता है कि जम्मू-कश्मीर में हमले हिजबुल आतंकियों का ही काम है. ये सब नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की जांच के रडार पर है.

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सलाहुद्दीन ना सिर्फ हिजबुल मुजाहिदीन कैडर और इसके फ्रंटल संगठन JKART की आतंकी गतिवधियों को कमांड और कंट्रोल करता है बल्कि उनकी प्लानिंग और अंजाम तक पहुंचाने की हर बारीकी से भी जुड़ा रहता है. सलाहुद्दीन ने कश्मीर घाटी में अलगाववादियों से संवाद के लिए 0092561458 नंबर का इस्तेमाल किया. आतंकी संगठनों और अलगाववादियों की ओर से फैलाई जा रही गड़बड़ी की NIA जांच का ये हिस्सा है.

'आज तक' की पहुंच में ऐसे खास दस्तावेज हैं जिनसे साबित होता है कि NIA को 2011 में ही घाटी में 'टेरर फंडिंग' की कड़ी का पता था. पैसा कहां से आता है, किन हाथों से गुजरता हुआ कहां पहुंचता है, जांच में इस पूरी मनी ट्रेल का पता चलता है. कैसे हवाला रूट के जरिए हवाला पैसा पाकिस्तान से चल कर अलगाववादियों और हिजबुल मुजाहिदीन टेरर मोड्यूल्स तक पहुंचता है.  NIA की जांच के दस्तावेज में अलगाववादी नेताओं की भूमिका को लेकर इंडिया टुडे के स्टिंग का भी जिक्र किया गया है.

जांच से सामने आई मनी ट्रेल से हुर्रियत के कई नेता मुश्किल में पड़ सकते हैं. ऐसी ही कुछ मनी ट्रेल हम आपको बताने जा रहे हैं.

कैसे और किसे होती थी टेरर फंडिंग?

2011 में तहरीक-ए-हुर्रियत के सैयद अली शाह गिलानी के करीबी गुलाम मोहम्मद बट समेत चार लोगों को हवाला चैनल से पैसे के ट्रांसफर के सिलसिले में सलाखों के पीछे भेजा गया था. इन्हें पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन की ओर से पैसा भेजा गया था. ये पैसा घाटी में अलगाववादी और आतंकी गतिविधियों को बढा़वा देने के मकसद से भेजा गया था.

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नवंबर 2007 में ऊधमपुर में एक टाटा सुमो से 46,89,500 रुपए, हिजबुल मुजाहिदीन की मुहरें और तीन चिट्ठियां पकड़ी गई थी. ये पैसा हुर्रियत के सैयद अली शाह गिलानी तक पहुंचाया जाना था.

दिसंबर, 2000 में दिल्ली पुलिस ने दो नंबरों को इंटरसेप्ट किया था

9560872567 और +923335000846. ये नंबर पाकिस्तान स्थित हिजबुल मुजाहिदीन से जुड़े मकबूल पंडित का था. जिसका पता '25,गुलशन-ए-खुदाद, अलमेहर कॉलोनी, E-11, 13 A गोलरा शरीफ, इस्लामाबाद' का था. इनपुट्स के आधार पर बेमिना में एक मारूति कार को रोका गया. इसमें चार आरोपियों से 20 लाख रुपए की हवाला रकम बरामद की गई. इन आरोपियों के नाम थे- गुलाम मोहम्मद बट, गुलाम जिलानी लिलू, फारूक अहमद डग्गा और मोहम्मद सिदीक गनई. पाकिस्तान का रहने वाला मकबूल पंडित आतंकी गिरोहों और उनकी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान और सऊदी अरब से पैसा जुटाने की अहम कड़ी था. ये पैसा पाकिस्तान, सऊदी अरब, इंग्लैंड और अन्य देशों के रूट से होता हुआ भेजा जाता. सऊदी अरब में रह रहा ऐजाज़ मकबूल भी इसी नापाक नेटवर्क से जुड़ा था. ऐजाज़ का सऊदी अरब का पता था-शारा सिटीन, अंकाश, जेद्दा, सऊदी अरब. वहीं पाकिस्तान में उसका पता मकान नंबर 1163, बाबू मोहल्ला, सियालकोट का था.

