Advertisement

Income Tax Day: क्या खत्म कर देना चाहिए इनकम टैक्स, टैक्सपेयर्स को प्रोत्साहन क्यों नहीं?

आज यानी 24 जुलाई को आयकर दिवस है. आधुनिक भारत में इनकम टैक्स व्यवस्था की शुरुआत 24 जुलाई, 1860 को हुई थी. . बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी जैसे कई जानकार कहते रहे हैं कि देश में पर्सनल इनकम टैक्स की जरूरत क्या है और इसे खत्म कर देना चाहिए.

इनकम टैक्स की मौजूदा व्यवस्था मध्यम वर्ग को परेशान करने वाली है इनकम टैक्स की मौजूदा व्यवस्था मध्यम वर्ग को परेशान करने वाली है
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 24 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 3:26 PM IST

  • आज यानी 24 जुलाई को भारत का इनकम टैक्स डे है
  • इस दिन ​जेम्स विल्सन ने इस व्यवस्था की शुरुआत की थी
  • जानकार आयकर व्यवस्था को खत्म करने की मांग करते हैं

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता सुब्रमण्यम स्वामी जैसे कई जानकार यह सवाल उठाते रहे हैं कि देश में पर्सनल इनकम टैक्स की जरूरत क्या है और इसे खत्म कर देना चाहिए. तमाम जानकार यह भी कहते हैं कि भारत में इनकम टैक्स देने वाले को कोई प्रोत्साहन नहीं है बल्कि उसे प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है. आज आज यानी 24 जुलाई को आयकर दिवस पर एक्सपर्ट्स से जानते हैं कि क्या पर्सनल इनकम टैक्स की व्यवस्था को खत्म करना संभव है, क्या है इसके नफा-नुकसान?

Advertisement

कब से हुई इनकम टैक्स व्यवस्था की शुरुआत

भारत में आयकर व्यवस्था को लागू हुए 160 साल हो चुके हैं. आधुनिक भारत में इनकम टैक्स व्यवस्था की शुरुआत सबसे पहले ब्रिटिश सरकार की कौंसिल ऑफ इंडिया के फाइनेंशियल मेंबर जेम्स विल्सन ने की थी. यह व्यवस्था 24 जुलाई, 1860 को लागू हुई थी. कहा जाता है कि 1857 की प्रथम क्रांति से ​ब्रिटिश सरकार​ को जो घाटा हुआ उसकी भरपाई के लिए इसकी शुरुआत हुई. इसके बाद इसमें 1918, 1922 और 1961 में कई बदलाव किए गए. अभी जो कानून है उसके ज्यादातर प्रावधान इनकम टैक्स एक्ट 1961 के हैं.

इसे भी पढ़ें: इन्फोसिस के 74 कर्मचारी हुए करोड़पति, चेयरमैन नीलेकणी ने नहीं लिया वेतन

इनकम टैक्स के दो हिस्से हैं

इनकम टैक्स के दो हिस्से होते हैं. एक पर्सनल इनकम टैक्स जो आम करदाता से जुटता है और दूसरा कॉरपोरेट टैक्स जो कंपनियों की आय पर लिया जाता है. इनकम टैक्स कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं है. यह सभी नागरिकों के लिए ​अनिवार्य है. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) के आंकड़ों के मुताबिक 2019-20 में कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह 12.33 लाख करोड़ रुपये का हुआ था, जिसमें कॉरपोरेट टैक्स 6.78 लाख करोड़ रुपये और पर्सनल इनकम टैक्स 5.55 लाख करोड़ रुपये का था.

Advertisement

इस टैक्स संग्रह से ही सरकार ज्यादा से ज्यादा कल्याणकारी योजनाएं चलाती है. इसके अलावा टैक्स राजस्व से ही सरकार सभी नागरिकों को चिकित्सा, शिक्षा, बिजली, मकान, राशन, पुलिस, सुरक्षा, सड़क जैसी जरूरी सेवाएं मुहैया करती है.

इन देशों में नहीं लगता है इनकम टैक्स

यूएई, मोनाको, बहरीन, ब्रुनेई, केमन आइलैंड, बहामास, बरमूडा जैसे करीब 15 देशों में इनकम टैक्स जैसी कोई चीज नहीं है. लेकिन ये देश तेल या अन्य स्रोतों, संसाधनों से भारी कमाई करते हैं और दूसरे ये बहुत छोटे देश हैं. ओईसीडी ने भी इस तरह का प्रयास शुरू किया है कि हर देश कम से कम टैक्स लगाएं. सिंगापुर, चीन जैसे देशों में इनकम टैक्स पर निर्भरता कम है.

