
अलवर जिले में एक स्कूल को देखकर आप चौंक जाएंगे कि यह स्कूल है या रेलवे स्टेशन. इस स्कूल को एक विशिष्ट पहचान देने के लिए इसे एजुकेशन ट्रेन के रूप में विकसित किया गया है. स्कूल को ट्रेन के डिब्बे, डबल डेकर ट्रेन, बुकिंग खिड़कियां और रेल इंजन के रूप में कमरों को कलर किया गया और इसे रेलगाड़ी का रूप दिया गया.
स्कूल देखकर यही लगता है कि यह ट्रेन यहां कैसे खड़ी है. किसी सरकारी स्कूल के बारे में ऐसी कल्पना करना भी मुश्किल है. यह स्कूल राजस्थान सरकार की सर्व शिक्षा अभियान और रेशम देवी नानक चंद मित्तल फाउंडेशन के सहयोग से चल रहा है.
यह भारतीय रेल के डिब्बे का कोच नहीं है बल्कि अलवर का सरकारी स्कूल है. इसका नाम रेलवे स्टेशन माध्यमिक स्कूल है. कभी यह स्कूल जर्जर हालत में हुआ करती थी और यहां बच्चे भी नाममात्र के होते थे. अमूमन जैसी सरकारी स्कूलों की स्थिति होती है ऐसी ही स्थिति इस स्कूल की भी थी, लेकिन बाद में शिक्षा विभाग द्वारा इस स्कूल को रेशम देवी नानक चंद मित्तल फाउंडेशन को गोद दे दिया गया.
इसके बाद इस स्कूल में भवन निर्मित किए गए. स्कूल में योग्य अध्यापक लगाकर स्कूल में पढ़ाई का बेहतर माहौल बनाया गया. अब यह स्कूल राजस्थान ही नहीं देश बल्कि सरकारी स्कूलों के लिए मॉडल बन चुका है.
बच्चों को भा रही है एजुकेशन एक्सप्रेस
एजुकेशन एक्सप्रेस में इस राजकीय माध्यमिक रेलवे स्टेशन विद्यालय में 450 बच्चे पढ़ते हैं. स्कूल को रेशम देवी नानक चंद मित्तल फाउंडेशन ने गोद लिया हुआ है. संस्था के चेयरमैन डॉ. एससी मित्तल को सर्व शिक्षा अभियान के जेईएन राजेश लवानिया को स्कूल को रेलगाड़ी का लुक देने का प्रस्ताव पसंद आया और बन गया राजकीय माध्यमिक विद्यालय रेलवे स्टेशन का यह रूप. बच्चों को इस रेल में बैठना अच्छा लगता है.
लवानिया कहते हैं कि सोशल मीडिया पर केरल में एक स्कूल को इस लुक में देखने के बाद उनके मन में विचार आया कि अलवर में भी ऐसा ही स्कूल हो. इसका खर्चा 3 से 4 लाख रुपये था. पहले काफी सोचा कि पैसे कहां से आएंगे, फिर उन्होंने डॉ. मित्तल से अपनी बात साझा की. देश में इस तरह का यह केरल के बाद दूसरा स्कूल है.
पढ़ाई का स्तर भी ऊंचा हुआ
रेलवे सरकारी माध्यमिक विद्यायल का कायाकल्प करने वाले डॉटर एससी मित्तल का कहना है जब उन्होंने इस स्कूल को गोद लिया था तब स्कूल की दशा को देखकर वे हैरान हो गए थे. शुरुआत में यह सोचने लगे कि कहां फंस गए, इसको कैसे डवलप किया जाएगा, लेकिन मेहनत और लगन से काम शुरू किया और 5 साल में 50 लाख से अधिक रुपये खर्च कर इस स्कूल को मिशाल के रूप में बना दिया है.
इस स्कूल को देखकर परिजन भी बच्चों को यहां पढ़ाने के लिए बेताब दिखाई दे रहे हैं. डॉक्टर मित्तल का कहना है उसका लक्ष्य इस स्कूल को निजी स्कूलों से बेहतर बनाने का है. इस स्कूल को एजुकेशन ट्रेन के रूप में पैसेंजर ट्रेन, डबल ड्रेकर ट्रेन ओर शताब्दी ट्रेन के लुक से विकसित किया गया है. पढ़ाई के लिए शिक्षकों ने भी जी-तोड़ मेहनत की जिसका नतीजा यह है कि यहां का रिजल्ट पहले मात्र 16 फीसदी रहता था वो अब 100 फीसदी हो गया है.