
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बीते 20 मार्च को उच्च शिक्षा के 62 संस्थानों को पूरी स्वायत्तता प्रदान करने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि सरकार शिक्षा के क्षेत्र में उदार व्यवस्था कायम करना चाहती है और स्वायतत्ता को गुणवत्ता से जोड़ने पर जोर दे रही है.
जावड़ेकर ने सरकार के इस कदम को ऐतिहासिक बताया. यह ऐतिहासिक तो है लोकिन उस तरह नहीं जैसा कि शिक्षा मंत्री और सरकार का दावा है. अगर इस बार के बजट में उच्च शिक्षा को मिली रकम और स्वायत्तता संबंधी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की अधिसूचना की शर्तों को देखें तो यह साफ हो जाता है कि सरकार दरअसल शिक्षा से हाथ पीछे खिंच रही है.
विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता संबंधी 12 फरवरी 2018 की यूजीसी की अधिसूचना में संस्थानों को दो श्रेणियों में स्वायत्तता देने की बात कही गई है. दोनों ही श्रेणियों में संस्थानों को कुछ छूट दी गई हैं जिनमें यूजीसी से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.
लेकिन इसकी शर्त यही है कि संस्थानों को उसके लिए फंड खुद जुटाना होगा और सरकार से वह कोई अनुदान नहीं मांगेगे. इससे जाहिर है कि सरकार दरअसल इन संस्थानों को इस कथित स्वायत्तता के बदले फंड नहीं देगी.
स्वायत्तता की श्रेणी-1 वाले संस्थान बिना यूजीसी के अनुमोदन के ही नए पाठ्यक्रम, स्कूल केंद्र आदि खोल सकते हैं या फिर सुदूर कैंपस भी खोल सकते हैं. लेकिन शर्त वही है कि वे सरकार से फंड नहीं मांगेंगे.
वहीं श्रेणी-2 के संस्थान बिना अनुमोदन के नए पाठ्यक्रम, स्कूल आदि तो खोल सकते हैं लेकिन सुदूर कैंपस के समय यूजीसी की अनुमति चाहिए पर अनुमति प्रदान करते समय निरीक्षण की जरूरत नहीं रहेगी. लेकिन इन सबकी शर्त बस यही है कि सरकार से किसी भी तरह के फंड की उम्मीद संस्थान नहीं करेंगे.
इसी तरह बजट में सरकार ने विश्वविद्यालय, आइआइटी, आइआइएम आदि उच्च शिक्षा के सभी स्वायत्तत संस्थानों के बजट में पिछली बार की तुलना में करीब 3,233 करोड़ रु. की कटौती कर दी. इससे भी साफ है कि सरकार उच्च शिक्षा से हाथ खिंच रही है.
इस कथित स्वायत्तता की कीमत छात्रों को ही चुकानी पड़ेगी. दरअसल ये संस्थान छात्रों की फीस आदि बढ़ा कर ही अपना फंड जुटा सकते हैं. दूसरी बात कि उन्हें निजी क्षेत्रों फंड जुटाना होगा ऐसे में जो पैसा देगा, जाहिर है संस्थानों को उनके हाथों अपनी स्वायत्तता गंवाने या प्रभावित होने का खतरा बरकरार रहेगा. यही वजह है कि छात्र और शिक्षक संगठन इसे शिक्षा के निजीकरण की कवायद मान रहे हैं.
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