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बिहारः राज्यसभा की 5 सीटें, 3 पार्टियां और संकट उम्मीदवार चुनने का

बिहार से राज्यसभा के पांच सांसदों का कार्यकाल जुलाई में खत्म होने जा रहा है. इन पांचों सीटों के लिए राज्य की तीनों बड़ी पार्टियों में अपने-अपने उम्मीदवारों की सेटिंग शुरू हो चुकी है. लेकिन चयन इतना आसान भी नहीं है.

विकास वशिष्ठ
  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 3:21 PM IST

बिहार से जुलाई में राज्यसभा की पांच सीटें खाली होने जा रही हैं. हालांकि जुलाई में अभी वक्त है, लेकिन इन पांच सीटों पर एक अनार, सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. वह ऐसे कि इन पांच सीटों के लिए तीन पार्टियां आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी मुख्य दावेदार हैं. लेकिन इन पार्टियों में ही इतने दावेदार हैं कि खुद उनके लिए नाम तय करना मुश्किल हो रहा है.

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RJD: मीसा और राबड़ी की लड़ाई
आरजेडी से लालू प्रसाद की पत्नी राबड़ी देवी और उनकी बेटी मीसा भारती दौड़ में सबसे आगे हैं. बाकी तीन दावेदार रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह और मनोज झा भी हैं. लेकिन यह संभव नहीं कि पांचों सीटें आरजेडी को ही मिल जाएं. क्योंकि राज्यसभा का गणित ही ऐसा है.

तो पहले राज्यसभा का गणित ही जान लें
बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं. एक राज्यसभा उम्मीदवार को जीतने के लिए 41 विधायकों के वोट की जरूरत है. आरजेडी के 80 विधायक हैं और जेडीयू के 71. यानी दोनों पार्टियां दो-दो सीटें तो आसानी से जीत ही सकती हैं. दोनों को कांग्रेस का भी समर्थन हासिल है, जिसके 27 विधायक हैं.

अभी पांचों सीटें JDU की, किशोर नए दावेदार
फिलहाल ये पांचों सीटें जेडीयू की हैं- शरद यादव, केसी त्यागी, पवन वर्मा, गुराम रसूल और आरसीपी सिंह. दावेदार शरद यादव, त्यागी और वर्मा तो हैं ही. इनमें एक नया नाम और जुड़ गया है. नीतीश कुमार के कैंपेन आर्किटेक्ट प्रशांत किशोर.

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और बीजेपी को पूरा भरोसा- एक सीट तो मिलेगी
बिहार विधानसभा में मात्र 53 सीटें जीतने वाली बीजेपी को पूरा भरोसा है कि राज्यसभा में उसकी एक सीट तो पक्की है ही, जिसे कोई नहीं छीन सकता. पार्टी में इस एक सीट के लिए भी दो मुख्य दावेदार हैं. इनमें अभी तक सुशील मोदी और शाहनवाज हुसैन का नाम सामने आया है.

तो किस पार्टी के साथ क्या समस्या
RJD: मीसा और राबड़ी दोनों लालू परिवार से हो गईं. एक ही परिवार को दो नॉमिनी कैसे हो सकते हैं. परिवारवाद का आरोप लगेगा. लालू का पूरा परिवार पहले ही सेट है. एक बेटा मंत्री हो गया. एक डिप्टी सीएम, राबड़ी विधानपरिषद की सदस्य हैं. बची मीसा- जिनके लिए लॉबीइंग भी हो रही है. लेकिन रघुवंश प्रसाद और जगदानंद भी कम नहीं हैं. दोनों सांसद रह चुके हैं. दोनों का अच्छा जनाधार है. यानी अंदरखाने टकराव तो तय है.

JDU: शरद यादव पार्टी अध्यक्ष हैं. इनका नाम तो नॉमिनेशन में कटने से रहा. अब बचे केसी त्यागी, आरसीपी सिंह, वर्मा और प्रशांत किशोर . नीतीश छोड़ें तो किसे छोड़ें. आरसीपी उनके दाहिने हाथ. प्रशांत के आने से पहले स्ट्रैटजिस्ट भी रहे. केसी त्यागी वह शख्सियत जिसने नीतीश को पीएम मटीरियल बनाकर पेश किया. और इन सबके बीच उड़ता-उड़ता नाम नीतीश के इंजीनियर बेटे निशांत का. जाहिर है संकट तो है.

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और BJP: बीजेपी में ज्यादा माथापच्ची नहीं है. न तो विधायक ही इतने हैं कि पार्टी राज्यसभा में दो सीटें हथिया पाए और न दावेदारों की संख्या ही बहुत ज्यादा है. दो नाम हैं- शाहनवाज हुसैन और सुशील मोदी. हुसैन भागलपुर से सांसद रह चुके हैं, पर झारखंड से एमजे अकबर को भेजने के कारण पिछली बार भी उनका पत्ता कट गया था. बीजेपी मोदी को दिल्ली बुला बड़ी जिम्मेदारी देकर हुसैन साहब को सेट कर सकती है.

बहरहाल! जुलाई में अभी वक्त है और पार्टियां अपने-अपने रास्ते निकाल ही लेंगी. पर किसी न किसी को त्याग करना ही पड़ेगा.

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