क्या होगा फायदा

कॉरपोरेट पर लगने वाला इनकम टैक्स तो जरूरी है, लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी जैसे राजनेता और कई एक्सपर्ट अक्सर यह मांग करते रहे हैं कि आम जनता पर लगने वाले पर्सनल इनकम टैक्स को खत्म कर देना चाहिए. सुब्रमण्यम स्वामी का तो कहना है कि यह अ​र्थव्यवस्था में सुधार लाने के लिए जरूरी है. उनका तर्क है- इकोनॉमी की समस्या यह है कि मांग की कमी है, इसलिए इनकम टैक्स खत्म करने से लोगों के हाथ में पैसा आएगा और मांग बढ़ेगी. इससे लोगों का डर और प्रताड़ना कम होगी. जानकारों का कहना है कि इससे लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा आएगा, मांग बढ़ेगी, निवेश बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी.

Advertisement

राजस्व की कहां से होगी भरपाई

सरकार करीब 7 लाख करोड़ रुपये का कॉरपोरेट टैक्स हासिल करती है. सरकार ने 99% कॉरपोरेट के लिए टैक्स 30 से घटाकर 25 फीसदी कर दिया है. इस टैक्स में अगर 2 फीसदी की भी बढ़त कर दी जाए तो पर्सनल इनकम टैक्स से होने वाले नुकसान के कुछ हिस्से की भरपाई हो जाएगी.

इसे भी पढ़ें: चमत्कारिक है पतंजलि की सफलता की कहानी, 8 हजार करोड़ से ज्यादा का कारोबार

पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स यूपी चैप्टर के को-चेयरमैन और ग्लोबल टैक्सपेयर्स ट्रस्ट के अध्यक्ष मनीष खेमका कहते हैं, 'पर्सनल इनकम टैक्स को खत्म करने से लोगों के पास जो पैसा आएगा वे उसे कहीं न कहीं खर्च करेंगे, जिससे जीएसटी से आने वाला राजस्व काफी बढ़ जाएगा. इससे अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह बढ़ेगा. बहुत से छोटे व्यापारी, नौकरी पेशा लोग इसकी वजह से खुलकर काम या खर्च नहीं कर पाते. फाइव ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का लक्ष्य तभी हो सकता है, जब करदाता की जोखिम लेने की क्षमता को हम बढ़ाएं. अभी बहुत से करदाता टैक्स की झंझटों की वजह से निवेश का जोखिम नहीं ले पाते.'

सामाजिक न्याय का एक तरीका है पर्सनल इनकम टैक्स

टैक्स एक्सपर्ट बलवंत जैन इस विचार से इत्तेफाक नहीं रखते कि पर्सनल इनकम टैक्स को खत्म किया जा सकता है. उनका कहना है कि व्यक्तिगत आयकर सरकार के लिए राजस्व का बड़ा स्रोत है और इसके बिना जनकल्याणकारी योजनाएं चलाना आसान नहीं होगा. उन्होंने कहा, 'मैं इसके खिलाफ हूं, इसकी दो वजह है- इक्विटेबल डिस्ट्रिब्यूशन का सामाजिक न्याय और दूसरी पारदर्शिता. इनकम टैक्स लोगों की कमाई की क्षमता के आधार पर लगता है. इसलिए यह इक्वि​टेबल डिस्ट्रिब्यूशन का जरिया है. सोशल जस्टिस और इक्वि​टेबल ड्रिस्टिब्यूशन होता है जिसमें अमीरों से लेकर गरीबों को दिया जाता है. दूसरे, यह एक तरह से सरकार के कंट्रोल का जरिया है. यह मालूम तो है ​कि कौन-सा पैसा कहां से आ रहा है, कहां जा रहा है? नहीं तो मनी लॉड्रिंग तो मनमाने तरीके से हो जाएगी.'

Advertisement

उन्होंने कहा, 'सरकार तमाम जनकल्याणकारी योजनाएं चलाती है, उसके लिए पैसा चाहिए. अगर ऐसा हुआ तो सरकार के पास धन की मॉनिटरिंग या कंट्रोल का कोई जरिया ही नहीं रहेगा, उदाहरण के लिए रियल एस्टेट, बॉलीवुड में अगर बड़े पैमाने पर काला धन आता है उसका पता कैसे लग पाएगा? इस व्यवस्था से ट्रांसपैरेंसी है, सरकार को एक-एक आंकड़े पता होते हैं, वहां सरकार का कंट्रोल तो है. अगर इनकम टैक्स खत्म हुआ तो यह कंट्रोल ही खत्म हो जाएगा. जरूरी नहीं कि जो पैसा लोगों के पास आए वह खर्च ही ऐसा हुआ तो. बहुत से लोग गोल्ड और रियल एस्टेट जैसे बहुत से गैर जरूरी चीजों में खर्च करेंगे.'