मोहम्मद गनई पाकिस्तान गया था और वहां आईएसआई के कर्नल अब्दुल्ला और मेजर इकबाल के संपर्क में आया. गनई भारतीय पासपोर्ट पर वाघा के रास्ते पाकिस्तान गया था. लेकिन वो वापस पाकिस्तानी पासपोर्ट पर नेपाल के रास्ते 2003 में आया. मकसद घाटी में अलगाववादियों तक पैसा पहुंचाने का बंदोबस्त करना था. गनई ने दिल्ली के रहने वाले राजकुमार को उसकी बेटियों की शादी के लिए पैसा देकर अपने हाथों का खिलौना बना लिया. राजकुमार ने कई बार एक लाख से लेकर पांच लाख रुपए तक का हवाला पैसा कलेक्ट किया. राजकुमार के जरिए ही गनई राजीव ननकानी के संपर्क में आया. राजीव और कोई नहीं राजकुमार का ही करीबी रिश्तेदार था और गैंगरीन से पीड़ित था. गनई ने राजीव को इलाज के लिए 40,000 का भुगतान किया. राजीव को कारोबार और आईपीएल पर सट्टा लगाने पर 7 लाख रुपए का नुकसान हुआ था.

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हवाला लेनदेन के लिए 'दुकान खोल लो' जैसे कोड वर्ड्स का इस्तेमाल

हवाला लेनदेन के लिए कोड वर्ड्स का इस्तेमाल किया जाता. जैसे कि 'दुकान खोल कर रखो या खोल लो' का मतलब फोन को स्विच ऑन रखो. इसी तरह दवाई ले ली है का मतलब था कि पैसा ले लिया गया है. 5 लाख रुपए के लिए 5 किलो चीनी या दाल जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाता. 2008 से लेकर जनवरी 2011 तक गनई ने 4 करोड़ 57 लाख रुपए हवाला चैनल से इकट्ठा किए और आगे बांटे.

अब हम आपको बड़े फाइनेंशियल ट्रेल के बारे में बताते हैं, जिनसे जुड़े NIA दस्तावेज 'आज तक' के पास मौजूद हैं.

गिलानी समेत अलगाववादी नेताओं को कब-कब मिला पैसा

फरवरी 1999 में सैयद अली शाह गिलानी को 13000 अमेरिकी डॉलर मिले. गिलानी ने 6 लाख रुपए अपने पास रखे, 3 लाख रुपए गुलाम मोहम्मद बट को मिले.

मार्च 1999 में गिलानी को 11,000 अमेरिकी डॉलर हासिल हुए.

जून 2000 में गिलानी को 20 लाख रुपए का भुगतान हुआ.

अप्रैल 2005 में गिलानी को एक अज्ञात शख्स ने 15 लाख रुपए दिए.

2005-06 में गिलानी को नजीर कुरैशी ने 5 लाख रुपए सौंपे.

अप्रैल 2006 में अब्दुल्लाह मलिक ने गिलानी को 15 लाख रुपए दिए. मलिक ने ही जुलाई 2016 में गिलानी को 16 लाख रुपए सौंपे.

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दस्तावेज में आगे कहा गया है कि मोहम्मद मकबूल बट ने दिसंबर 2010 में अलगाववादी शबीर शाह को दो किस्तों में 20 लाख रुपए पहुंचाए. बट ने जेकेएलएफ दफ्तर में यासिन मलिक को नूर मोहम्मद कलवल के जरिए 10 लाख रुपए हर तिमाही के हिसाब से पहुंचाएं.

