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'GST के तहत ज्यादा छूट देने से खत्म हो जाएगा एक देश एक कर नीति का मकसद'

होरैसिस विजन कम्युनिटी थिंक टैंक के संस्थापक और विश्व आर्थ‍िक मंच के पूर्व निदेशक फ्रैंक-जर्गन रिक्टर ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर Aajtak.in से की खास बातचीत.

डॉ. फ्रैंक-जर्गन रिक्टर (Horasis File Photo) डॉ. फ्रैंक-जर्गन रिक्टर (Horasis File Photo)
विकास जोशी
  • नई दिल्ली,
  • 30 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 11:34 AM IST

पिछले साल 1 जुलाई को मोदी सरकार ने माल एवं सेवा कर (GST) को एक राष्ट्र एक टैक्स नीति के तौर पर लागू किया था. तब से इस टैक्स नीति में कई बदलाव किए गए हैं. पिछले हफ्ते ही जीएसटी परिषद ने 85 उत्पादों के रेट भी घटा दिए थे. ये नई दरें शुक्रवार से लागू हो गई हैं. जीएसटी के एक साल के दौरान इसमें टैक्स स्लैब घटाने और इसे आसान बनाने को लेकर मांग उठी है. विश्व बैंक समेत कई वैश्व‍िक संस्थाओं ने भी इसे आसान करने पर ध्यान दिया.

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स्व‍िट्जरलैंड के थिंक टैंक होरैसिस विजन कम्युनिटी के संस्थापक और विश्व आर्थ‍िक मंच के पूर्व निदेशक फ्रैंक-जर्गन रिक्टर भी इससे इत्तेफाक रखते हैं. वह भी जीएसटी में सुधार की बात करते हैं. aajtak.in से खास बातचीत में रिक्टर ने जीएसटी, चीन समेत भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर कई प्रमुख मुद्दों पर बात की.

क्या GST के तहत एक टैक्स स्लैब संभव है?

मुझे लगता है कि ऐसा होना चाहिए. हालांकि यह सवाल रणनीतिकारों को परेशान करने वाला है. क्योंकि जीएसटी के तहत दी जा रही ज्यादा छूट उस मकसद को पूरा करने में रोड़ा है, जिसमें इसे क्षेत्रों और शहरों के बीच भ्रष्टाचार पर लगाम कसने वाला तंत्र बताया गया था. वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोग जीएसटी के तहत ज्यादा छूट देने का समर्थन भी करते हैं. ऐसा कहने के पीछे उनका दावा है कि यह गरीब, कम विकसित क्षेत्र और समुदाय की रक्षा करता है. हालांकि ये तथ्य आर्थ‍िक बाजार में स्वीकार नहीं किया जा सकता.

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भारत में जीएसटी इसलिए लागू किया गया था, क्योंकि पूरे देश में एक टैक्स नीति लागू करनी थी, लेक‍िन इसमें छूट देने का प्रावधान किया गया. अलग-अलग टैक्स स्लैब्स के तहत अलग-अलग छूट देने की ये व्यवस्था भले ही लघु अवध‍ि में फायदेमंद साबित हो, लेक‍िन लंबी अवध‍ि में यह जीएसटी के असल लक्ष्य को खत्म कर देती है. मुझे लगता है कि इसे आसान बनाने की जरूरत है. जैसे ही यह होगा वैसे ही दूसरे वित्तीय सहयोग का इस्तेमाल कर जो असल में जरूरतमंद हैं, उन्हें फायदा दिलाया जा सकता है और भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है.  

आर्थ‍िक मोर्चे पर भारत और चीन में, किसके आगे रहने की संभावना है?

जिस गति से डिजिटलाइजेशन बढ़ रहा है. कारोबारी अपने स्मार्टफोन के जरिये अपने कारोबार को चला रहे हैं. भारत में लोगों के खर्च करने की क्षमता बढ़ रही है. वेब लोगों के लिए कारोबार आसान करने का रास्ता तैयार करता है. श‍िक्ष‍ित भारतीय वर्कप्लेस पर पहुंच रहा है. इसका फायदा अर्थव्यवस्था को होना ही है. भारत तेजी से बढ़ रहा है. जीडीपी के मामले में इसकी रफ्तार चीन से भी ज्यादा है. ऐसे में मुझे लगता है कि आगे भी भारत चीन से अर्थव्यवस्था के मामले में आगे बना रहेगा.

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कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा?

कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें सभी देशों के लिए चिंता का विषय है. यहां तक कि अमेरिका भी इससे परेशान है. यह बहस चाहे कोई सही माने या न माने, लेकिन कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. इन बढ़ती कीमतों की वजह से भारत के निर्यात पर असर पड़ेगा. जिसके परिणाम स्वरूप रुपया भी कमजोर होता है. हालांकि इसका असर रुपये पर कितना जल्दी पड़ता है, यह पूरी तरह वैश्व‍िक निवेशकों पर निर्भर है.

भारत ने सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के मामले में फ्रांस को पीछे छोड़ दिया है. क्या यह गुड न्यूज है?

किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के विकास को जब नापा जाता है, तो इसके लिए ग्रोथ, समानता, कल्याण के मानक को भी देखा जाता है. जीडीपी भी इसका एक हिस्सा है. जिस देश की जनसंख्या ज्यादा होगी, तो ये स्वाभाविक है कि उसका जीडीपी नंबर भी ज्यादा होगा. लेकिन जब आप जीडीपी प्रति व्यक्‍त‍ि आंकेंगे, तो भारत फ्रांस से काफी पीछे है.

सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की बात करें तो भारत की जीडीपी 2.59 लाख करोड़ डॉलर की है. वहीं, फ्रांस की जनसंख्या कम है, तो इसकी जीडीपी 2,582,501 मिल‍ियन डॉलर है. इससे तो ज्यादा फर्क नजर नहीं आता है. लेक‍िन जब आप प्रति व्यक्ति के हिसाब से जीडीपी देखेंगे तो इस मामले में फ्रांस 181 देशों में 26वें पायदान पर है.

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दूसरी तरफ, भारत इस सूची में 119वें नंबर पर है. ऐसे में एक बार सोचें तो छठा पायदान एक जीत के तौर पर नजर आता है. लेकिन जब हम अर्थव्यवस्था की रफ्तार को मापने वाले सभी मानकों की गणना करते हैं, तो भारत अभी भी गरीब देश नजर आता है. हालांकि अच्छी बात यह है कि इंडियन इकोनॉमी तेजी से बढ़ रही है.

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