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ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी आज: जानिए क्या था इंदिरा गांधी का पहला रिएक्शन

ऑपरेशन ब्लू स्टार के चश्मदीद रहे इंदरजीत सिंह बागी के शब्द, 'ऐसे लाशें पड़ी थीं, जैसे किसी पिक्चर में देखा जा सकता था, किसी जंग के मैदान में देखा जा सकता था, वैसा नजारा मैंने अपनी आंखों से पहले बार देखा.'

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सुरभि गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 06 जून 2016,
  • अपडेटेड 9:31 PM IST

स्वर्ण मंदिर में डेरा जमाए बैठे अलगाववादियों को हटाने के लिए 6 जून 1984 को सेना ने अभि‍यान चलाया- ऑपरेशन ब्लू स्टार. इतिहास की इस काली तारीख पर हम पेश कर रहे हैं इस घटना से जुड़े महत्वपूर्ण बयान-

- तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन के बाद कहा था, 'मैं नहीं समझती कि उसके अलावा हम कुछ और कर सकते थे. हम उन्हें पूरा वक्त देना चाहते थे. हम ये बताना चाहते थे कि हमें खबर है कि अंदर काफी हथियार इकट्ठा कर लिए गए हैं. अपराधियों और हत्यारों को पनाह दी गई है. हम ये उम्मीद कर रहे थे कि वो खुद ही कुछ करेंगे और ऐसे लोगों को इतनी पवित्र और पाक जगह में शरण नहीं लेने देंगे.'

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- ऑपरेशन खत्म होने के बाद जब पीएम इंदिरा गांधी तक यह संदेश पहुंचाया गया कि इसमें बड़ी संख्या में सैनिक और आम नागरिक मारे गए हैं तो उनकी प्रतिक्रिया थी, ‘हे भगवान, इन लोगों ने तो मुझे बताया था कि कोई हताहत नहीं होगा.’

- श्रीमती गांधी के विश्वस्त निजी सचिव रहे आर. के. धवन के मुताबिक, 'जनरल वैद्य ने उन्हें (इंदिरा गांधी को) भरोसा दिलाया था कि कोई मौत नहीं होगी और स्वर्ण मंदिर को कोई नुकसान नहीं होगा.

- ऑपरेशन सनडाउन रद्द होने पर धवन का कहना है, 'दो संविधानेतर हस्तियों ने उनका फैसला बदलवाया. इन दोनों को बाद में राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में बड़ी हैसियत मिली. उन्होंने श्रीमती गांधी से कहा था कि सैनिक कार्रवाई ही एक मात्र समाधान है.’

- अप्रैल, 1984 में बीबीसी के दिल्ली ब्यूरो के सतीश जैकब ने मंदिर में निर्माण सामग्री ले जाते ट्रक देखे थे. उन्होंने दरमियाने कद के दुबले-पतले, गोरे, लंबी दाढ़ी वाले एक शख्स को सलवार कमीज में भी देखा था. ये भिंडरावाले के सैनिक सलाहकार शाबेग सिंह थे. शाबेग ने कहा था, ‘हम तो पंथ की सेवा के लिए काम कर रहे हैं.’

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- ऑपरेशन सनडाउन रद्द होने पर रक्षा विशेषज्ञ, मनदीप सिंह बाजवा, ‘कमांडो ऑपरेशन रद्द करने की एक और वजह शायद राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के भीतर के नरम गुट का प्रभाव था. यह गुट चाहता था कि भिंडरावाले के साथ बातचीत से मसला सुलझाया जाए.’

- BBC के पत्रकार रहे मार्क टुली और सतीश जैकब की 1985 में प्रकाशि‍त पुस्तक 'अमृतसरः मिसेज गांधीज लास्ट बैटल' में लिखा, ‘श्रीमती गांधी आसानी से फैसले लेने वाली महिला नहीं थीं. वे कोई भी कदम उठाने में बहुत हिचकती थीं. उन्होंने कार्रवाई का फैसला तब किया जब बुरी तरह से घिर गई थीं. सेना उनका आखिरी सहारा थी. उन्होंने ऑपरेशन ब्लूस्टार को हरी झंडी दिखा दी.’

- 10वीं पैरा/स्पेशल फोर्सेज के एक कर्नल को 50 अधिकारियों और सैनिकों की एक टुकड़ी गठित करने का काम सौंपा गया था, जिसमें सभी भारतीय थे. इस कर्नल ने कहा, ‘शाबेग को सेना की कमजोरी मालूम थी. वह जानता था कि हम किलाबंद इलाके में नहीं लड़ सकते.’

- अकाल तख्त के तहखाने में कमांडो को शाबेग की लाश मिली थी. सेना ने 41 लाइट मशीन गन बरामद की, जिनमें से 31 अकाल तख्त के आसपास मिली. लेफ्टिनेंट जनरल बराड़ ने अपनी किताब 'ऑपरेशन ब्लूस्टारः द ट्रू स्टोरी' में लिखा है, ‘सामान्य तौर पर सेना की (करीब 800 जवानों की) कोई यूनिट इतने हथियारों का इस्तेमाल 8 किमी इलाके की घेराबंदी के लिए इस्तेमाल करती है.’

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- जरनैल सिंह भिंडरावाले के शब्द, 'सिख कभी भी शर्त रखकर किसी आदमी को नहीं मारता और सिख किसी के मारे जाने पर प्रशंसा नहीं करता.'

- भिंडरावाले के शब्द, 'जब तक शरीर में सांस है, मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि 20 से 30 लाख भी पुलिस के सिपाही आ जाएं, जीते जी नहीं पकड़ सकते. मेरे ऊपर गुरु साहिब की कृपा है.'

- ऑपरेशन ब्लू स्टार के चश्मदीद रहे इंदरजीत सिंह बागी के शब्द, 'ऐसे लाशें पड़ी थीं, जैसे किसी पिक्चर में देखा जा सकता था, किसी जंग के मैदान में देखा जा सकता था, वैसा नजारा मैंने अपनी आंखों से पहले बार देखा.'

- उस वक्त बीबीसी के संवाददाता रहे मार्क टुली ने भिंडरावाले के बारे में कहा, 'उसके चेहरे और व्यवहार में काफी क्रूरता थी. उसका चेहरा काफी सख्त और क्रूर था. वो काफी दबंग मिजाज का था. उसके साथी उससे सहमे रहते थे.'

- उस वक्त इंडिया टुडे के प्रमुख संवाददाता रहे शेखर गुप्ता ने कहा, 'वो कभी भी साफ नहीं बोलता था कि ये करो वर्ना गोली मार दूंगा. इस बात को बड़ी चालाकी से कहता था.'

- ऑपरेशन ब्लू स्टार के कमांडर रहे ले. जनरल बराड़ ने कहा, 'बाहर के देशों के साथ लड़ाई हो, तो ठीक है लेकिन अपने लोगों को मारना अच्छा नहीं लगता, लेकिन क्या करें अगर उन्होंने कानून को अपने हाथ में ले लिया. मैं सिख जरूर हूं, लेकिन जब हम फौज में भर्ती होते हैं, तो हम कसम खाते हैं कि हम देश की सेवा करेंगे. हम धर्म, जाति जैसी चीजों की परवाह नहीं करते.'

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