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उत्तराखंडः बकरी स्वयंवर पर दो मंत्रियों के बीच आखिर क्यों ठनी रार

धर्म संकट में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री. बकरी स्वयंवर में मंत्रोच्चा हो या नही.

उत्तराखंड में बकरी स्वयंवर उत्तराखंड में बकरी स्वयंवर
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 01 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 3:48 PM IST

उत्तराखंड में बकरी स्वयंवर को लेकर दो मंत्रियों के बीच रार ठन गई है. यह स्वयंवर 23 और 24 फरवरी को होना है. बकरी स्वयंवर के मुद्दे पर पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज और  पशुपालन राज्य मंत्री रेखा आर्य लगभग आमने-सामने आ गए हैं. शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक इस मामले में सतपाल महाराज के साथ खड़े दिख रहे हैं.  

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 दरअसल यह स्वयंवर धनोल्टी में एक एनजीओ ने आयोजित किया है. इस आयोजन में पशुपालन राज्य मंत्री रेखा आर्य को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया है. रेखा आर्य इसमें हिस्सा लेना चाहती हैं. ऐसा नहीं है कि यह आयोजन यहां पहली बार हो रहा है. स्थानीय संस्था कोटविलेज पहले से ही यह आयोजन कर रही है. संस्था का तर्क है कि उन्नत नस्ल की बकरियों को लाकर उनका स्वयंवर करवाया जाता है जिससे उत्तम किस्म की बकरियां पैदा हों.

अब इसमें सबसे बड़ा पेंच यह है कि प्रस्तावित स्वयंवर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ होना है. बस यही बात पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज को खल गई. उनका तर्क है कि मंत्रोच्चारण के बीच बकरियों का ब्याह कराया जाना वैदिक रीति रिवाजों की खिल्ली उड़ाना है. केवल आलोचना करने तक ही सतपाल महाराज सीमित नहीं रहे. उन्होंने पशुपाल राज्य मंत्री रेखा आर्य की उस प्रेस कांफ्रेंस को भी रद्द कर दिया जिसका आयोजन बकरी स्वयंवर में रेखा आर्य के शिरकत करने की सूचना देने के लिए किया जाना था.

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 अब फैसला मुख्यमंत्री के हाथ!

मामला इस कदर बढ़ा कि विकास कार्यों और महत्वपूर्ण मुद्दों को छोड़कर बकरी स्वयंवर पिछले दिनों प्रदेश कैबिनेट की बैठक का मुद्दा भी बन गया. इतना ही नहीं बकरी स्वयंवर में मंत्रोच्चारण होगा या नहीं यह फैसला मुख्यमंत्री के सुपुर्द कर दिया गया.

शहरी विकास मंत्री भी पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री के साथ

कैबिनेट की बैटक के बाद मीडिया से बातचीत के दौरान शासकीय प्रवक्ता व शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक भी पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से सहमत दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए बकरियों का स्वयंवर अच्छी योजना है। पर ऐसे मौके पर वैदिक मंत्रों का उच्चारण नहीं होना चाहिए। लेकिन इस मसले पर जहां एक ओर मंत्रोच्चार के साथ बकरी स्वयंवर करने की बात को संस्कृति के खिलाफ माना जा रहा है तो दूसरी तरफ कई तर्क इसके पक्ष में भी आ रहे हैं.

पक्ष में भी हैं ठोस तर्क!

बकरी स्वयंवर के पक्ष में सबसे पहला तर्क आया कि वेदों और पौराणिक धर्म ग्रंथों में तो मत्स्य अवतार, कच्छप अवतार, शूकर अवतार, वाराह अवतार, श्रीहरि विष्णु के अवतार रूप पूजनीय हैं। फिर यह भी तर्क आया कि प्रथम पूजनीय भगवान गणेश के सिर पर भी हाथी का मस्तक है। ठीक इसी तरह भगवान शिव के ससुर और सती के पिता दक्ष को भी बकरे का सिर लगाया गया था। दक्ष ने उस मुख से शिव की आराधना की थी, तो लोग पूछ रहे हैं कि बकरी अपवित्र कहां से हो गई।

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पशुपालन मंत्री ने दिया चुटीला जवाब

पशुपालन राज्य मंत्री इस विरोध से आहत तो हैं पर हार नहीं मानी है. पिछले दिनों रुड़की में रेखा आर्य ने मीडिया के सवाल करने पर इशारों ही इशारों में सतपाल महाराज की अपत्ति का उत्तर बड़े ही व्यंग्यात्मक ढंग से दिया. रेखा आर्य ने पूछा, तोता पक्षी राम-राम रटता है उसे राम का नाम किसी से पूछ कर रटना चाहिए?

रेखा आर्य ने कहा मंत्र मतलब होता है प्रभाव ऐसा असर जो किसी के भीतर कोई बदलाव कर दे। उन्होंने कहा कि मैं किसी का विरोध तो नहीं करती लेकिन किसी चीज से अच्छा बदलाव हो सकता है तो उसे किसी विरोध से रोकने के पक्ष में भी नहीं हूं. पशुपालन मंत्री ने ऐलान किया कि उनका महकमा प्रदेश में 23 और 24 को बकरी स्वयंवर के आयोजन में हिस्सा लेगा.

इस स्यवंयर का मकसद है, खास

इसमें बकरी पालन की जानकारियों को पशुपालकों तक पहुंचाने के साथ-साथ पशुपालन को बढ़ावा दिए जाने की कोशिश होती है। इस स्वयंवर में उन्नत किस्म के पशु भी लाए जाते हैं और पशु मेला लगता है।

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