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गुजरात: शुरुआती प्रचार में कांग्रेस से पिछड़ने के बाद BJP दिखा रही है धार

रचार के शुरुआती दौर में सोशल मीडिया पर कांग्रेस के फ्रंटफुट पर बैटिंग करने से बीजेपी डिफेंसिव मोड में थी. कुछ महीने पहले कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम में बदलाव का पार्टी के लिए अच्छा असर भी देखने को मिला. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल @OfficeOfRG से किए जाने वाले ट्वीट्स में भी धार महसूस की जाने लगी.

राहुल गांधी और पीएम मोदी राहुल गांधी और पीएम मोदी
हिमांशु मिश्रा/खुशदीप सहगल
  • नई दिल्ली,
  • 08 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 3:07 PM IST

गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए बीजेपी और कांग्रेस के दिग्गजों ने वैसे तो कई हफ्ते से ताकत झोंक रखी है लेकिन 9 नवंबर को हिमाचल प्रदेश के लिए मतदान संपन्न होने के बाद ये और रफ्तार पकड़ेगा. दोनों पार्टियां सोशल मीडिया पर भी एक दूसरे से बाजी मारने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं.  

प्रचार के शुरुआती दौर में सोशल मीडिया पर कांग्रेस के फ्रंटफुट पर बैटिंग करने से बीजेपी डिफेंसिव मोड में थी. कुछ महीने पहले कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम में बदलाव का पार्टी के लिए अच्छा असर भी देखने को मिला. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ट्विटर हैंडल @OfficeOfRG से किए जाने वाले ट्वीट्स में भी धार महसूस की जाने लगी. लेकिन अब जैसे जैसे गुजरात चुनाव की तारीखें नजदीक आ रही हैं, बीजेपी ने भी धुआंधार प्रचार से तेवर दिखाना शुरू कर दिया है. हालांकि बीजेपी ने प्रचार की लाइऩ पॉजिटिव ही रखी है.  

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बता दें कि सोशल मीडिया पर ‘विकास गांडो थायो छे’(विकास पागल हो गया है) क्या वायरल हुआ था, कांग्रेस ने इसी लाइन पर बीजेपी और मोदी सरकार पर बाउंसर दागना शुरू कर दिया. इसी के जवाब में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए और प्रधानमंत्री के पद पर होते हुए जो विकास कार्य किए, उन्हें प्रचार का आधार बनाते हुए सोशल मीडिया के लिए वीडियो तैयार कराए. इनमें गुजरात में अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर कानून व्यवस्था का जिक्र भी किया गया है.  वीडियो के अंत में एक युवक ‘हूं विकास छू, हूं छु गुजरात’(मैं विकास हूं और मैं हूं गुजरात) कहता नजर आता है.  

बीजेपी की इस रणनीति के बाद कांग्रेस के प्रचार में अब ‘विकास गांडो थायो छे’की ज्यादा गूंज सुनाई नहीं दे रही. शायद इसके पीछे ये आशंका है कि इस जुमले को कहीं बीजेपी गुजराती अस्मिता पर चोट बताकर माहौल अपने पक्ष में ना बना लें. जैसे कि 2007 विधानसभा चुनाव में ‘मौत का सौदागर’ जुमले को लेकर हुआ था.     

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सोशल मीडिया के साथ जमीनी प्रचार की अहमियत भी दोनों पार्टियां अच्छी तरह समझती हैं. इसीलिए बीजेपी की ओर से ‘डोर टू डोर’ अभियान पर भी पूरा जोर दिया जा रहा है. इसी अभियान को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गुजरात में महासंपर्क अभियान का आधार बनाया है. शाह सभी जिलों में जाकर पार्टी के बूथ इंचार्जों और पेज इंचार्जों (वोटर लिस्ट के पेज प्रभारी) को जरूरी टिप्स दे रहे हैं. बता दें वोटिंग के दिन मतदाताओं को बूथ तक लाने में इन्हीं इंचार्जों की अहम भूमिका रहती है.    

सोशल मीडिया पर कांग्रेस जरूर अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करा रही है, लेकिन 22 साल से गुजरात की सत्ता के बाहर होने की वजह से सांगठनिक ढांचे को लेकर उसे जरूरत दिक्कतों का सामना है. जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं को उनकी पूरी ताकत से झोंकने के लिए तैयार करना प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती है.  

कांग्रेस के लिए एक और मुश्किल वाली बात है स्टार प्रचारकों की कमी. ले देकर कांग्रेस के लिए सबसे बड़े स्टार प्रचारक खुद राहुल गांधी हैं. उन्होंने कई हफ्ते पहले से ही ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’की लाइन को लेकर गुजरात के दौरे करना शुरू कर दिया था. उन्हें अच्छा रिस्पॉन्स भी मिला. कुछ ऐसा ही इस साल के शुरू में हुए उत्तर प्रदेश चुनाव में भी देखने को मिला था. तब ‘खाट सभाओं’ से शुरू में कांग्रेस प्रचार में उपस्थिति दर्ज कराती नजर आई थी. लेकिन जैसे-जैसे प्रचार चरम पर पहुंचा, बीजेपी ने अपने तरकश से ऐसे तीर निकाले कि हवा का रुख अपनी ओर मोड़ दिया.     

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रैलियों में भीड़ जुटाने की क्षमता रखने वाले नेता की बात की जाए तो कांग्रेस के पास अकेले राहुल गांधी हैं. कांग्रेस ने जिस तरह हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी को साथ जोड़े रखने के लिए मशक्कत की है, उससे यही लगता है कि पार्टी इन तीनों युवा नेताओं के जातिगत समीकरणों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.

जहां तक बीजेपी की बात की जाए तो प्रचार के लिए उसके पास सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो है हीं, साथ ही अमित शाह भी गुजरात से ही होने की वजह से अच्छी पैठ रखते हैं. इनके अलावा गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी, केंद्रीय नेताओं में राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, स्मृति ईरानी, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी वो चेहरे हैं जिन्हें सुनने के लिए लोग चुनावी सभाओं में  पहुंचते हैं.

चुनावी जानकारों के मुताबिक इसमें कोई शक नहीं 22 साल से गुजरात की सत्ता में होने की वजह से बीजेपी को ‘सत्ता विरोधी रूझान’(एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर) का डर है लेकिन साथ ही उसे ‘मोदी मैजिक’ और ‘रणनीति के शाह’ पार्टी अध्यक्ष की जुगलबंदी के इस बार भी क्लिक होने की उम्मीद है. वहीं, कांग्रेस का सारा दारोमदार राहुल गांधी की मेहनत और ‘हार्दिक, अल्पेश और जिग्नेश’ की तिकड़ी के समर्थन पर टिका है.    

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