
हमारे दौर की पत्रकारिता भले ही आज मूल्यविहीन और स्खलित लग रही हो लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. एक दौर ऐसा भी था जब पत्रकारिता एक मिशन हुआ करता था. लोग अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर खबरों को प्रकाशित किया करते थे. जालिम सत्ता की हमेशा ही नाफरमानी किया करते थे. एक ऐसे ही शख्स थे गणेश शंकर विद्यार्थी. पत्रकारिता का यह पुरोधा साल 1890 में आज ही के रोज जन्मा था.
1. महज 16 साल की उम्र में 'हमारी आत्मोसर्गता' नाम की एक किताब लिखी.
2. उन्होंने कानपुर के करेंसी ऑफिस में नौकरी की लेकिन अंग्रेज अधिकारियों से अनबन की स्थिति में वहां से इस्तीफा दे दिया.
3. उन्हें प्रताप अखबार की शुरुआत करने का श्रेय जाता है. इस अखबार में उन्होंने भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल जैसे कई क्रांतिकारियों के लेख छापे.
4. अंग्रेजों के खिलाफ लगातार समाचार पत्रों में लिखने की वजह से उन्हें कई माह जेल में काटने पड़े.
5. 25 मार्च 1931 में हिंदू-मुस्लिम दंगे के दौरान उन्होंने असहायों की मदद करते हुए अपने प्राणों की आहूति दे दी. वे साम्प्रदायिकता की भेंट चढ़ गए.