
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने अमेरिका के वित्त मंत्री स्टीवन न्यूचिन के समक्ष H-1B VISA पर प्रतिबंध के मुद्दे को उठाया. भारत को आशंका है कि इस प्रतिबंध से भारतीय आईटी पेशेवरों का अमेरिका आना प्रभावित होगा. अमेरिका के वित्त मंत्री के साथ बैठक के दौरान जेटली ने भारतीय कंपनियों तथा पेशेवरों के अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान को देखने की जरूरत पर जोर दिया. जेटली के मुताबिक अमेरिका के ऐसे रुख से उसे बड़ा नुकसान हो सकता है.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा कार्यक्रम से जुड़े नियमों को कड़ा करने के लिये सरकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिया है. इसका मकसद वीजा के दुरूपयोग को रोकना तथा यह सुनिश्चित करना है कि वीजा सर्वाधिक कुशल पेशेवर को दिया जाए.
इस निर्णय से भारत के 150 अरब डालर का आईटी उद्योग प्रभावित होगा. भारतीय आईटी उद्योग ने इसपर गंभीर आपत्ति जतायी है क्योंकि इस वीजा का उपयोग मुख्य रूप से घरेलू आईटी पेशेवर अमेरिका में अल्पकालीन कार्य के लिये करते हैं. इससे पहले, वित्त मंत्री ने वीजा मुद्दे को अमेरिकी वाणिज्य मंत्री विलबर रोस के समक्ष भी उठाया था. एक सरकारी बयान में कहा गया है, जेटली ने कुशल भारतीय पेशेवरों के लिये एच-1बी वीजा मुद्दे को उठाया है.
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बैठक में आतंकवादियों के वित्त पोषण से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा की गयी और अमेरिकी वित्त मंत्री ने वित्तीय कार्यबल में भारत-अमेरिका सहयोग समेत इस संदर्भ में भारत की भूमिका की सराहना की. विश्वबैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की गृष्मकालीन बैठक के दौरान अलग से बैठक में दोनों नेता ने इन मुद्दों पर चर्चा की.
बयान में कहा गया है कि चर्चा के दौरान जेटली ने भारत के महत्वकांक्षी सुधार एजेंडा के रेखांकित किया जो दोनों देशों के बीच आने वाले वर्ष में आर्थिक रिश्तों को और प्रगाढ़ बनाने का नया अवसर सृजित करता है. जेटली ने स्वीडन, फ्रांस और बांग्लादेश के वित्त मंत्रियों के साथ भी द्विपक्षीय बैठकें की.
जेटली के मुताबिक बाजार उदारीकरण और प्रतिस्पर्धी लाभ पर ध्यान देने के विमर्श को संरक्षणवाद में वृद्धि की ओर मोड़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था और जन कल्याण को नुकसान ही पहुंचेगा. वित्त मंत्री ने कहा कि हमें मिलकर अपनी सहमति को फिर से मजबूत करना चाहिए ताकि विश्व अर्थव्यवस्था को निम्न वृद्धि दर के दुष्चक्र में फंसने, विषमता में वृद्धि और जलवायु में अपरिवर्तनीय बदलाव से बचा जा सके.