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ऑपरेशन मास्टरमाइंड: कोडवर्ड से चलता है आतंक का कारोबार

आतंक के काले कारोबार में इसके आकाओं ने एक पूरी डिक्शनरी बना रखी है. जो हमारे और आपके जैसे सामान्य शख्स नहीं समझ सकता. आतंक की दुनिया में सूट मिल गया का मतलब होता है कि क्या रेकी की तस्वीरें मिल गईं. आम भेजो का मतलब होता है हथियार भेजो.

आतंक का कारोबार कोडवर्ड से ही चलता है आतंक का कारोबार कोडवर्ड से ही चलता है
मुकेश कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 21 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 5:17 PM IST

पाकिस्तान में बैठे आतंक के आका आतंकी मिशन के दौरान कोडवर्ड का इस्तेमाल करते हैं. जी हां, वो जुमले जिसके मदद से आतंक के आका अपने रंगरुटों के साथ नापाक साजिशों का ब्लू प्रिंट भी तैयार कर लेते हैं. यदि किसी ने उनकी बातचीत सुन भी ली तो वो समझ नहीं सकता. क्योंकि उनके कोड को डिकोड करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

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आतंक का कारोबार कोडवर्ड से ही चलता है. आजतक के पास मौजूद एक क्लिप में पाकिस्तान में बैठे लश्कर कमांडर ने लश्कर के रंगरुट को दिल्ली तक फोन मिला दिया. लश्कर का रंगरुट प्रगति मैदान में मौजूद था.

आतंक के काले कारोबार में इसके आकाओं ने एक पूरी डिक्शनरी बना रखी है. जो हमारे और आपके जैसे सामान्य शख्स नहीं समझ सकता. आतंक की दुनिया में सूट मिल गया का मतलब होता है कि क्या रेकी की तस्वीरें मिल गईं. आम भेजो का मतलब होता है हथियार भेजो. अमेरिकी लड़की का मतलब होता है, IED विस्फोटक. दाना का मतलब होता है हथियार. आलू का मतलब होता है ग्रेनेड. राजमा का मतलब होता है कारतूस.

आतंक की भाषा में छोटा माल का मतलब हुआ पिस्तौल और बड़ा माल हुआ असॉल्ट राइफल. इसी तरह आतंक के आका अपने रंगरुटों से बात करने के लिए पढ़ा लिखा इस्तेमाल करते हैं, जिसका मतलब होता है आतंकी ट्रेनिंग. अमानत उठा लेना का मतलब होता है जाओ हथियार ले लो. कागज वाले काम का मतलब होता है हवाला के जरिए पैसे. इस तरह कोडवर्ड में बात करते हुए आतंकी वारदात को अंजाम देते हैं.

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पाकिस्तान में बैठकर आतंक के आका आतंकियों को सिर्फ निर्देश ही नहीं देते बल्कि आतंक के रंगरुटों की पहचान और पूरी तसल्ली भी फोन और ईमेल के जरिए ही करते हैं. इस कारोबार में मोबाइल फोन एक बड़ा हथियार बन गया है. आतंक की साजिश से लेकर नापाक हमलों को अंजाम देने का काम फोन पर ही होता है. आतंक का सरदार अपने रंगरुटों की पहचान भी फोन पर ही करता है. उनके दिमाग में जहर भी फोन से भरता है.

आतंक का खेल अब हाईटेक हो गया है. मोबाइल और सिम से लेकर ई-मेल आईडी तक. वो भी आकाओं को जी मेल का एड्रेस चाहिए. लेकिन एक बात तय है कि आतंक के आका अपने रंगरुटों को आतंक के मिशन में तब तक नहीं लगाते जब तक पूरी तसल्ली नहीं कर लेते. जब रंगरुटों को आतंक के मिशन में लगा दिया जाता है तो आका उन पर पूरी नजर रखते हैं, चाहे वे घाटी में हों या फिर दिल्ली में.

आजतक के पास मौजूद एक क्लिप में पाकिस्तान में बैठे लश्कर कमांडर ने लश्कर के रंगरुट को दिल्ली तक फोन मिला दिया. लश्कर का रंगरुट प्रगति मैदान में मौजूद था. उनकी बातचीत से साफ पता चला कि वह किसी खास खास काम में लगा हुआ था. हालांकि आतंक के आकाओं और आतंकियों के बीच की ये बातचीत थोड़ी पुरानी है, लेकिन आज भी स्टाइल यही है. आतंक के खेल में मोबाइल का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है.

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