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पूर्व बीएसपी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य सोमवार को अमित शाह की मौजूदगी में भारतीय जनता पार्टी में शपथ लेकर शामिल हो गए. 22 जून को मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगते हुए मौर्य ने बीएसपी से इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफे के बाद मायावती ने मौर्य के आरोपों का जवाब देते उन्हें पार्टी से निष्काषित कर दिया था.
स्वामी को पार्टी में शामिल करने के पक्ष में नहीं थे केशव मौर्य
पिछले डेढ़ महीने में यूपी बीजेपी के प्रभारी ओम प्रकाश माथुर ने स्वामी प्रसाद मौर्य की दो बार बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात कराई. मौर्य बीजेपी में आएं इसका पूरा ताना बना ओम माथुर ने बुना है. ओम माथुर अच्छे से जानते हैं कि यूपी बीजेपी के अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य बिल्कुल नहीं चाहते थे कि स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी में शामिल हों.
कुर्मी वोट पर स्वामी का प्रभाव
सूत्रों की मानें तो यूपी बीजेपी अध्यक्ष ने स्वामी को लेकर अपनी नाराजगी केंद्रीय नेतृत्व को बता दी है. केशव मौर्य की नाराजगी के बाद भी पार्टी पूर्व बीएसपी नेता के ऊपर दांव इसलिए लगा रही है, क्योंकि पार्टी नेतृत्व को लगता है की केशव मौर्य की तुलना में स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी कुर्मी जाति के बड़े नेता हैं और उनका कुर्मी वोटर पर ज्यादा प्रभाव है. ओम माथुर ये बात अच्छे से जानते है कि यूपी में कुर्मी जाति के लगभग 6 प्रतिशत वोट बैंक है, जिसका पूर्वी उत्तर प्रदेश की 100 से ज्यादा सीटों पर अच्छा खासा प्रभाव है.
स्वामी के पास नहीं बचा था कोई रास्ता
बीएसपी छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य ने सबसे पहले अपनी पार्टी बनाने पर विचार किया था, और बीजेपी के साथ गठबंधन कर अपना दल की तरह यूपी विधानसभा चुनाव में जाने का प्लान बनाया था. लेकिन स्वामी के इस प्लान को अमित शाह और ओम माथुर ने मंजूरी नहीं दी. मौर्य ने कांग्रेस और समाजवादी से भी संपर्क किया था, लेकिन बात नहीं बनी. उसके बाद उन्होंने आरएलएसपी अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा के साथ यूपी चुनाव में जाने का मन बनाया था, लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा ने बीजेपी के दबाव में अपना हाथ वापस खींच लिया. इसके बाद स्वामी प्रसाद मौर्य के पास बीजेपी में शामिल होना ही एकमात्र विकल्प बचा था.
बीजेपी ने लाख कोशिशों के बाद एक बड़ा कैच पकड़ा है. लेकिन बीजेपी नेतृत्व को एक बात जरूर ध्यान में रखनी चाहिए कि बिहार चुनाव से पहले इसी तरह का एक मैच जिताऊ कैच बीजेपी ने पकड़ा था, जीतन राम मांझी के रूप में. जिसका चुनाव में फायदा कम नुकसान ज्यादा हुआ था.