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आपातकाल: रिलीज से पहले देखी जाती थी फिल्में, जलवा दिए थे प्रिंट

इमरजेंसी के असर से सिनेमा भी अछूता नहीं रहा. फिल्मों पर इमरजेंसी का असर इतना प्रभावी था कि कई मेकर्स को भारी नुकसान झेलना पड़ा था.

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हंसा कोरंगा
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2018,
  • अपडेटेड 8:39 AM IST

25 जून 1975 की आधी रात को भारत इमरजेंसी का गवाह बना था. इस दिन को लोकतंत्र का काला दिन कहा जाता है. आपातकाल का ये दौर 21 मार्च 1977 तक चला. देश के लोगों की जिंदगी पर इमरजेंसी का गहरा असर पड़ा. इससे सिनेमा भी अछूता नहीं रहा. फिल्मों पर इमरजेंसी का असर इतना प्रभावी था कि कई निर्माताओं, कलाकारों को भारी नुकसान झेलना पड़ा. फिल्मों की सेंसरशिप में दखलअंदाजी की जाने लगी, फिल्म के प्रिंट स्क्रीन तक जला दिए गए थे. इमरजेंसी से सिनेमाई जगत के कई किस्से जुड़े हैं. चलिए जानते हैं...

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#1. शोले का क्लाइमैक्स बदला गया, पहले मार दिया गया था गब्बर

हिंदी सिनेमा की आइकॉनिक फिल्म शोले पर भी इमरजेंसी की मार पड़ी थी. फिल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने कई मौकों पर इसका खुलासा किया है कि कैसे आपातकाल ने उनकी फिल्म को प्रभावित किया. उन्होंने कहा था, ''फिल्म का क्लाइमैक्स जैसा दिखाया गया वैसा नहीं था. सेंसर ने फिल्म के क्लाइमैक्स पर आपत्ति जताई थी. असली क्लाइमैक्स सीन में ठाकुर अपने नुकीले जूतों से गब्बर को मार देता है. इस सीन को सेंसर ने कानून का हवाला देकर बदलने को कहा था. इसके बाद 26 दिनों में क्लाइमेक्स को दोबारा से शूट किया गया. जिसमें गब्बर को कानून के हवाले किया गया.''

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#2. नसबंदी के लिए कुख्यात हुई अमृता सिंह की मां

इमरजेंसी के दौरान नसबंदी के फैसले ने लोगों को चकित कर दिया था. इस दौरान 60 लाख लोगों की नसबंदी करा दी गई थी. संजय गांधी ने नसबंदी अभियान के लिए कई नामी लोगों को चुना. जिनमें एक्ट्रेस अमृता सिंह की मां रुखसाना सुल्ताना भी थीं. संजय रुखसाना के माध्यम से मुस्लिम समुदाय के ज्यादा से ज्यादा लोगों को नसबंदी के लिए राजी कराना चाहते थे. बताया जाता है कि नसबंदी का यह काम इस खौफनाक तरीके से चलाया जा रहा था कि रुखसाना को देखते ही लोग डर जाते थे. रुखसाना, संजय गांधी की करीबी दोस्त बन गई थीं.   

#3. 'किस्सा कुर्सी का' पर बैन लगा, जलाए प्रिंट

इमरजेंसी के दौरान फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' पर बैन लगा था. फिल्म पर संजय गांधी के ऑटो-मैन्युफैक्चरिंग प्लान्स का मजाक उड़ाने का आरोप था. संजय गांधी के समर्थकों ने मूवी के मास्टर प्रिंट्स और कॉपियों को सेसर बोर्ड से उठाकर जला दिया था. बाद में फिल्म को अलग कास्ट के साथ बनाया गया था.

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#4. गुलजार की फिल्म 'आंधी' पर लगी पाबंदी

संजीव कुमार-सुचित्रा सेन की फिल्म 'आंधी' को इमरजेंसी के दौरान बैन कर दिया गया था. आरोप था कि मूवी में इंदिरा गांधी की जिंदगी को गलत तरीके से पेश किया गया था. आपातकाल में इसे बैन कर दिया गया. बैन से फिल्म को और ज्यादा पॉपुलैरिटी मिली. 1977 में कांग्रेस की हार के बाद जनता पार्टी की सरकार ने फिल्म से बैन हटा दिया था और मूवी का प्रीमियर टीवी पर भी किया गया.

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#5.किशोर कुमार को झुकाने के लिए आजमाया गया हर पैंतरा 

उस दिनों इंदिरा गांधी का प्रोपेगेंडा संभालने वाले विद्या चरण शुक्ला की ओर से किशोर कुमार को फोन आया था. संदेश वाहक ने किशोर को ऑफर दिया था कि वे इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के 20 सूत्री प्रोग्राम के लिए बनाए गाने को अपनी आवाज दें. किशोर ने पूछा कि वो इस गाने को क्यों गाएं, तो फोन करने वाले ने कहा - ये सूचना और प्रसारण मंत्री वीसी शुक्ल का आदेश है. आदेश की बात पर किशोर कुमार भड़क गए थे. उन्होंने फोन करने वाले को डपट कर बोला- पागल सा.. चल भाग. किशोर की बात पर मंत्री जी नाराज हो गए थे और उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर किशोर के गाने प्रतिबंधित कर दिए थे.

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#6. आपातकाल पर बनी इंदू सरकार, कांग्रेसियों ने की आपत्ति

डायरेक्टर मधुर भंडारकर की 1975 के इमरजेंसी के बैकड्रॉप पर बनीं फिल्म 'इंदू सरकार' रिलीज से पहले ही विवादों में छाई थी. ट्रेलर लॉन्च के बाद से ही फिल्म को देशभर में काफी विरोध झेलना पड़ा. ये विरोध इतना ज्यादा है कि लीगल नोटिस से लेकर, पुतला फूंकने तक मधुर भंडारकर को काफी विरोध का सामना करना पड़ा था. मधुर पर ये भी आरोप लगाया गया है कि वो मोदी के समर्थक हैं इसलिए विपक्ष को जवाब देने के मकसद से फिल्म को बीजेपी का समर्थन मिल रहा है. कांग्रेसियों ने फिल्म के सब्जेक्ट पर सवाल उठाए थे.

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