
गुजरात में पहले चरण के मतदान के लिए अब 15 दिन का ही समय बचा है. चुनावी रण में अब पूरी ताकत झोंकने में बीजेपी और कांग्रेस, दोनों मोर्चों में से कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता. बीजेपी ने जिस तरह प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों समेत 50 दिग्गज नेताओं के जरिए कारपेट बॉम्बिंग की तैयारी की है, उसी की काट में कांग्रेस ने प्रचार के लिए ‘गुरिल्ला वॉर’ टेकनीक अपनाने का फैसला किया है.
राहुल गांधी का पांचवां गुजरात दौरा
राहुल गांधी नवसर्जन यात्रा के तहत अब तक गुजरात में 3-3 दिन के चार दौरे कर चुके हैं. राहुल पांचवीं बार शुक्रवार को गुजरात के दो दिन के दौरे पर आऩे वाले हैं. राहुल के गुजरात दौरों की खास बात ये है कि इनमें पार्टी का राष्ट्रीय स्तर का या किसी दूसरे राज्य का कोई नेता नहीं होता. सिर्फ पार्टी के प्रभारी महासचिव और राज्य के नेता ही साथ होते हैं.
प्रचार के लिए कांग्रेस की ट्रैक 2 रणनीति
कांग्रेस का मानना है कि राहुल का गुजरात में थोड़े थोड़े अंतराल के बाद जाना, पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश बनाए रखने में बहुत कारगर साबित हुआ है. पार्टी को चार्ज रखने के साथ लोगों में भी पार्टी का पक्ष प्रभावी ढंग से रखते हैं. राहुल कांग्रेस के पास सबसे बड़े ‘क्राउड पुलर’ चेहरा हैं. राहुल के बाद कांग्रेस ‘ट्रैक 2’ रणनीति के तहत इलाके और लोगों में पैठ के हिसाब से अपने दूसरे नेताओं को मैदान में उतारती है. गुजरात की सीमाएं तीन राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र से सटी हैं. राहुल जब दौरे पर नहीं होते तो इन तीनों राज्यों से पार्टी के नेताओं की उनके प्रभाव वाले इलाकों में रैलियां कराई जा रही हैं. यही वजह है कि इन तीन राज्यों से ताल्लुक रखने वाले नेताओं, जैसे कि सचिन पायलट, ज्योदिरादित्य सिंधिया, संजय निरूपम और पृथ्वीराज चव्हाण की गुजरात में पार्टी के प्रचार के लिए काफी डिमांड है.
पार्टी अपने इन नेताओं की रैलियां फेसबुक, यू ट्यूब और ट्विटर के ज़रिये प्रचारित-प्रसारित कर रही है. जैसे जैसे मतदान की तारीख नजदीक आएंगी, पार्टी प्रचार में ताकत बढ़ाती जाएगी.
महंगाई का मुद्दा भी जोरशोर से उठाएगी कांग्रेस
राहुल गुजरात चुनाव प्रचार में नोटबंदी और जीएसटी के मुद्दों को जोरशोर से उठाते रहे हैं. इसी कड़ी में कांग्रेस पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम जैसे आर्थिक मामलों के जानकार माने जाने वाले नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करा चुकी है. नोटबंदी और जीएसटी के साथ ही कांग्रेस ने अब महंगाई के मुद्दे पर भी जोर देने की रणनीति बनाई है.
पीएम की रैलियों के जवाब के लिए खास रणनीति
जल्दी ही कांग्रेस की ओर से गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक, बी के हरिप्रसाद सरीखे दिग्गज नेता भी प्रचार के मोर्चे पर बैटिंग करते देखे जाएंगे. ‘काउंटर टैक्टिक्स’ के तहत ये ध्यान रखा जाएगा कि जहां प्रधानमंत्री मोदी या बीजेपी के अन्य बड़े नेताओं की रैलियां हों, उसी के आसपास कांग्रेस नेताओं के भी कार्यक्रम रखे जाएं. कोशिश यही रहेगी कि कांग्रेस का पक्ष भी हाथोंहाथ उस इलाके के लोगों के बीच पहुंच जाए. राष्ट्रीय मीडिया पर बेशक ऐसे कार्यक्रमों को तवज्जो ना मिले लेकिन स्थानीय स्तर पर अखबारों और चैनलों के जरिए जरूर संदेश प्रसारित होगा.
पार्टी ने तय किए 27 नेताओं के कार्यक्रम
नवजोत सिंह सिद्धू और राज बब्बर की लोकप्रियता को देखते हुए पार्टी इन दोनों नेताओं को भी स्टार प्रचारकों की तरह मैदान में उतारेगी. राज बब्बर पहले भी गुजरात जाकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं. कांग्रेस ने कपिल सिब्बल, शीला दीक्षित, आरपीएन सिंह, सलमान खुर्शीद, अमरिंदर सिंह, सुष्मिता देव समेत 27 बड़े नेताओं के अलग अलग दिन के कार्यक्रम, प्रेस कॉन्फ्रेंस आदि की रुपरेखा भी तैयार कर रखी है.
सुरजेवाला समेत 6 प्रवक्ताओं को 14 दिसंबर तक गुजरात में ही रहने के लिए कहा गया
कांग्रेस ने मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला समेत अपने छह प्रवक्ताओं को 27 नवंबर से 14 दिसंबर तक गुजरात में कैम्प करने के लिए कहा है. सुरजेवाला के अलावा इन प्रवक्ताओं में संजय निरूपम, प्रियंका चतुर्वेदी, पवन खेड़ा, जयवीर शेरगिल और चरण सिंह सपरा शामिल हैं. मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरूपम को विशेष तौर पर बड़ौदा में रहने के लिए कहा गया है.
कांग्रेस की ओर से अपने हर बड़े नेता को साफ कर दिया गया है कि वे किसी भी वक्त गुजरात जाने के लिए तैयार रहें. जहां भी जरूरत होगी वहां उन्हें बुला लिया जाएगा. पार्टी की कोशिश यही है कि दिग्गज नेताओं को फ्रंट पर रखकर बाकी सभी नेताओं को भी स्टैंड बाई पर रखा जाए जिससे कि पूरी पार्टी एक्टिव मोड में रहे. अब देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी के ‘कॉरपेट बॉम्बिंग’ या कांग्रेस के ‘गुरिल्ला वार’ टैक्निक प्रचार में कौन भारी साबित होता है.