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Conclave 2016: 'मैन ऑन द वायर' फिलिप बोले- स्कूलों में गणि‍त नहीं, जुनून का पाठ हो

फिलिप कहते हैं, 'लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि आप जब इमारतों के बीच तार बांधकर उस पर पैर रखते हैं तो आपके मन में क्या चल रहा होता है. मैं यही कहना चाहूंगा कि यह एक जुनून है.'

कॉन्क्लेव के मंच पर फिलिप पेटिट कॉन्क्लेव के मंच पर फिलिप पेटिट
स्‍वपनल सोनल
  • नई दिल्ली,
  • 18 मार्च 2016,
  • अपडेटेड 1:39 PM IST

इंडिया कॉन्क्लेव-2016 में दूसरे दिन की शुरुआत शुक्रवार को फिलिप पेटिट के साथ हुई. फिलिप फ्रांस के हाई-वायर आर्टिस्ट हैं, जिन्होंने 1974 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर्स के बीच तार बांधकर उस पर संतुलन का खेल दिखाया. 1,350 फीट की ऊंचाई पर वह करतब दुनिया को अचंभि‍त करने वाला था. लोग उन्हें 'मैन ऑन द वायर' भी बुलाते हैं. उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म 'द वॉक' 2015 में रिलीज हुई, जिसे खूब सराहना मिली. फिलिप तारों पर चलने को अपना करियर नहीं, बल्कि अपनी जिंदगी बताते है.

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बातचीत की शुरुआत करते हुए वह कहते हैं, 'लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि आप जब इमारतों के बीच तार बांधकर उस पर पैर रखते हैं तो आपके मन में क्या चल रहा होता है. मैं यही कहना चाहूंगा कि यह एक जुनून है, जहां एक ओर वो दुनिया होती है, जिसके बारे में आप जानते हैं और दूसरी ओर घने बादल जिनसे आप अंजान हैं, लेकिन आप तैयार रहते हैं.' वह कहते हैं कि सुरक्षा का खयाल कर कोई चिड़ि‍या उड़ान नहीं भरती.

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फिलिप एक जादूगर भी हैं और यह जादू उनकी बातों में भी झलकता है. वह कहते हैं, 'रचनात्मकता एक विद्रोही बात है.' 16 साल की उम्र में बिना प्रशि‍क्षि‍क खुद से तारों पर चलने की कला सीखने वाले फिलिप कहते हैं, 'मुझे करियर शब्द पसंद नहीं है. तारों पर चलना मेरी जिंदगी है. मैं जब बच्चा था, तब मैंने जादू सीखा और इसी तरह मेरी शुरुआत हुई. मैं ऊंचे तारों पर चलने लगा. मैं जब सड़कों पर करतब करता तो खुद को स्वतंत्र महसूस करता था.' उन्होंने बताया कि उन्हें अवैध तरीके से तार बांधने और करतब दिखाने के कारण 500 से अधिक बार गिरफ्तार भी किया गया.

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'मैं कभी गिरा नहीं, मुझे गिरना पसंद नहीं'
फिलिप खुद को एक करतबबाज कहलाना पसंद करते हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या करतब दिखाने के क्रम में वह कभी गिरे हैं? उन्होंने कहा, 'मुझे इस शब्द से परहेज है. मेरे लिए गिरना शब्द गलत है. मैं पहले पेड़ों के बीच तार बांधकर चलता था. मैंने बिना किसी प्रशिक्षक के इसे सीखा, लेकिन मैं कभी गिरा नहीं. हां, लेकिन जब कभी लगा कि मैं गिरने वाला हूं, मैं रस्सी से कूद जाता.'

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'प्रतियोगिता के चक्कर में कलाकार खत्म हो जाता है'
'मैन ऑन द वायर' फिलिप कहते हैं, 'धीरे-धीरे मैंने तार की ऊंचाई बढ़ानी शुरू की. यह दुनिया प्रतियोगिता की है. कभी खुद से कभी दूसरों से. लेकिन मैंने कभी प्रतियोगिता नहीं की. आप प्रतियोगिता के चक्कर में पड़ते हैं तो आप कलाकार नहीं रह जाते.'

वह आगे कहते हैं, 'मैं नहीं चाहता था कि लोग यह समझे कि मैं कुछ ऐसा कर रहा हूं, जो लोग नहीं कर सकते. मैंने फ्रांस में कई बार ऐसे जगह करतब किए, जहां किसी ने मुझे नहीं देखा. किसी ने मुझे नहीं पहचाना. लेकिन फिर मैं अखबारों में फ्रंटपेज पर आ गया. मैंने सड़कों से सीखा. मुझे 5 अलग-अलग स्कूलों से बाहर निकाल दिया गया. जब आप स्कूल की पढ़ाई नहीं करते तो आप दुनिया से सीखते हैं. सड़कों से सीखते हैं.'

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'मैं ट्विन टावर्स को अपना बताता था'
ट्विन टावर्स के बीच तारों पर चलने के खयाल के बारे में फिलिप कहत हैं, 'मैं जब डेंटिस्ट के यहां था, तब ट्विन टावर्स की तस्वीर देखी. वह तभी बन रहे थे. यह कुछ ऐसा था जैसे कोई मेरे सपने को तैयार कर रहा है. ट्विन टावर्स को मैं लंबे अरसे तक अपना टावर बताता था.' वह कहते हैं कि गणित और भूगोल से ज्यादा आपको जिंदगी में करेज की जरूरत होती है. उनका मानना है कि स्कूलों में जुनून का पाठ पढ़ाया जाना चाहिए. भूगोल और गणित के बारे में भूल जाइए.

'वह सर्कल मेरी टेरीटरी थी'
वह कहते हैं, 'करतब दिखाने से पहले मैं सर्कल बनाता था और परफेक्ट सर्कल बनाता था. ये मेरा स्टेज होता था और जब मैं उसके बीच में खड़ा होता तो लोग चारों ओर खड़े हो जाते. मैं सर्कल में पड़ी गंदगी को साफ करता. वह मेरी टेरीटरी, मेरा अधि‍कार क्षेत्र होता.'

'जेब कतरना भी एक कला है'
फिलिप अपने जीवन ने आपराध‍िक तौर पर जेब कतरने का काम भी किया है. इस बात का खुलासा उन्होंने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में किया. उन्होंने कहा, 'कुछ समय के लिए पेरिस में मैं एक जेब कतरा भी रहा हूं. मेरे लिए जेब कतरना भी एक कला है. यह अंगुलियों का बैले डांस है.'

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'आप कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकते'
अब आपका सपना क्या है? सत्र के आखि‍र में इस सवाल का जवाब देते हुए फिलिप कहत हैं, 'मेरा सपना है कि मैं तब तक तारों पर चलता रहूं, जब‍ तक कि मेरे पैर जवाब नहीं दे दे.' वह कहते हैं, 'परफेक्श्न यानी पूर्णता एक सपना है, जिसे कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता. लेकिन हमें इसके लिए हमेशा प्रयासरत रहना चाहिए.'

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