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जानें कामयाबी की नई दास्तां लिखने वाले इन भारतीयों के बारे में

'कामयाबी नाम है जुनून का, एक ऐसे जज्‍बे का जिसे किसी बैसाखी की जरूरत नहीं होती है.' इस बात की मिसाल इन चुनिंदा शख्सियतों ने कायम की है. जानें उनके बारे में:

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aajtak.in
  • नई दिल्‍ली,
  • 02 अगस्त 2015,
  • अपडेटेड 10:50 AM IST

'कामयाबी नाम है जुनून का. एक ऐसे जज्‍बे का जिसे किसी बैसाखी की जरूरत नहीं होती है.'

यही बात साबित की है इरा सिंघल ने, जिन्‍होंने शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद सिविल सर्विस एग्‍जाम 2014 में अपनी कामयाबी का डंका बजाया. जानिए ऐसे ही दूसरे लोगों के बारे में जिन्‍होंने कभी शारीरिक अक्षमता को अपने लक्ष्‍य के आड़े नहीं अाने दिया:

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1. सुधा चंद्रन: क्‍लासिकल डांसर सुधा आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. महज 16 साल की उम्र में एक हादसे में उन्‍हें अपने पैर गंवाने पड़े थे. इसके बाद कृत्रिम पैरों पर उन्‍होंने वो मुकाम हासिल किया जहां पहुंचना हर किसी का सपना होता है.

2. रवींद्र जैन: संगीत की दुनिया का जाना-माना नाम हैं रवीेंद्र जैन. जन्‍मांध होने के बावजूद उन्‍होंने कभी अपनी इस कमजोरी को रास्‍ते की रुकावट नहीं बनने दिया. उन्‍होंने कई सुपरहिट गानों को संगीत देने के साथ ही अपनी आवाज भी दी.

3. शेखर नाइक: जन्‍मांध शेखर नाइक असल जिंदगी के नायक हैं. शेखर इंडियन ब्‍लाइंड क्रिकेट टीम के कप्‍तान हैं. उनकी गिनती सफल कप्‍तानों में होती है.

4. साई प्रसाद विश्‍वनाथन: साई शारीरिक रूप से अक्षम देश के पहले स्‍काईडाइवर हैं. उन्‍होंने 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्‍काईडाइविंग की है और उन‍का ये कारनामा लिम्‍का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है.

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5. अरुणिमा सिन्‍हा: भारत की अरुणिमा सिन्हा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला हैं. 2011 में पर्स छीनने की कोशिश कर रहे बदमाशों ने विरोध करने पर अरुणिमा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया था. इस वजह से उन्‍हें अपने पैर गंवाने पड़ गए थे. इस घटना के 2 साल बाद उन्‍होंने एवरेस्‍ट फतेह किया था.

6. मलाथी कृष्‍णामूर्ति होल्‍ला: बंगलुरू की अंतरराष्‍ट्रीय पैराएथलीट मलाथी कृष्‍णमूर्ति का शरीर बचपन में तेज बुखार आने की वजह से पैरालाइज हो गया था. रोजाना दो साल तक इलेक्ट्रिक शॉक देकर उनका ट्रीटमेंट किया गया. इस ट्रीटमेंट के बाद उनके शरीर का ऊपरी हिस्‍सा ठीक हो सका. उन्‍हें अब तक 300 मेडल मिल चुके हैं. उन्‍हें अर्जुन अवॉर्ड और पद्म श्री से भी सम्‍मानित किया जा चुका है.

7. राजेंद्र सिंह: मेन्स हेवीवेट, ओलंपिक में मेडल जीत चुके राजेंद्र जब आठ महीने के थे तभी उन्‍हें पोलिया हो गया था. आठ साल की उम्र तक उनकी मां उन्‍हें गोद में लेकर डॉक्‍टरों के पास ले जाया करती थी. पोलियो ठीक हो जाता है इस विश्‍वास में उन्‍होंने जिंदगी के 21 साल बिता दिए. लेकिन एक दिन उन्‍होंने अपनी शारीरिक अक्षमता को स्‍वीकार कर लिया और नई शुरुआत की. आज पूरे देश को उन पर गर्व है.

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8. एच रामाकृष्‍णन: महज दो साल की उम्र में दोनों पैरों में पोलियो हो जाने के बाद रामाकृष्‍णन को जिंदगी के हर मोड़ पर संघर्ष करना पड़ा. स्‍कूल से लेकर जॉब तक उन्‍हें बार-बार रिजेक्‍ट किया गया. इन सबके बावजूद उन्‍होंने 40 साल बतौर जर्नलिस्‍ट काम किया. संगीत में रुचि होने के चलते उन्‍होंने इसकी शिक्षा भी ली और कई स्‍टेज परफॉर्मेंस भी दीं. वर्तमान में वे शारीरिक तौर पर विकलांग लोगों की मदद के लिए खुद एक चैरिटेबल ट्रस्‍ट चला रहे हैं.

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