दिसंबर 2008 में मोहम्मद सिदीक गनई ने यासीन मलिक को 5 लाख रुपए सौंपे. दिसंबर 2009 में ये रकम बढ़कर 6 लाख और मार्च 2010 में 10 लाख हो गई. नवंबर 2010 में 10 लाख रुपए का और भुगतान किया गया.

सितंबर 2003 में लंदन के रहने वाले अयूब ठोकार और दुबई के मिलेनियम होटल में एक अज्ञात शख्स के बीच 50,000 डॉलर का लेनदेन हुआ. इस रकम को भारतीय मुद्रा में बदलकर हवाला चैनल से भारत पहुंचाया गया.

जून 1999 में मीरवायज मौलवी उमर फारूक को 10 लाख रुपए दिए गए. ये रकम इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर आयकर विभाग अधिकारियों ने जब्त कर ली थी.

जून 1998 में अब्दुल गनी लोन को 25000 अमेरिकी डॉलर मिले.

जून 1998 में ही अब्दुल गनी लोन को 25000 अमेरिकी डॉलर और मिले. लोन ने एक लाख रुपए अपनी बेटी को दिए और 7 लाख रुपए खुद रखे.

'आज तक' के हाथ लगे खास नोट के मुताबिक सैयद अली शाह गिलानी के करीबी नईम खान को भी फंडिंग मिलती रही है. नवंबर 2009 में नईम खान को उसके बारज़ुला निवास पर 5 लाख रुपए मिले थे. ये रकम नईम की पत्नी को मोहम्मद सिदीक गनई ने सौंपी थी. इस रकम का इंतजाम मोहम्मद फारूक डग्गा ने किया था. इसी तरीके से मार्च 2010 में नई को 10 लाख, मई-जून 2010 में 10 लाख और सितंबर 2010 में भी 10 लाख रुपए मिले थे.

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पत्थरबाजों के 28 व्हाट्सअप ग्रुप का पता चला

मौजूदा जांच के मुताबिक NIA ने 28 प्रमुख व्हाट्सअप ग्रुप्स का पता लगाया है जिनके जरिए घाटी में युवकों को पत्थरबाजी के लिए संगठित किया जाता है. इनके मॉडरेटर्स की पहचान की प्रक्रिया जारी है. करीब 6000 से 7000 युवक इन ग्रुप्स से जुड़े हैं और कथित तौर पर इशारा मिलते ही पथराव के लिए तैयार हो जाते हैं. इन सब युवकों को भी ट्रैक किया जा रहा है. एजेंसी के छापों के दौरान कुछ संदिग्धों के घर से लश्कर और हिजबुल मुजाहिदीन के लैटर हैड्स भी जब्त किए गए हैं.

15 जुलाई के बाद NIA की बड़ी कार्रवाई संभव: सूत्र

सूत्रों के मुताबिक हुर्रियत के बड़े नामों-  गिलानी, मीरवायज और यासिन मलिक के खिलाफ सबूत उपलब्ध है. सूत्रों का कहना है कि बुरहान वानी हफ्ते के बाद NIA टीम की ओर से संभवत: कार्रवाई की जा सकती है. कानून और व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस और NIA के बीच ये सहमति बनी है कि कोई भी कार्रवाई, छापेमारी या गिरफ्तारी 15 जुलाई के बाद ही की जाएगी.

 

NIA अब तक जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, गुड़गांव और सोनीपत में 26 ठिकानों पर छापेमारी कर चुकी है. इसमें जब्त किए गए 22 कम्प्यूटर्स-लैपटॉप्स, 94 मोबाइल, 170 पेन ड्राइव और 26 मेमोरी स्टिक्स को फॉरेन्सिक जांच के लिए इंडियन कम्प्यूटर एमरजेंसी रिस्पॉस टीम (CERT-IN) पहुंचाया गया है. क्या नए प्रमाण और पुराने सबूत हुर्रियत नेताओं पर निर्णायक कार्रवाई का आधार बनेंगे?

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