
कुछ लोग जीते जी किंवदंती बन जाते हैं. किंवदंती यानी ऐसी शोहरत, जिसे लेकर किस्से कहानियों की शुरुआत हो जाए. वैसे तो अपने-अपने फन में माहिर ऐसे लोगों की इस दुनिया में कोई कमी नहीं है. लेकिन कोई जरायम की दुनिया में ऐसा नाम पैदा करे कि जिसे पुलिस से लेकर जज तक बस उसके नाम से पहचानने लगें, तो हैरानी होती है. दिल्ली का धनीराम मित्तल ऐसा ही है. 77 साल के धनीराम मित्तल से जुड़ी सालों पुरानी एक रोचक कहानी है.
पुलिस को चकमा देने में महारत हासिल
आज से कोई 20 साल पहले एक बार गिरफ्तार होने के बाद धनीराम मित्तल को अदालत में पेश किया. चूंकि तब तक अदालतों के चक्कर धनीराम के लिए रोज की बात बन चुकी थी, उस रोज जज साहब ने खीझ कर उसे अपनी अदालत से बाहर जाने को कहा, वो बाहर गया भी और फिर चुपचाप निकल गया. बाद में जब उसकी पेशी की बारी आई, तो पुलिस के हाथ पांव फूल गए क्योंकि तब तक धनीराम पुलिसवालों को जज साहब का हवाला देकर कानून के शिकंजे से बाहर निकल चुका था.
अक्सर दिन में वारदात को देता है अंजाम
दुनिया में चोर तो बहुत हुए और आगे भी होंगे. लेकिन धनीराम के धनीराम बनने की कहानी दूसरी सुनने को नहीं मिलेगी. पुलिस के पुराने और धाकड़ अफसरों की मानें तो धनीराम के पास जैसा दिमाग है, वैसा किसी और के पास नहीं है. वो अक्सर आंखों के सामने खुलेआम और दिन के वक्त चोरी करता है और देखने वाला खुद भी अपना माल चोरी होता हुआ देखने के बावजूद उसे रोक नहीं पाता. धनीराम अब तक करीब एक हजार से ज्यादा सिर्फ गाड़ियां चुरा चुका है.
पलक झपकते ही हाथ साफ करने में माहिर
करीब एक साल पुराने एक सीसीटीवी फुटेज में धनीराम मोबाइल फोन पर बात करते हुए सड़क पर टहलता दिख रहा है. लेकिन चंद मिनट बाद ही वो वहां से एक मारुति कार चुराकर फरार हो जाता है. असल में यही धनीराम मित्तल की खासियत है वो अपने काम यानी जरायम में इतना माहिर है कि उसका दूर-दूर तक कोई तोड़ नहीं है. लेकिन ये तो धनीराम के जिंदगी की बस एक झलक भर है. पचास सालों के चोरी के करियर में उसने ऐसी-ऐसी वारदातें की हैं कि सुनते-सुनते इंसान थक सकता है, लेकिन किस्से खत्म नहीं हो सकते.
समय के साथ धनीराम ने बदला चोरी का अंदाज
पुलिस की दो-तीन पीढ़ियां उसके देखते-देखते बदल गईं. चोर पुलिस का खेल तक बदल गया. पर वो नहीं बदला. उसने चोरी पर रिसर्च करने के लिए बाकायदा पढ़ाई तक की. वकीलों से छुटकारा पाने और अपने ही केस की खुद पैरवी करने के लिए एलएलबी की पढ़ाई कर वकील बन गया, फिर हैंडराइटिंग एक्सपर्ट की पढ़ाई की. इतना ही नहीं, बाद में ग्राफोलॉजी की डिग्री भी हासिल कर ली, मगर चोरी नहीं छोड़ी, जुर्म की दुनिया में चार्ल्स शोभराज का अपना अलग ही मुकाम है. लेकिन हिंदुस्तान में अगर किसी की तुलना चार्ल्स शोभराज से होती है, तो वो धनीराम मित्तल है.
25 साल की उम्र में चोरी को बनाया पेशा
नए दौर के गुनहगार जुर्म की बारीकियां सीखने आज दूर-दूर से धनीराम के पास पहुंचते हैं और उसकी जी-हुजूरी करते हैं. कई ऐसे भी मिसाल हैं, जहां सिर्फ धनीराम से मिलने के लिए जरायम की दुनिया के कई खिलाड़ी बड़े घर यानी जेल की रोटी भी खा चुके हैं. धनीराम ने जुर्म के इस दागदार करियर की शुरुआत आज से कोई 50 साल पहले तब की थी, जबकि उसकी उम्र कोई 25 साल के आस-पास थी, और इतने ही साल पहले 1964 में वो पहली बार पुलिस के हत्थे चढ़ा था.
चोरी के लिए हासिल की डिग्रियां
कहते हैं पढ़ा लिखा गुनहगार ज्यादा खतरनाक होता है. धनीराम पर ये बात बिल्कुल सोलह आने सही बैठती है. उसने चोरी करते-करते ही ना सिर्फ एलएलबी की पढ़ाई की और वकील बन गया, बल्कि हैंडराइटिंग एक्सपर्ट और ग्राफोलॉजी की डिग्री भी हासिल की. कहने वाले कह सकते हैं कि धनीराम को पढ़ने-लिखने का शौक है. लेकिन हकीकत ये है कि उसने जुर्म की दुनिया में खुद को और भी ज्यादा मजबूत करने के इरादे से ही ये डिग्रियां हासिल कीं. एलएलबी कर वो कानून का जानकार बन गया और कानून की आंखों में और ज्यादा महारत से धूल झोंकने लगा, जबकि हैंडराइटिंग एक्सपर्ट और ग्राफोलॉजी की पढ़ाई कर उसे जालसाजी करने में महारत मिली. मसलन, अब वो खुद ही गाड़ियां चुराता, उसके फर्जी कागज तैयार करता और उसे आगे बेच देता.
जब चोरी करते-करते फर्जी जज बन बैठा
ऐसा अजीब कारनामा सिर्फ धनीराम ही कर सकता था. आज से कुछ साल पहले जब चोरी करते-करते उसे बोरियत होने लगी, तो उसने कुछ नया करने की सोचा. एक रोज फर्जी कागजातों की बिनाह पर उसने झज्जर कोर्ट के एडिशनल सेशल जज को तकरीबन दो महीने की छुट्टी पर भेज दिया. और फिर उनके पीछे मुड़ते ही खुद जज की कुर्सी पर विराजमान हो गया. इसके बाद तो उसने कितने को कैसी-कैसी सजा दी और कितनों को माफी इसका सही-सही हिसाब किसी के पास नहीं है. हालांकि पुलिस का कहना है कि इन दो महीनों में उसने कुल 2 हजार सात सौ चालीस गुनहगारों को तो जमानत पर ही रिहा कर दिया था.