
इंडिया टुडे-कार्वी के मूड ऑफ द नेशन जुलाई 2018 पोल (MOTN, जुलाई 2018) के मुताबिक किसी भी दल को अपने दम पर बहुमत मिलता नजर नहीं आ रहा है. जबकि कई क्षेत्रीय दल हैं, जो किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों को सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने के लिए क्षत्रपों के सहयोग की जरूरत होगी.
बता दें कि यह सर्वे 97 संसदीय क्षेत्रों और 197 विधानसभा क्षेत्रों के 12,100 लोगों के बीच कराया गया. सर्वे 18 जुलाई 2018 से लेकर 29 जुलाई 2018 के बीच कराया गया था.
इंडिया टुडे-कार्वी के मूड ऑफ द नेशन सर्वे के मुताबिक 543 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को 245 सीटें मिलती दिख रही हैं. जबकि 2014 के चुनाव में 282 सीटें मिली थी. इस तरह से पिछले चुनाव की तुलना में 37 सीटें घटती दिख रही हैं. इस तरह से बीजेपी को अपने दम पर 272 सीटों के बहुमत के आंकड़े से 27 सीटें कम मिल रही हैं.
वहीं, सर्वे के मुताबिक कांग्रेस को 83 सीटें मिलने का अनुमान है. जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में 44 सीटें मिली थी. इस तरह से कांग्रेस को 39 सीटों का इजाफा होता दिख रहा है. हालांकि बहुमत के जादुई आंकड़े से काफी दूर है.
हालांकि, 281 सीटें एनडीए गठबंधन को मिल रही हैं. वहीं, यूपीए के खाते में 122 सीटें जा सकती हैं, जबकि अन्य सहयोगी दलों के खाते में शेष 140 सीटें आने की उम्मीद है. लेकिन सपा, बसपा, टीएमसी, टीडीपी और पीडीपी जैसे दल अगर यूपीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो ऐसे में नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं. इस सूरत में एनडीए को 255 सीटें और यूपीए को 242 सीटें मिल सकती हैं. जबकि अन्य को 46 सीटें मिल सकती है.
सर्वे के नजरिए से देखें तो ऐसी स्थिति में उन क्षेत्रीय दलों की भूमिका काफी अहम हो जाती है, जो किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं. इनमें बीजेडी, टीआरएस, एआईएडीएमके और वाईएसआर कांग्रेस ऐसी पार्टियां हैं जिनके रूख अभी साफ नहीं हैं. सर्वे के मुताबिक इनके खाते में करीब 46 सीटें मिल रही हैं. यही पार्टियां किंगमेकर की भूमिका में होंगी.
सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने के लिए इन्हीं चार दलों की अहम भूमिका होगी. एनडीए और महागठबंधन दोनों में जो इन दलों को अपने साथ मिलाने में कामयाब हो जाते हैं. वही सत्ता पर काबिज हो सकेगा. हालांकि, इन क्षत्रपों के पिछले रिकॉर्ड को देखें तो कई मौकों पर मोदी सरकार के साथ खड़े नजर आए थे. ऐसे में जब एनडीए बहुमत के आंकड़े से दूर होगा तो क्या ये क्षेत्रीय दल मोदी सरकार को बनाने में सहयोग देंगे. ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा?