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गुजरात में किसान परेशान, नहीं मिल रहे प्याज और मूंगफली के सही दाम

गुजरात के चुनावी अखाड़े में हर एक नेता वोटों के पीछे वादों की झड़ी लगा रहा है. खासतौर से आज कल किसानों की चांदी है. क्यों ना हो? सब पार्टियों की रणनीति के केंद्र में है गुजरात का अन्नदाता. फिर चाहे वह मोदी हों या राहुल गांधी. बीजेपी और कांग्रेस दोनों दल एक दूसरे को काटने में लगे हैं और किसानों को सुनहरे सपने दिखा रहे हैं. बयानबाजी के शोर के बीच आजतक की टीम ने किसानों की जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की.  भावनगर से आजतक की स्पेशल रिपोर्ट.

गुजरात में किसानों का हाल गुजरात में किसानों का हाल
वंदना भारती/मौसमी सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 4:09 PM IST

गुजरात के चुनावी अखाड़े में हर एक नेता वोटों के पीछे वादों की झड़ी लगा रहा है. खासतौर से आज कल किसानों की चांदी है. क्यों ना हो? सब पार्टियों की रणनीति के केंद्र में है गुजरात का अन्नदाता. फिर चाहे वह मोदी हों या राहुल गांधी. बीजेपी और कांग्रेस दोनों दल एक दूसरे को काटने में लगे हैं और किसानों को सुनहरे सपने दिखा रहे हैं. बयानबाजी के शोर के बीच आजतक की टीम ने किसानों की जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की.  भावनगर से आजतक की स्पेशल रिपोर्ट.

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लहलहाते खेत, सोने की फसल, सुख संपन्न किसान, खुशहाल गांव में गूंजती बच्चों की किलकारियां, बुजुर्गों के हंसी ठहाके, मंडियों में धड़ल्ले से बिकती किसान की फसल. यह तस्वीर तो आम होगी गुजरात में? बात जब गुजरात के विकास की हो तो ये ख्याल ही आता है. पर भावनगर की एपीएमसी मंडी में हाल कुछ और ही था. यहां सिंगदाना यानी की मूंगफली की फसल की बोली लग रही थी.

पिछले 20 दिन से जीडाभाई यूं ही मंडियों के चक्कर काट रहे हैं. 75 साल की उनकी उम्र हो गई, पर उनकी माने तो इतना बुरा वक्त कभी नहीं आया. सरकार ने मूंगफली का दाम 900 रुपये देने का वादा किया, पर केंद्र सरकार के चोचले ज्यादा हैं. उसपर ऑनलाइन कागजी प्रक्रिया है. जीडाभाई कहते हैं 'मैं  पिछले कई दिनों से घूम रहा हूं. 20 दिन हो गए. 70 किलो बोरी लेकर मैं सरकारी केंद्र भी गया था. लेकिन वहां 30 किलो की जो बोरी है, उसमें मेरे माल को रिजेक्ट कर दिया गया. अब यहां पर कम दाम में अपनी फसल बेच रहा हूं '.  

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पर वह अकेले नहीं हैं जिन्हें सरकारी मंडी से लौटा दिया गया. विश्वास प्रदीप भाई का भी सरकारी मंडी से भरोसा उठ गया है. प्रदीप भाई पेशे से इंजीनियर हैं. अपने पिता का हाथ बटाते हैं. पर खुद खेती से हार मान चुके हैं.  प्रदीप भाई कहते हैं 'मेरे पिताजी ने ऑनलाइन फॉर्म भरने की कोशिश की, पर उसमें बहुत से दस्तावेजों की जरूरत होती है. मैं इंजीनियर हूं, प्राइवेट नौकरी करता हूं. बीच-बीच में पिता का हाथ भी बटाता हूं. पर आज की डेट में कोई भी नौजवान खेती नहीं करना चाहता. आप देखिए सरकारी केंद्र में ढाई महीने बाद पैसा मिलता है. तब तक जिन से हमने उधार लिया है, वह नाक में दम कर देते हैं. ऐसे में हम सरकारी केंद्र में कैसे बेचें?'

पर ये सिर्फ मूंगफली के किसानों की पीड़ा नहीं है. मूंगफली और कपास के अलावा भावनगर लाल प्याज का एक बड़ा केंद्र है. एक वक्त पर 1200 के दाम पर बिकते प्याज अब किसानों को खून के आंसू रुला रहे हैं. पीएम मोदी ने लोकसभा चुनाव के पहले कहा था कि अगर हमारी सरकार बनती है, तो खेती करने के लिए जितनी की लागत आती है, उस पर 50 फीसदी का मुनाफा दर्ज किया जाएगा और यही किसानों के उत्पाद का न्यूनतम आधार मूल्य होगा.' मगर अगर ऐसा हुआ होता तो शायद शंभू भाई इतने उदास ना होते.  

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उनका कहना है  कि अभी तो शरुआत है. हमने सोचा अच्छा दाम मिलेगा, पर 250 का रेट है जो हमारी लागत से काफी कम है. बारिश की वजह से उत्पादन कम हो गया है. अब हम क्या करें?'

दरअसल, महाराष्ट्र के बाद गुजरात प्याज के उत्पादन में नम्बर 2 पर है. अमरेली, भावनगर का इलाका लाल प्याज के लिए मशहूर है, पर नेताओं के आश्वासन से परे यहां प्याज की गिरती न्यूनतम दर किसानों को खून के आंसू रुला रही है.

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