Advertisement

साक्षी मलिक का हुआ जोरदार स्वागत, नाना ने खिलाया मूंग की दाल का हलवा

मीडिया से बात करते समय भी सतर्क और सधे हुए जवाब दिए. नई पीढ़ी खासकर लड़कियों का भविष्य संवारने की ललक पर कुश्ती पर फोकस के साथ.

साक्षी का हुआ सम्मान साक्षी का हुआ सम्मान
लव रघुवंशी/संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 24 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 8:44 PM IST

22 घंटे का हवाई सफर और इसके बाद स्वागत का सिलसिला, साक्षी मलिक को शायद बार-बार खुद को अहसास कराना पड़ रहा था कि आखिर ये सब हो क्या रहा है. गाड़ी में पलकें झपकाती, कभी पसीने पोंछती, मुस्कुराती, हाथ हिलाकर अभिवादन करती, बुजुर्गों के लाड़-दुलार पर हाथ जोड़ती साक्षी के सभी रूपों में सादगी दिखी. गांव का ठेठ देसी अंदाज भी.

Advertisement

हर किसी से प्यार से मिली साक्षी
मीडिया से बात करते समय भी सतर्क और सधे हुए जवाब दिए. नई पीढ़ी खासकर लड़कियों का भविष्य संवारने की ललक पर कुश्ती पर फोकस के साथ. दिल्ली की सीमा लांघते ही टिकरी और बहादुरगढ़ में मुख्यमंत्री के हाथों मिले सम्मान में गंभीर बनी रही साक्षी , नाना के गांव पहुंचते ही चुलबुली बच्ची सी हो गई. किसी ने प्यार से सर पर हाथ फेरा तो बापू के कंधे पर सवार किसी बच्चे ने 20 रुपये के नोट का शगुन भी पकड़ा दिया. साक्षी सब कुछ मुस्कुराकर पीछे खड़े भाई को सौंपती जा रही थी.

नाना ने खिलाया मूंग की दाल का हलवा
नाना के घर के अहाते में बनाए गए छोटे से लेकिन सफेद गुलाबी पर्दों से देसी अंदाज में सजाएं गए स्टेज पर पहुंची तो मानो दो गांवों की पंचायतों का सैलाब उमड़ पडा. कोई पांच सौ रुपये के नोटों से बनी माला पहना रहा था तो किसी ने सौ-सौ रुपये के नोटों की माला थाम रखी थी. किसी के पास हजारी नोटों का हार था तो कोई 20 या 50 के नोटों की माला पकड़े अपनी बारी का इंतजार करता दिखा. नाना रसाल सिंह ने अपने हाथों से मूंग दाल के हलवे से मुंह मीठा कराया तो नानी ने शर्बत का घूंट भराया. गांव की बड़ी बुढियों ने आशीष से दामन भर दिया.

Advertisement

ऐसा ही नजारा साक्षी के पैतृक गांव मोखरा में भी दिखा. और ये सब उसी राज्य के गांवों में दिख रहा है, जहां का लिंग अनुपात देश में सबसे कम और चिंताजनक है. लोग बेटे की चाह में इस कदर पागल हैं कि गर्भ में कन्या हो तो फौरन भ्रूण हत्या पर उतारू हो जाते हैं. क्या पड़े लिखे और क्या जाहिल. सबकी एक सी बुद्धि. तभी तो आए दिन यहां के निजी अस्पतालों में छापे पड़ते है और भ्रष्ट डॉक्टर पकड़े जाते हैं. गुनाह ये की गर्भ में शिशु का लिंग परीक्षण जैसा घिनौना काम करते हैं. इतना ही नहीं गर्भ में कन्या भ्रूण हो तो उसकी हत्या का अभिशाप भी अपने पाप के खाते में दर्ज कराते हैं.

गांव वाले देते थे ताने
मोखरा में कुछ साल पहले तक की बात है, जब साक्षी अखाड़ों में जोर आजमायश करती थी तो गांव वाले ताने मारते थे. गांव वालों की रोज-रोज की नुक्ताचीनी से परेशान हो साक्षी के पिता सुखबीर मलिक ने गांव जाना ही कम कर दिया. साक्षी भी नहीं के बराबर जाती.

अब बदलने लगे लोगों के सुर
अब जिस ठसक से साक्षी ने गांव में कदम रखा तो आलोचकों के सुर बदल गए. लड़कियों के भाग्य और पाबंदियों के ताले खुल गए. सबसे बड़ा तो इस सोच पर लगा ताला खुला कि लड़के ही वंश बढ़ाते हैं, लड़कियां उनसे कमतर हैं या फिर लड़कियां कुश्ती नहीं लड़ सकती. साक्षी ने तो कुश्ती लड़ी भी, और जीती भी वो भी पदक के साथ. ऐसा कांस्य जिसने सोने की चमक भी फीकी कर दी. खासकर हरियाणा के लोगों की सोच को तो चमका ही दिया.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement