
आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में इतनी बड़ी नगदी की लूट इससे पहले कभी नहीं हुई थी. साढ़े 22 करोड़ रुपए . जिसे रखने के लिए भी नौ-नौ बक्सों की जरूरत पड़ी थी. ऐसे में जब गुरुवार शाम कैश वैन से इतनी बड़ी रकम लूटने की खबर आई तो पुलिस के भी पसीने छूट गए. पुलिस ने फौरन अपनी पूरी ताकत झोंक दी और इसके बाद शुरू हुआ ऑपरेशन कैश-वैन. फिर 12 घंटे बाद जब ऑपरेशन खत्म हुआ तब पता चला कि ऐसे हुई थी देश की सबसे बड़ी लूट.
12 घंटे में सुलझी सबसे बड़ी लूट की गुत्थी
लूट की वही वारदात सिर्फ 12 घंटों में सुलझ गई. ना सिर्फ सुलझ गई बल्कि लूटे गए साढ़े 22 करोड़ रुपए के साथ-साथ इस वारदात का इकलौता मास्टरमाइंड और कैश वैन का ड्राइवर प्रदीप कुमार शुक्ला भी रात के अंधेरे में ही गिरफ्तार कर लिया गया.
लूट के बाद इधर पुलिस ड्राइवर की तलाश में चप्पा-चप्पा छान रही थी और उधर ड्राइवर अपनी ही दुनिया में खोया था. जब वो गिरफ्तार हुआ तो लूटे गए रुपए से जमकर दावत उड़ाने के बाद साढ़े 22 करोड़ रुपए के नोटों पर चादर तान कर चैन की नींद सो रहा था.
दिल्ली की इस सबसे बड़ी लूट की कहानी बेशक चौंकानेवाली है, लेकिन इसके पीछे ही साज़िश उतनी ही सतही. सतही इसलिए कि पहली नजर में पुलिस जिस लूट को महीनों की साजिश, कई दिनों की रेकी, इनसाइडर की मिलीभगत और कम से कम चार से पांच-बदमाशों की करतूत मान कर चल रही थी, वो सिर्फ और सिर्फ एक ड्राइवर के दिमाग की खुराफात निकली.
एक ऐसे ड्राइवर के दिमाग की खुराफात, जिसे अपनी सैलरी कम लगती थी और जो सैलरी देर से मिलने से नाराज था और बस इतनी सी बात ने उसे दिल्ली का सबसे बड़ा लुटेरा बना दिया. गुरुवार दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर ये कहानी पश्चिमी दिल्ली के विकासपुरी इलाके से शुरू हुई. दोपहर एक्सिस बैंक के चेस्ट से एसआईएस सिक्योरिटी की चार गाड़ियां कुल 38 करोड़ रुपए लेकर शहर के अलग-अलग एटीएम में कैश भरने के लिए रवाना हुईं. सभी की सभी गाड़ियों में ड्राइवर के साथ-साथ एक हथियारबंद सिक्योरिटी गार्ड भी था. इन्हीं गाड़ियों में एक वैन नंबर (डीएल 1के 9189) का प्रदीप कुमार शुक्ला था, जबकि गनमैन विनय पटेल. दोनों गाड़ी में रखे साढ़े 22 करोड़ रुपए लेकर ओखला इलाके के लिए रवाना हुए. लेकिन रास्ते में ही श्रीनिवासपुरी पहुंचने पर गनमैन पटेल को टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस हुई. उसने शुक्ला से गाड़ी रुकवाई और बस इसी पल ड्राइवर शुक्ला ने एक ऐसी साजिश बुन ली, जो अंजाम तक पहुंचते-पहुंचते दिल्ली की सबसे बड़ी लूट में तब्दील हो गई. तभी घड़ी में वक़्त हो रहे थे दोपहर के 3 बजकर 42 मिनट.
शुक्ला ने पटेल से कहा कि वो गाड़ी यू टर्न कर रोड के दूसरी तरफ़ आ रहा है. पटेल मना नहीं कर सका लेकिन इसके बाद शुक्ला साढ़े 22 करोड़ रुपए लेकर ऐसा भागा कि फिर देर रात पुलिस को ही नजर आया जब कई मिनट गुजर गए और शुक्ला वापस नहीं आया, तो गनमैन को शक हुआ. उसने शुक्ला को फोन किया, लेकिन शुक्ला ने कहा कि वो ट्रैफिक में फंस गया और बस लौटने ही वाला है लेकिन इसके बाद भी जब शुक्ला वापस नहीं गनमैन ने अपने ऑफिस में इसकी खबर दी. खबर सुनते ही एसआईएस सिक्योरिटी के अफसरों के हाथ पांव फूल गए.
