
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी तकरीबन 50 फीसदी तक बढ़ाने की मंजूरी जरूर दे दी, लेकिन आने वाले दिनों में वो विवाद की नई वजह बन सकती है. सीएम केजरीवाल के ऐलान से पहले ही दिल्ली के कारोबारियों ने अचानक इतनी मजदूरी बढ़ाने के प्रस्ताव पर अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है. फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स एंड कॉमर्स ऑफ इंडिया (फिक्की) ने एक चिट्ठी लिखकर दिल्ली के श्रम मंत्री गोपाल राय को ऐसा नहीं करने के लिए आगाह किया है.
कारोबारियों के इस संघ की ओर से सेक्रेटरी जरनल डॉ ए दीदार सिंह ने ये चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी में इस बात का जिक्र है कि 46 फीसदी बढ़ोतरी की वजह से दिल्ली में अति लघु और लघु कारोबार को भयंकर नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि यही वो सेक्टर हैं जो दिल्ली में सबसे ज़्यादा रोजगार उपलब्ध करवाता है.
पड़ोसी राज्यों की तुलना में पहले से न्यूनतम मजदूरी ज्यादा
फिक्की की इस चिट्ठी में इस बात का भी जिक्र है कि आखिरकार दिल्ली के पड़ोसी राज्यों में न्यूनतम मजदूरी कितनी है. दिल्ली में अलग-अलग श्रेणियों में पहले ही पंजाब की तुलना में मजदूरी 30 से लेकर 32 फीसदी
तक ज्यादा है. वहीं हरियाणा की तुलना में दिल्ली की मजदूरी पहले से 19 से लेकर 26 प्रतिशत तक अधिक है. उत्तर प्रदेश और राजस्तान में तो ये अंतर और कहीं बढ़ जाता है. उत्तर प्रदेश की तुलना में दिल्ली में
अलग-अलग श्रेणियों के मजदूरों को 32 से 35 फीसदी मजदूरी ज्यादा मिलती है तो राजस्थान और दिल्ली की न्यूनतम मजदूरी का अंतर तो 64 से लेकर 84 प्रतिशत तक है. इसके बाद अब दिल्ली में 46 फीसदी बढ़ोतरी
और प्रस्तावित है. ये अंतर कई गुना और बढ़ जाएगा. साथ ही साथ इस प्रस्ताव को लागू कराना मुश्किल होगा क्योंकि नौकरी देने वाले क्या न्यूनतम मजदूरी दे भी रहे हैं या नहीं, इस पर नजर रखना और मुश्किल
होगा. भ्रष्टाचार की गुंजाइश बनी रहेगी.
क्या होगा इसका असर?
कारोबारियों के संघ की मानें तो इससे दिल्ली में कारोबार करने वालों को एक और बड़ा झटका लगेगा. वो अपना बिजनेस समेट कर बाहर जाने को मजबूर हो जाएंगे. यानी केजरीवाल साहब के ऐलान से पहले ही
कारोबारियों ने इस प्रस्ताव को लाल झंडी दिखा दी थी. इसके बावजूद न सिर्फ केजरीवाल ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इस योजना का ऐलान किया बल्कि इसी हफ्ते ये प्रस्ताव कैबिनेट से पास कराने की भी तैयारी है.
दिल्ली सरकार के सूत्रों की मानें तो श्रम विभाग के इस प्रस्ताव पर सरकार के ही कई विभागों को आपत्ति है. कैबिनेट में प्रस्ताव पास भी हो गया तो उपराज्यपाल के पास पहुंच कर इस प्रस्ताव पर ब्रेक लग सकता है. इन सब बातों को जानते हुए केजरीवाल ने इस प्रस्ताव को लाने का रिस्क शायद इसलिए लिया है ताकि मजदूरों के बीच वो एक संदेश दे सकें कि वो उनकी भलाई के लिए लगे हुए हैं.