
राजस्थान में वसुंधरा सरकार के लोकसेवकों को कोर्ट और मीडिया से संरक्षण देनेवाले अध्यादेश के खिलाफ लगी पांच याचिकाओं पर राजस्थान हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए राजस्थान और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. कोर्ट ने पूछा है कि आखिर क्यों इस तरह के अध्यादेश लाने की जरुरत पड़ी.
शुक्रवार को कोर्ट में पांचों ही याचिकाकर्ताओं की तरफ से वकील पेश हुए. कोर्ट ने पहले तो पूछा कि क्या इस अध्यादेश से सरकार ने अबतक किसी को अधिकारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से रोका है. इसपर अधिवक्ता अजय जैन ने बताया कि अबतक दो मामलों में पुलिस ने दो अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने से रोका है. जैन ने कोर्ट को डिटेल बताई मगर लिखित में इसका जवाब नहीं लाए थे. इस पर कोर्ट ने 27 नवंबर तक केंद्र और राज्य सरकारों से ही इसपर जवाब मांग लिया.
इसके पहले सरकार ने विधानसभा में बिल के रुप में पेश अध्यादेश को विरोध के बाद प्रवर समिति को भेज दिया है. हालांकि सात सितंबर 2017 को जारी ये अध्यादेश अगले 40 दिनों तक राजस्थान में लागू रहेगा. राजस्थान सरकार ने अपना अध्यादेश वापस लेने से तकनीकी कारणों का हवाला देकर मना कर दिया है. इसके खिलाफ पांच याचिकाएं हाईकोर्ट में लगी है, जिसमें विवादित अध्यादेश को रद्द करने की मांग की गई है.
इस अध्यादेश के मुताबिक कोई भी सरकारी अफसर के खिलाफ एफआईआर सरकार की इजाजत के बिना दर्ज नहीं करवा सकता है. कोर्ट भी बिना सरकार की इजाजत के मुकदमा दर्ज करने का आदेश नहीं दे सकता है. साथ ही सरकार ने मुकदमा दर्ज करने के लिए आदेश की अवधि 180 दिनों की रखी है. इन 180 दिनों में अफसर की पहचान उजागर करने की इजाजत मीडिया को भी नहीं है.
इस अध्यादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी के लीगल सेल के पूनमचंद भंडारी, सामाजिक संगठनों की तरफ से पीयूसीएल, कांग्रेस की तरफ से सचिन पायलट और एक अन्य याचिका राजस्थान हाईकोर्ट अत्री कुमार दाधिच ने लगाई है. कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं पर एक साथ कल सुनवाई करेगा.