जिस तरह लूट की इस सबसे बड़ी वारदात को अंजाम दिया गया था, उससे पुलिस को शुरू से यही लग रहा था कि इसके पीछे कई लोगों या किसी पेशेवर गैंग का हाथ है. इसी शक के बिनाह पर पुलिस ने ना सिर्फ दिल्ली के तमाम बॉर्डर सील कर दिए बल्कि नेपाल बॉर्डर तक टीम रवाना कर दी गई थी. और तो और तिहाड़ में बंद नामी लुटेरों की कुंडली तक खंगाली जाने लगी थी. लेकिन तभी पुलिस को दिल्ली में ही एक सुराग मिलता है.
शाम 5 बजकर 48 मिनट. यही वो वक्त था जब एसआईएस सिक्योरिटी के दफ्तर से दिल्ली पुलिस को पीसीआर कॉल की गई. कॉलर ने बताया कि उनके कैश वैन का एक ड्राइवर साढ़े 22 करोड़ रुपए कैश लेकर भाग गया है. इतना सुनना था कि दिल्ली पुलिस के होश उड़ गए. साढ़े 22 करोड़!!! ये कोई मामूली रकम नहीं थी. लिहाजा, शुरुआती जानकारियां हासिल करने के साथ दिल्ली पुलिस ने कैश वैन की तलाशी शुरू कर दी. जीपीएस के जरिए वैन का पता लगाने में भी पुलिस को ज्यादा दिक्कत नहीं हुई. जल्द ही ये पता चल गया कि शाम तीन बज कर 42 मिनट पर भागे वैन के पहियों पर अब ब्रेक लग चुकी है और वैन गोविंदपुरी मेट्रो स्टेशन के पास एक पेट्रोल पंप के सामने खड़ी है. अब पुलिस फौरन वैन के पास पहुंची. लेकिन जैसा डर था वही हुआ. वैन लावारिस पड़ी थी ना ड्राइवर था और ना ही 9 बक्सों में रखे साढ़े 22 करोड़ रुपए. तभी घड़ी में वक्त हो रहा था शाम का 5 बजकर 55 मिनट.
अब पुलिस ने एसआईएस के अफसरों से पूछताछ कर ड्राइवर की तलाश शुरू कर दी. चूंकि मामला बहुत बड़ी लूट का था पुलिस ने अपनी सारी ताकत झोंक दी. साउथ ईस्ट जिले के सभी के सभी 21 थानों की पुलिस तो लगी ही, स्पेशल स्टाफ, एएटीएस, क्राइम ब्रांच, स्पेशल सेल जैसी तमाम इकाइयां मिशन में झोंक दी गई. लेकिन जिस तरह ड्राइवर ने एक ही सेकेंड में इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे दिया, उससे एक साथ पुलिस की दिमाग में कई बातें कौंध रही थी.
अब पुलिस ने ड्राइवर का पूरा आगा-पीछा खंगालना शुरू कर दिया. पता चला कि उसने तीन महीने पहले ही सिक्योरिटी एजेंसी में काम शुरू किया था. यूपी के बलिया का रहने वाला था और कोई पुराना क्रिमिनल रिकॉर्ड भी नहीं था. लेकिन हैरानी भरे तरीके से वारदात के कुछ ही देर बाद उसका मोबाइल फोन स्वीच्ड ऑफ चुका था. अब पुलिस के पास तफ्तीश आगे बढ़ाने के लिए दो थ्योरीज थे. पहला ये कि ड्राइवर के साथ लुटेरों का गैंग रुपए लेकर गाड़ियां बदल कर पुलिस को चकमा देकर कहीं दिल्ली से बाहर निकल गया हो और दूसरा ये कि लुटेरे कहीं ओखला या दिल्ली के ही किसी इलाके में रुपए निपटाने के सही मौके की ताक में छुपे बैठे हों.
लेकिन जिस तरह पुलिस ने पूरी दिल्ली सील कर दी थी, उससे पुलिस का ऐतबार दूसरी थ्योरी पर ही ज्यादा था. अब पुलिस ने ड्राइवर प्रदीप कुमार शुक्ला के उठने-बैठने की तमाम जगहों पर पूछताछ शुरू कर दी. उसका मोबाइल फोन भी आखिरी बार ओखला इलाके में ही बंद हुआ था. ऐसे में लगा कि हो ना हो लुटेरे अभी दिल्ली के इसी इलाके में होंगे. इसी बीच पुलिस को एक ऐसा क्लू मिला कि उसकी आंखें चमक उठी. अब मामला बस सुलझने ही वाला था.