Advertisement

जब कास्ट‍िंग काउच की श‍िकार हुई एक्ट्रेस, 5 प्रोड्यूसर्स से समझौते को कहा

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2018 के अहम सत्र 'सेक्स‍िज्म इन सिनेमा: टाइम टू एंड पेट्रीआर्की' में फिल्म एडिटर बिना पॉल, कन्नड़ एक्ट्रेस श्रुति हरीहरन और प्रणिता सुभाष ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन सुशांत मेहता ने किया.

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2018 के दौरान कन्नड़ एक्ट्रेस श्रुति हरीहरन इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2018 के दौरान कन्नड़ एक्ट्रेस श्रुति हरीहरन
महेन्द्र गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 18 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 7:58 PM IST

इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2018 के अहम सत्र 'सेक्स‍िज्म इन सिनेमा: टाइम टू एंड पेट्रीआर्की' में फिल्म एडिटर बिना पॉल, कन्नड़ एक्ट्रेस श्रुति हरीहरन और प्रणिता सुभाष ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन सुशांत मेहता ने किया.

सत्र के दौरान प्रणिता सुभाष ने कहा, 'एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी. सेट पर शॉट पूरा होने के बाद मैंने जब इसे देखा तो ये ऐसा नहीं था, जैसा मुझे बताया गया था. ये वीडियो परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता था.' उन्होंने आगे कहा, 'बड़े दुख की बात है कि सेक्स बिकता है.

Advertisement

कॉन्क्लेव साउथ 2018: साउथ इंडिया के राज्यों के साथ दौड़ेगी अर्थव्यवस्था: पुरी

श्रुति हरीहरन ने कहा कि फिल्मों में लड़कियों के किरदार को हमेशा समाज में उसके लिए प्रचलित भावनाओं के आधार पर उतारा जाता है. अधिकतर फिल्मों में लड़कियों को बतौर कमोडिटी शूट किया जाता है, जिससे वह देखने में सुन्दर, सेक्सी लगें और फिल्म चलने की संभावना बढ़ जाए.

बकौल श्रुति, फिल्मों में महिलाओं को फैसला लेने की भूमिका में नहीं रखा जाता है. मैंने कास्टिंग काउच की स्थिति का सामना किया है. एक कन्नड फिल्म के लिए कास्टिंग में गई थी और वहां मुझे ऐसी परिस्थिति में डाल दिया गया. एक प्रोड्यूसर ने फिल्म देने के लिए कहा कि फिल्म में 5 प्रोड्यूसर हैं और वह किसी भी तरह से मेरा इस्तेमाल कर सकते हैं .श्रुति में कहा कि महिलाओं का चुप रहना अब कोई विकल्प नहीं है. पब्लिक स्पेस महिलाओं के लिए उपलब्ध नहीं है, क्योंकि समाज पूरी तरह से पुरुष प्रधान है, लेकिन फिल्मों में महिलाओं की मौजूदगी से उम्मीद की जा सकती है कि महिलाएं पब्लिक स्पेस में अपने लिए जगह बना रही हैं.

Advertisement

हैदराबाद में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ 2018 का दूसरा संस्करण आज से

श्रुति ने आगे कहा, ज्यादातर लड़कियों को कास्टिंग काउच का सामना 'ना' कहकर करने की जरूरत है. इसके लिए सिर्फ पुरुषों को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है. कास्टिंग काउच से पहला मौका जरूर मिलता है लेकिन इसके सहारे करियर नहीं बनाया जा सकता.

इवेंट की एक और मेहमान बीना पॉल ने कहा, 'फिल्म सेट पर महिलाओं के लिए टॉयलेट की व्यवस्था नहीं रहती. फिल्म इंडस्ट्री में विशाखा गाइडलाइन्स जैसा भी कुछ नहीं है. फिल्म की दुनिया में माना जाता है कि यहां आने वाली सभी औरतें गलत हैं. वह चाहे एक्ट्रेस हों, या फिर पर्दे के पीछे के किसी किरदार में हो उन्हें हमेशा बैड गर्ल माना जाता है. इसे बदलने की जरूरत है. देश में फिल्मों में काम को भी प्रोफेश्नली डेवलप करने की जरूरत है. देश में संस्थान की जरूरत है.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement