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पंचायत चुनाव भी नहीं जीत पाए थे अल्पेश, अब कांग्रेस के तारणहार

अल्पेश ओबीसी समुदाय से आते हैं और युवा हैं तथा समुदाय के मुद्दों पर खासा सक्रिय रहे हैं लेकिन चुनावी गणित अलग है. जिस अल्पेश पर राहुल गांधी ने सबसे पहले दांव लगाया है वे एक समय जिला पंचायत का चुनाव भी नहीं जीत सके थे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस अपने 22 साल के सत्ता के वनवास को तोड़ पाएंगी?

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अल्पेश ठाकोर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अल्पेश ठाकोर
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 24 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 8:51 AM IST

गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान अभी भले ही न हुआ हो लेकिन सियासी तलवारें खिंच चुकी हैं. बीजेपी सत्ता को बचाने की जद्दोजहद में लगी है तो कांग्रेस उसी के तीरों से उसे घेरकर राज्य में अपना बनवास खत्म करने में. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गुजरात की सियासी जंग फतह करने के लिए तीन युवा चेहरों पर दांव लगाया है. इनमें सबसे पहले अल्पेश ठाकोर कांग्रेस के खेमे में आए हैं.

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अल्पेश ओबीसी समुदाय से आते हैं और युवा हैं तथा समुदाय के मुद्दों पर खासा सक्रिय रहे हैं लेकिन चुनावी गणित अलग है. जिस अल्पेश पर राहुल गांधी ने सबसे पहले दांव लगाया है वे एक समय जिला पंचायत का चुनाव भी नहीं जीत सके थे. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस अपने 22 साल के सत्ता के वनवास को तोड़ पाएंगी?

अल्पेश की कांग्रेस में घर वापसी

गुजरात में ओबीसी चेहरे के तौर पर पहचान बनाने वाले अल्पेश ठाकोर ने सोमवार को कांग्रेस का दामन थाम लिया. राहुल गांधी की मौजूदगी में अल्पेश कांग्रेस में शामिल हुए. उनकी कांग्रेस में दोबारा से वापसी हुई है. इससे पहले अल्पेश 2009 से 2012 तक कांग्रेस में रह चुके हैं.

अल्पेश की जिला पंचायत चुनाव में हुई थी हार

अल्पेश ठाकोर ने गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस के लिए तारणहार बनने के लिए वापसी की है, लेकिन 2012 के जिला पंचायत चुनाव में मांडल सीट से वह जीत नहीं सके थे. अल्पेश ने उस समय भी कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर किस्मत आजमाई थी. इतना ही नहीं 3 साल पहले भी वह कांग्रेस का फटका डालकर प्रचार कर रहे थे. अल्पेश ठाकोर के पिता खोड़ाजी ठाकोर कांग्रेस के अहमदाबाद के ग्रामीण जिला अध्यक्ष रहे हैं.

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पांच साल में अल्पेश का बढ़ा ग्रॉफ

बता दें कि पिछले पांच साल में गुजरात का माहौल काफी बदला है. अल्पेश ठाकोर का पिछले पांच सालों में ग्रॉफ काफी बढ़ा है. अल्पेश ने अपना राजनीतिक ग्रॉफ बढ़ाने के लिए सामाजिक आंदोलन की राह पकड़ी. उन्होंने राज्य के ओबीसी समुदाय के 146 जातियों को एकजुट करने का बीड़ा उठाया और अवैध शराब के खिलाफ मुहिम छेड़ी.  

अल्पेश को इन जातियों का समर्थन उनकी नशा के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम से ही मिला है. कहा जाता है कि अल्पेश कांग्रेस के साथ आने के पहले बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके थे. पिछले साल एक रैली में उन्होंने यह ऐलान कर दिया था कि अगला मुख्यमंत्री बीजेपी से नहीं बल्कि हमारा होगा.

अल्पेश के पिता बीजेपी में भी रह चुके

अल्पेश की राजनीतिक पृष्ठभूमि के बारे में बात की जाए तो उनके पिता खोड़ाजी ठाकोर कांग्रेस से हैं. इसके पहले वे शंकर सिंह वाघेला के साथ बीजेपी से जुड़े थे, लेकिन बाद में वाघेला के कांग्रेस में जाने के बाद वे भी कांग्रेस में चले गए. अब वे कांग्रेस में हैं.

मूलतः अहमदाबाद के एंडला गांव के रहने वाले अल्पेश समाज सेवा के अलावा खेती और रियल एस्टेट का व्यवसाय करते हैं, उनका गांव हार्दिक पटेल के चंदन नगरी से कुछ ही किलोमीटर दूर है. पांच साल पहले अल्पेश तब सुर्ख़ियों में आए थे जब उन्होंने गुजरात क्षत्रिय-ठाकोर सेना का गठन किया था. यह संगठन नशा मुक्ति के लिए गुजरात में काम करता है. आज भी इस संगठन में 6.5 लाख लोग रजिस्टर्ड है.

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हाल ही में अल्पेश ने एकता मंच की स्थापना की. जिसके अंतर्गत ओबीसी, एससी, एसटी समुदाय के लोगों को उन्होंने अपने साथ जोड़ा. मालूम हो कि गुजरात में 22 से 24 प्रतिशत ठाकोर समुदाय के लोग हैं. देखना ये होगा कि कांग्रेस का साथ और चुनावी रण में अल्पेश कितने प्रभावी साबित होते हैं.

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