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नेताजी जासूसी केस: 'इंडिया टुडे' का असर, ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट की होगी समीक्षा

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के परिवार की जासूसी पर 'इंडिया टुडे' की खबर के बाद केंद्र सरकार ने ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट पर अहम कदम उठाया है. केंद्र सरकार ने नेताजी के संदर्भ में ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट की समीक्षा के लिए अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया है. इस कमिटी का नेतृत्व कैबिनेट सचिव करेंगे.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 8:40 PM IST

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के परिवार की जासूसी पर 'इंडिया टुडे' की खबर के बाद केंद्र सरकार ने ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट पर अहम कदम उठाया है. केंद्र सरकार ने नेताजी के संदर्भ में ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट की समीक्षा के लिए अंतर-मंत्रालयी समिति का गठन किया है. इस कमेटी की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे और पहली बैठक गुरुवार को होगी.

गौरतलब है कि इससे पहले नेताजी के परपोते सूर्य कुमार बोस ने जर्मनी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी. बोस ने मुलाकात में प्रधानमंत्री से नेताजी से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की मांग दोहराई थी.

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'इंडिया टुडे' ने अपने ताजा अंक में खुलासा किया था कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने नेताजी के परिवार की जासूसी कराई थी. इसके बाद सियासी हलकों में बवाल मच गया और नेताजी से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने मांग तीखी होती गई.

इंडिया टुडे ने सबसे पहले किया खुलासा
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने करीब दो दशकों तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के रिश्तेदारों की जासूसी करवाई थी. गुप्त सूची से हाल ही में हटाई गईं इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की दो फाइलों से यह खुलासा हुआ.

फाइलों से पता चला कि 1948 से 1968 के बीच सुभाष चंद्र बोस के परिवार पर अभूतपूर्व निगरानी रखी गई थी. इन 20 साल में से 16 साल तक नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे और आईबी उन्हीं के अंतर्गत काम करती थी.

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इंडिया टुडे' को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक, फाइलों में बोस के कोलकाता स्थित दो घरों की निगरानी का जिक्र है. इनमें से एक वुडबर्न पार्क और दूसरा 38/2 एल्गिन रोड पर था. बोस के घरों की जासूसी ब्रिटिशराज में शुरू हुई थी, लेकिन चौंकाने वाली बात है कि इसे नेहरू सरकार ने भी करीब दो दशक तक जारी रखा.


                                       वुडबर्न पार्क स्थित बोस परिवार का घर

IB हेडक्वार्टर में फोन करते थे जासूस
इंटरसेप्टिंग और बोस परिवार की चिट्ठियों पर नजर रखने के अलावा, आईबी के जासूसों ने उनकी स्थानीय और विदेश यात्रा की भी जासूसी की. ऐसा लगता है कि एजेंसी यह जानने को आतुर थी कि बोस के रिश्तेदार किससे मिलते हैं और क्या चर्चा करते हैं. हाथ से लिखे गए कुछ संदेशों से पता चला है कि आईबी के एजेंट बोस परिवार की गतिविधियों के बारे में आईबी हेडक्वार्टर, जिसे 'सिक्योरिटी कंट्रोल' कहा जाता था, में फोन करते थे.

हालांकि इस जासूसी की वजह पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है. आईबी ने नेताजी के भतीजों शिशिर कुमार बोस और अमिय नाथ बोस पर कड़ी निगरानी रखी. शरत चंद्र बोस के ये दोनों बेटे नेताजी के करीबी माने जाते थे. नेताजी की पत्नी एमिली शेंकल ऑस्ट्रिया में रहती थीं और शिशिर-अमिय ने उनके नाम कुछ चिट्ठियां भी लिखी थीं. इस खुलासे से बोस परिवार हैरान है. बोस के पड़पोते चंद्रकुमार बोस ने कहा, 'जासूसी उन लोगों की होती है जिन्होंने कोई अपराध किया हो या जिनके आतंकियों से संबंध हों. सुभाष बाबू और उनके परिवार ने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी थी, उनकी जासूसी क्यों की गई?'

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                                                      38/2 एल्गिन रोड स्थित घर

बोस की वापसी से डरी हुई थी कांग्रेस?
लेखक और बीजेपी प्रवक्ता एमजे अकबर मानते हैं कि इसका एकमात्र उचित स्पष्टीकरण यही है कि कांग्रेस सुभाष चंद्र बोस की वापसी से डरी हुई थी. उनके मुताबिक, 'बोस अब जिंदा हैं या नहीं, इस पर सरकार को पक्की जानकारी नहीं थी. सरकार ने सोचा होगा कि अगर वह जिंदा होंगे तो कोलकाता में अपने परिवार से संपर्क जरूर करते होंगे. लेकिन कांग्रेस के पास डरने का क्या कारण था? बोस की वापसी का देश स्वागत करता. लेकिन शायद यही डर का कारण था. बोस उस दौर में ऐसे एकमात्र करिश्माई नेता थे जो कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करके 1957 के चुनाव में चुनौती पेश कर सकते थे. यह कहा जा सकता है कि अगर बोस जिंदा होते तो वह गठबंधन जिसने 1977 में कांग्रेस को हराया, वह यह काम 1962 में ही कर देते, यानी 15 साल पहले.'

ओरिजिनल फाइलों को पश्चिम बंगाल सरकार ने अब भी गुप्त रखा है. इन फाइलों पर सबसे पहली नजर इस साल जनवरी में अनुज धर की पड़ी. 'इंडियाज बिगेस्ट कवर-अप' के लेखक अनुज का मानना है कि ये फाइलें गलती से गुप्त सूची से बाहर आ गईं. वह बताते हैं, 'अमेरिका में भी ऐसा हुआ था. सीआईए की गुप्त फाइलें, जिनमें 1971 में इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में जासूसी की फाइल भी थी, सरकारी विभाग ने गलती से गुप्त सूची से बाहर कर दी थीं.'

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