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बिहार चुनाव में टिकट बांटने में परिजनों पर मेहरबान सियासतदान

बिहार चुनाव में बहुमत की जंग इस बार 'चुनाव एंड संस' के आसपास सिमटकर रह गई है. बिहार की राजनीति में यूं तो परिवारवाद पहले भी नजर आता रहा है. लेकिन इस बार दिग्गजों ने अपने बेटों पर बड़ा दांव लगा दिया है.

परिजनों को टिकट बांटने में कोई किसी से पीछे नहीं परिजनों को टिकट बांटने में कोई किसी से पीछे नहीं
aajtak.in
  • पटना,
  • 23 सितंबर 2015,
  • अपडेटेड 8:03 AM IST

बिहार चुनाव में बहुमत की जंग इस बार 'चुनाव एंड संस' के आसपास सिमटकर रह गई है. बिहार की राजनीति में यूं तो परिवारवाद पहले भी नजर आता रहा है. लेकिन इस बार दिग्गजों ने अपने बेटों पर बड़ा दांव लगा दिया है.

बेटों को विधानसभा पहुंचाने की तैयारी
लालू प्रसाद, रामविलास पासवान, जीतनराम मांझी और अश्विनी चौबे समेत कई बड़े नेता अपने बेटों, भाइयों और रिश्तेदारों को टिकट बांटकर उन्हें विधानसभा पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार में सियासी महाभारत का बिगुल बज चुका है. नेताओं ने भी पूरी तैयारी कर ली है. जनता भी बिहार और उसके नेताओं की तकदीर तय करने की घड़ी का इंतजार कर रही है. 243 सीटों की जंग में यूं तो हर पार्टी बहुमत की ख्वाहिश रखती है. मगर पार्टी जीते, इससे पहले परिवार जीते, रिश्तेदार जीतें, भाई-भतीजे जीतें...बिहार में अपनों को बांटी गई सीटों का समीकरण तो यही कहता है...

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लालू के दोनों बेटों को मिला टिकट
बिहार की राजनीति में दिग्गज पापा और चाचाओं ने बेटों, भतीजों और रिश्तेदारों पर सबसे ज़्यादा दांव लगाया है. लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी RJD के टिकट पर राघोपुर से चुनाव लड़ेंगे. लालू के दूसरे बेटे तेज प्रताप भी पापा की पार्टी से महुआ विधानसभा से चुनाव मैदान में हैं. NDA के साथी रामविलास पासवान ने तो बेटे चिराग पासवान को पार्टी की संसदीय बोर्ड का चेयरमैन बना दिया. इसके अलावा पासवान ने अपने भाई पशुपति पारस को लोक जनशक्ति पार्टी से टिकट दे दिया. पासवान ने भतीजे प्रिंस राज को भी सियासी राजकुमार बनाने के लिए चुनाव में उतार दिया.

करीबी रिश्तेदारों को मिला टिकट
रामविलास पासवान की करीबी रिश्तेदार सरिता पासवान भी लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगी. अपने एक और करीबी रिश्तेदार विजय पासवान पर भी रामविलास पासवान मेहरबान हुए हैं. हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी ने अपने बेटे संतोष कुमार सुमन को टिकट दे दिया है. बीजेपी के अश्विनी चौबे अपने बेटे अरिजीत शाश्वत को टिकट दिलाने में कामयाब रहे. बिहार बीजेपी के कद्दावर नेता डॉक्टर सीपी ठाकुर भी बेटे विवेक ठाकुर को टिकट दिलाने के ऑपरेशन में सफल रहे. बीजेपी के गंगा प्रसाद भी बेटे संजीव चौरसिया को टिकट दिलाकर उन्हें विधानसभा पहुंचाने की कोशिश में हैं.

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सियासी रहनुमाओं के पास जनता के लिए तमाम मुद्दे हैं. सैकड़ों वादे हैं, ढेरों उम्मीदें हैं. मगर, एजेंडा सेट है- परिवार के ज्यादा से ज्यादा लोगों को विधानसभा तक पहुंचाना. परिवारवाद की सियासत के लिए एक-दूसरे पर हमला करने वाली पार्टियों के बीच एसेम्बली इलेक्शन जैसे 'फैमिली इलेक्शन' बन गया है.

नीतीश को माननी पड़ी लालू की बात
लालू प्रसाद ने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को महुआ सीट से लालटेन का लोगो दे दिया है. छोटे बेटे तेजस्वी यादव को राघोपुर से विधानसभा भेजने की तैयारी है. लालू की जिद के आगे नीतीश कुमार को भी झुकना पड़ा. महागठबंधन का धर्म निभाने के लिए नीतीश को राघोपुर से अपने विधायक सतीश कुमार की सीट लालू के बेटे को देनी पड़ी. यादव बहुल सीट राघोपुर तेजस्वी के लिए आसान मानी जा रही है.

नीतीश व लालू खुद चुनाव मैदान से दूर
यह भी दिलचस्प है कि बेटों और भाई-भतीजों को विधायक बनाने के लिए टिकट बांटने वाले दिग्गज खुद चुनावी मैदान से दूर हैं. मुख्यमंत्री और महागठबंधन में भी सीएम का चेहरा बने नीतीश कुमार एक बार फिर चुनाव नहीं लड़ेंगे. वहीं, लालू ने भी तय कर लिया है कि वे बिहार में राजनीतिक विरासत बेटों को सौंप रहे हैं, इसीलिए न बेटी मीसा को टिकट दिया और न ही राबड़ी देवी को. ऐसा लगता है इस बार बिहार की सियासी जंग 'चुनाव एंड संस' के आसपास ही रहेगी.

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बेटों पर खेला जा रहा बड़ा दांव
लालू को जब मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी, तो उन्होंने पत्नी राबड़ी देवी को कमान सौंपकर परिवारवाद को बढ़ावा दिया था. अब उनके दोनों बेटे विधानसभा पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं. सिर्फ लालू ही नहीं, बल्कि रामविलास पासवान, जीतनराम मांझी और अश्विनी चौबे समेत बीजेपी के कई नेता भी बेटों पर बड़ा दांव खेल रहे हैं.

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