करदाताओं की संख्या भी खास नहीं बढ़ रही

सिंगापुर, ब्रिटेन, अमेरिका और न्यूजीलैंड जैसे देशों में करदाताओं की संख्या 30 से 70 प्रतिशत तक है, जबकि भारत में यही संख्या 5-6 प्रतिशत पर ही अटकी हुई है. विकसित देशों की व्यवस्था में भी आयकर का बड़ा योगदान है, लेकिन वहां के ज्यादातर नागरिक इसमें योगदान करते हैं. वहां खेती पर भी टैक्स है. जो भी पैसा कमाता है वह टैक्स देता है. लेकिन भारत में खेती से यदि कोई 5 करोड़ भी कमाए तो उसे एक पैसे का टैक्स नहीं देना है. पहले सरकार ने टैक्स बेस बढ़ाने का प्रयास भी किया. अभी 130 करोड़ की जनसंख्या में करीब 8 करोड़ लोग ही इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं. करदताओं की संख्या कुछ बढ़ी है, लेकिन कर राजस्व नहीं बढ़ रहा है.

Advertisement

एक तरह का दोहरा कर

फिर इनकम टैक्स देने वाले एक तरह से दोहरा कर देते हैं. वे अपनी कमाई पर तो टैक्स देते ही हैं. इसके बाद उस कमाई से जो भी खर्च करते हैं उस पर जीएसटी देते हैं. यानी उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा टैक्स देने में ही चला जाता है. टैक्स देने वाले इस तरह से एक तरह का भेदभाव का शिकार होते हैं. एक तरफ वे दोतरफा टैक्स देते हैं, तो दूसरी तरफ उन्हें सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं मिलता.

मनीष खेमका ने कहा, 'इस व्यवस्था का सबसे पहला शिकार नौकरी पेशा वर्ग है. इस व्यवस्था का सबसे ज्यादा नुकसान इस वर्ग को ही है. आप छोटे विकसित देशों से तुलना न करें तो भी चीन का उदाहरण ले सकते हैं. चीन हमारे जैसी ही विशाल जनसंख्या वाला देश है. चीन आयकर पर निर्भर नहीं है. चीन में कुल राजस्व में आयकर का हिस्सा महज 7 फीसदी है. लेकिन चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है. चीन ने इनडायरेक्ट टैक्स पर निर्भरता बढ़ाई है. यह ज्यादा पारदर्शी टैक्स होता है, जो उपभोग करता है वह टैक्स देता है. यह सबको देना ही है. चीन का 70 फीसदी से ज्यादा रेवेन्यू अप्रत्यक्ष कर से आता है. चीन ऐसा कर सकता है तो भारत क्यों नहीं कर सकता.'

Advertisement

इसे भी पढ़ें: 7 रुपये का शेयर 2 साल में 800 रुपये का, क्या पेनी स्टॉक में लगाना चाहिए पैसा?

टैक्सपेयर्स को क्यों नहीं मिलता प्रोत्साहन?

मनीष खेमका कहते हैं, 'यह व्यवस्था भेदभाव वाली है. विकसित देशों के तरीके से करदाता होने का कोई लाभ नहीं मिल रहा. आस्ट्रेलिया, स्वीडन, अमेरिका जैसे ​ज्यादातर विकसित देशों में सभी नागरिकों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ मिलता है और करदाता को कुछ खास रियायतें मिलती हैं. लेकिन भारत में तो करदाता को ही सामाजिक सुरक्षा से वंचित कर दिया जाता है. इसका उदाहरण आयुष्मान भारत योजना है. कितनी विडंबना है कि करदाता के पैसे से ही ये योजनाएं चलाई जाती हैं, लेकिन करदाता को इसका लाभ नहीं मिलता. जैसे रेलवे के एसी क्लास के रिजर्वेशन में यदि टैक्सपेयर्स को वरीयता मिले, या इसी तरह की कुछ अन्य रियायतें दी जाएं तो टैक्स देने को लोग प्रोत्साहित होंगे.'

मनीष खेमका ने कहा कि अगर पर्सनल इनकम टैक्स को खत्म नहीं किया जा सकता तो भी कर व्यवस्था में उसका हिस्सा कम से कम तो किया ही जा सकता है. जैसे चीन की व्यक्तिगत आयकर पर निर्भरता नहीं है, तो हम भी इतना तो कर सकते हैं कि व्यक्तिगत आयकर पर निर्भरता कम से कम करें. इससे मध्यम वर्ग को राहत मिलेगी.'

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement